हर पल के आनंद से कामयाबी की राह
रेनू सैनी
बस पांच साल की नौकरी और बाकी है, यह पूरी हो जाए तो जी भर के जिंदगी को जिएंगे। बस बच्चों का विवाह हो जाए, फिर मैं अपने पर पूरा ध्यान दूंगी। एक अच्छा-सा खुद का घर बना लूं, फिर अपने गायन के शौक को पूरा करूंगा।
आपमें से कितने लोग ऐसे हैं जिनके मन में अक्सर इसी तरह के ख्याल कभी न कभी अवश्य आते हैं। निस्संदेह सभी के मन में ऐसी उथल-पुथल सदा मची रहती है और इन्हीं सब को पूरा करते-करते जिंदगी बीत जाती है। इसका अहसास अक्सर हमें तब होता है, जब बहुत देर हो चुकी होती है। आखिर इस देर को वक्त पर समझ कर क्यों न जीवन का आनंद उठाया जाए। क्या ऐसा संभव है? बिल्कुल संभव है। यदि आप शाओलिन की तकनीक को समझ जाएं। चीन के मध्य में, प्रांतीय राजधानी झेंग्झोऊ के बहुत ही करीब शाओलिन नामक एक गांव स्थित है। यह गांव अपनी प्रसिद्धि के कारण पूरी दुनिया में पहचाना जाता है। यहां पर लगभग आज से 1500 साल पहले भारतीय भिक्षु बोधिधर्म ने एक बौद्ध मठ की स्थापना की थी। यहां पर पन्द्रहवीं सदी से ही शाओलिन कुंग फू की कला को विकसित करने के निरंतर प्रयास जारी हैं। यह पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि शाओलिन तो युद्ध से जुड़ी कला है, फिर इसके माध्यम से जीवन सुंदर और सकारात्मक कैसे बन सकता है?
दरअसल, शाओलिन केवल युद्ध से जुड़ी कला भर नहीं है, अपितु यह जीवन जीने की संपूर्ण कला है। जो लोग इस मठ से शाओलिन मास्टर बनकर निकलते हैं, वे अपने शरीर के साथ तालमेल बिठाना सीख जाते हैं। वे अपने शरीर का सम्मान करते हैं और उनका सही तरह से उपयोग करते हैं। शाओलिन मास्टर इस विचार को पूरी तरह स्वीकार कर लेते हैं कि मस्तिष्क ही शरीर को सक्रिय और निष्क्रिय बनाता है। यदि बचपन से ही बच्चों के मन में जीवन के एक-एक क्षण का उपयोग करना सिखाया जाए तो वे कम उम्र में ऐसे इतिहास रच देते हैं कि दुनिया दांतों तले अंगुली दबाए देखती रह जाती है। 9 साल की अलधाबी अल म्हेरी एक ऐसी ही कम उम्र की बच्ची है जिसने बचपन से ही मां से जीवन एवं समय की उपयोगिता को समझ लिया था। आज यह बच्ची विश्व की सबसे छोटी उद्यमी है। यह रेनबो चिमनी एजुकेशनल एड्स बुकस्टोर और पब्लिशिंग हाउस की संस्थापक है। अलधाबी ने केवल सात साल और 360 दिन की उम्र में दो भाषा की बुक सीरीज लिखकर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। उन्होंने इस पुस्तक को अंग्रेजी और अरबी दोनों भाषाओं में लिखा था ताकि अधिक से अधिक लोग इस पुस्तक को पढ़ सकें।
अलधाबी अल म्हेरी संयुक्त अरब अमीरात में रहती है। वह कहती है कि जब मैं अपनी मां के पेट में थी, तभी से मेरी मां लगातार किताबें पढ़ती रहती थी। जब मैं छह या सात महीने की हुई तो मेरी मां ने मुझे किताबों के साथ बैठकर कहानियां सुनाना शुरू कर दिया। जब मेरी मां कहानियां सुनाती थी तो मैं उनके शब्दों को सुनती थी। ढाई या तीन साल की उम्र में मैंने खुद से किताबें पढ़ना शुरू कर दिया था। मुझे पुस्तकों की सबसे अच्छी बात यह लगती है कि उन्हें पढ़कर न केवल बढ़िया संदेश मिलता है बल्कि ज्ञान भी बढ़ता है। अलधाबी कहती हैं कि जब वे छह साल की थीं तो उन्होंने लगभग 1200 किताबें पढ़ ली थीं और सात या आठ साल की उम्र में उन्होंने 3000 किताबों को पढ़ लिया था। अलधाबी कहती हैं कि मेरी मां को मैंने हर समय, हर क्षण का पूरा उपयोग करते देखा, हर पल को आनंद से जीते देखा। बस यही सीख मैंने उनसे ले ली।
अभी नौ साल की उम्र होने पर उन्होंने ‘आॅगमेंटेड रियलिटी’ पर पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसे ‘आॅटिज्म’ से पीड़ित बच्चे भी पढ़ सकते हैं। एक नौ वर्ष की बच्ची अपनी प्रतिभा से ऐसे बड़े काम करेगी तो दुनिया तो उस बच्ची की काबिलियत के आगे सिर झुकाएगी ही। अलधाबी के घर के कोने-कोने में शाओलिन तकनीक रची-बसी है। उसके भाई सईद रशीद अल म्हेरी ने भी अभी हाल ही में एक पुस्तक लिखी है। सईद की उम्र अभी केवल पांच साल है। इससे ज्ञात होता है कि यदि माता-पिता बचपन से ही बच्चों को जीने के सिद्धांत बता दें तो कम उम्र से ही ऐसे बच्चे इतिहास रचने लगते हैं।
दरअसल, शाओलिन तकनीक व्यक्ति को वर्तमान में जीना सिखाती है, उसे मजबूत बनाती है और उसे उत्कृष्टता का पाठ सिखाती है। इस क्षण का अनुभव ही जीवन है, शाओलिन के सिद्धांत का आरंभिक बिंदु यही बताता है। शाअोलिन सिद्धांतों के अनुसार जीने का अर्थ है उस क्षण में जीना और उस खास क्षण को जीवन का एक अद्भुत, बहुमूल्य और क्षणिक हिस्सा मानना।
यहूदी धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘तालमुद’ में कहा गया है कि, ‘महज एक घंटा जीया हुआ वक्त भी जीवन है।’ वहीं शाओलिन मठ के भिक्षु इससे एक कदम आगे बढ़कर कहते हैं कि, ‘न सिर्फ जीया हुआ हर घंटा, बल्कि जीया हुआ हर पल जिंदगी है।’जब व्यक्ति हर पल को काटता नहीं बल्कि जीता है तो उसके ऐसे अनेक पल इकट्ठे होकर इतिहास रच देते हैं। छोटे-छोटे पलों में जिए गए और किए गए काम ही व्यक्ति को बड़ा बनाते हैं और उसकी पहचान कराते हैं।
तो बताइए कि आप शाओलिन सिद्धांतों के अनुसार जीना कब से शुरू कर रहे हैं? क्यों न अभी से यह शुरुआत कर दी जाए।