अज़ान संग घंटियों की आवाज़ों का संदेश
बेशक, दस-पंद्रह साल पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक तरफ हजरत बल दरगाह मैदान में हजारों मुस्लिम एक-दूसरे के गले लगकर ईद की बधाइयां देंगे और वहीं दूसरी तरफ क्षीर भवानी मंदिर में कश्मीरी पंडित नवरेह के पर्व पर घंटी बजाकर मां भवानी की आरती गाएंगे।
विवेक शुक्ला
कश्मीर घाटी में ईद और कश्मीरी हिन्दुओं के नूतन वर्ष नवरेह धूमधाम से मनाए जाने की खबरें सुखद हैं। दरअसल, कश्मीर में यह नया बदलाव एक दिन में नहीं आया है, इसके लिए केन्द्र सरकार की सरपरस्ती में दीर्घकालीन नीति पर काम किया गया है। सबसे पहले कश्मीर की शांति के लिए नासूर बने मुद्दों की पहचान की गई, कश्मीर की बर्बादी के लिए जिम्मेदार वंशवाद की राजनीति पर प्रहार किया गया, मस्जिदों से संचालित हो रहे आतंकवाद और कथित जिहाद को समाप्त किया गया, नीतियों में अकर्मण्यता और जड़ता को खत्म किया गया और जनता द्वारा चुने गए स्थानीय शासन की पद्धति को बहाल किया गया।
कौन नहीं जानता कि लंबे समय तक अशांति, देश विरोधी ताकतों और पत्थरबाजी के कारण कश्मीर घाटी जलती रही। सबसे अहम बात यह है कि कश्मीर में आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने की संख्या में भारी गिरावट आई है। वर्ष 2004 और 2014 के बीच, जम्मू और कश्मीर में 7,217 आतंकवादी घटनाएं दर्ज की गईं; 2014 और 2024 के बीच, यह संख्या घटकर 2,242 रह गई। आतंकी हमलों के कारण नागरिकों की मौतों में 81 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि सुरक्षा बलों की हताहतों की संख्या आधी हो गई है। ये आंकड़े सिद्ध करते हैं कि कश्मीर अब देश की मुख्य धारा से जुड़ चुका है। राज्य में विकास परियोजनाओं के दो प्रकार के लाभ हो रहे हैं। पहला- राज्य में सड़कों, सेतुओं, शिक्षण संस्थानों और अस्पतालों का निर्माण हो रहा है। यानी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए भरपूर काम हो रहा है। दूसरा- केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से हजारों युवाओं को रोजगार मिल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 80,000 करोड़ रुपये की 63 परियोजनाओं को मंजूरी दी थी, जिनमें से 51,000 करोड़ रुपये का उपयोग किया जा चुका है। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई औद्योगिक नीति ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व निवेश आकर्षित किया है।
जहां जम्मू और कश्मीर को 70 वर्षों में केवल 14,000 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ था, वहीं पिछले एक दशक में ही 12,000 करोड़ रुपये का औद्योगिक निवेश हुआ है। इसके अतिरिक्त 1,10,000 करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापनों को वर्तमान में लागू किया जा रहा है। यह आर्थिक परिवर्तन श्रीनगर और जम्मू की सड़कों पर स्पष्ट दिखाई देता है, जहां नए व्यवसाय फल-फूल रहे हैं। श्रीनगर में घूमते हुए यह समझ आ जाता है कि राज्य में पर्यटन क्षेत्र लंबी-लंबी छलांगें लगा रहा है। यकीन मानिए कि अकेले 2023 में ही, रिकॉर्ड 2.11 करोड़ पर्यटकों ने जम्मू और कश्मीर का दौरा किया। जाहिर है, इससे कश्मीर की अर्थव्यवस्था को गति मिली है।
बेशक, दस-पंद्रह साल पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक तरफ हजरत बल दरगाह मैदान में हजारों मुस्लिम एक-दूसरे के गले लगकर ईद की बधाइयां देंगे और वहीं दूसरी तरफ क्षीर भवानी मंदिर में कश्मीरी पंडित नवरेह के पर्व पर घंटी बजाकर मां भवानी की आरती गाएंगे। श्रीनगर के लाल चौक में 55 साल के बैंक कर्मी मकसूद भट्ट कुछ भावुक होकर कह रहे थे कि यह वही कश्मीर है, जिसे उन्होंने अपने बचपन में देखा था। तब यहां सब मिल-जुलकर रहते थे। लंबे समय तक उनका राज्य जलता रहा, लेकिन अब यहां अमन और विकास की बयार बहने लगी है।
बेशक, एक सक्षम सरकार क्या होती है, और एक संवेदनशील गवर्नेंस की पद्धति क्या होती है, इसे देखना हो तो आज के कश्मीर को देख सकते हैं। आज कश्मीर में अमन है, जनता में भारत के लिए जबरदस्त जज्बा है, और यह यकीन है कि अब कश्मीर आगे बढ़ चुका है और सचमुच भारत का सिरमौर बनने की ओर अग्रसर है। इस बीच, अब पाकिस्तान भी कहीं न कहीं स्वीकार कर चुका है कि वह कश्मीर की जंग हार चुका है। पाकिस्तान की मशहूर लेखिका याना मीर कहती हैं कि कश्मीर की अवाम भारत के साथ खुश है, लेकिन पाकिस्तान खुले रूप से माहौल बिगाड़ना चाहता है, जिसमें वह सफल नहीं होगा। अब पाकिस्तान भारत से कश्मीर लेने की नहीं, बल्कि पीओके को बचाने, बलूचिस्तान और गिलगित को टूटने से रोकने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। मौजूदा स्थिति यह है कि आज कश्मीरी खुद कहते हैं कि वे खुली हवा में सांस ले रहे हैं, राज्य में स्कूल और अस्पताल बन रहे हैं, उनके बच्चे भी देश के अन्य बच्चों की तरह पढ़ रहे हैं, अब उनके अंदर भी यह जज्बा कायम हो गया है कि वे कश्मीर और भारत का नाम ऊंचा करें।
अब कश्मीर में प्रधानमंत्री या गृह मंत्री की यात्रा पर कोई ब्लैकआउट कॉल नहीं देता, बल्कि स्थानीय लोग अपनी आकांक्षाएं और संवेदनाएं खुलकर जाहिर करते हैं। कश्मीर की हवा में जहर घोलने वाले जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ जैसे संगठनों के पीछे लोग खड़े नहीं होते। कभी अनुच्छेद 370 के लिए झंडा उठाने और केंद्र के साथ होने का दम भरने वाले लोग भी अब भारत का एक सामान्य राज्य होने से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।