चाय बागानों से निखरते कुदरत के नज़ारे
सुमन बाजपेयी
केरल यात्रा के दौरान जब चाय के बागान मिलने शुरू हो जाएं, तो समझ जाना चाहिए कि मुन्नार आने वाला है। ऊंचे पहाड़, चाय के बागों के मनभावन ढलान और अपने विविध रंग बिखेरती प्रकृति शहर की थकान को मिटाकर उसी दुनिया का हो जाने को उकसाती है। मुन्नार, केरल का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है और इसकी खूबसूरती पर्यटकों को यहां खींच लाती है। यहां हर मोड़ पर मनमोहक दृश्य देखने को मिलते हैं। चाय के बागान, वहां पत्तियां तोड़ती महिलाएं और एक सुगंधित खुशबू में दूर तक उतरते जाएं और चाय बागान के फैलाव को देखें।
नीलकुरंजी की आभा
यहां की झीलें और घने जंगल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों के लिए मुन्नार दक्षिणी भारत का गर्मियों का रिजॉर्ट हुआ करता था। वनों की विलक्षण वनस्पति तथा हरे घास के मैदानों के बीच यहां नीलकुरंजी नामक फूल पाया जाता है। हरे घास के मैदानों में नीलकुरंजी फूल पूरी पहाड़ी को नीला कर देता है। यह फूल बारह वर्षों में केवल एक बार ही खिलता है और उस समय प्रकृति का एक नया ही रंग देखने को मिलता है।
विकास यात्रा का अवलोकन
मुन्नार का सबसे मुख्य आकर्षण यहां के चाय बागान हैं। गलीचे जैसे दिखने वाले ये चाय के बागान 12,000 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैले हैं। यहां तरह-तरह के चाय बागान हैं। कुछ सरकारी और अधिकांश निजी कंपनियों के। यहां चाय एस्टेट के इतिहास और विकास की यात्रा को समझा जा सकता है। पारंपरिक अनगढ़ टी रोलर से लेकर पूरी तरह ऑटोमेटेड आधुनिक चाय फैक्टरी की विकास यात्रा का अवलोकन करने का अवसर मिला। चाय प्रोसेसिंग के विभिन्न चरणों को देखा, जिसमें काली चाय बनाने की प्रक्रिया भी शामिल थी।
टी टेस्टिंग एरिया में विभिन्न किस्मों की चाय पीते हुए तय कर पाना कठिन हो रहा था कि कौन ज्यादा बेहतर है या किसका स्वाद सबसे अच्छा है। मुन्नार के चाय बागान वास्तव में एक ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो वहां की आत्मा का दर्शन कराते हैं।
चाय बागान का सफर
मुन्नार का एक चाय बागान करीब 100 साल पुराना है। एशिया के सबसे बड़े चाय उत्पादक क्षेत्रों में से एक है यह जगह। यहां चाय की पत्तियों को तोड़कर प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद इसकी कीमत 2 हजार रुपए प्रति किलो हो जाती है। यह चाय निर्यात कर दी जाती है, जो दवा बनाने के काम भी आती है। इस चाय के सेवन से शरीर में स्थित फैट्स बर्न होते हैं।
वर्ष 1880 में मुन्नार में चाय उत्पादन की शुरुआत से जुड़ी निशानियां जैसे दुर्लभ कलाकृतियां, चित्र और मशीनें यहां स्थित चाय संग्रहालय में रखी हुई हैं। यहां कई ऐतिहासिक तस्वीरें भी लगी हुई हैं। चाय प्रोसेसिंग इकाई में चाय बनने की पूरी प्रक्रिया को करीब से देखना और समझना अपनी तरह का एक अनुभव है। मुन्नार में चाय की कहानी तमिलनाडु से शुरू होती है। 19वीं सदी के अंत में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी को देखते हुए चाय की खेती शुरू की थी। जल्द ही मुन्नार, केरल में चाय उत्पादन का केंद्र बन गया और इसकी ख्याति उच्च गुणवत्ता वाली चाय के लिए फैल गई। माना जाता है कि एडब्ल्यू टर्नर ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने मुन्नार में पौधारोपण की शुरुआत की थी, जबकि असल में जिन्होंने मुन्नार में चाय की खेती शुरू की थी, वह एक यूरोपीय बागान मालिक एएच शार्प थे, जिन्होंने 1880 में इसकी शुरुआत की थी।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मुन्नार का इतिहास इसकी चाय संस्कृति से जुड़ा हुआ है। मुन्नार के चाय उद्योग के विकास में अंग्रेजों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनका प्रभाव अभी भी वास्तुकला के अवशेषों और परिदृश्य में बिखरे चाय बागानों में देखा जा सकता है। समय के साथ, मुन्नार के चाय बागानों पर भारतीय स्वामित्व में बदलाव आया, लेकिन ब्रिटिश युग की विरासत इस क्षेत्र की पहचान का एक अभिन्न अंग बनी हुई है।
मुन्नार में चाय बागानों के बारे में जानकारी देने के लिए कई संग्रहालय हैं। टाटा टी ने साल 2005 में चाय संग्रहालय की स्थापना की थी। मुन्नार की यात्रा प्रतिष्ठित टाटा चाय संग्रहालय को देखे बिना अधूरी है। नल्लथन्नी एस्टेट में स्थित यह संग्रहालय मुन्नार के चाय उद्योग के इतिहास और विकास के बारे में आकर्षक जानकारी प्रदान करता है। प्रदर्शनी में प्राचीन चाय प्रसंस्करण मशीनरी, तस्वीरें और कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं जो मुन्नार में चाय की यात्रा को दर्शाती हैं। संग्रहालय की यात्रा से बीते युग की झलक मिलती है और मुन्नार की चाय संस्कृति को आकार देने में टाटा समूह द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता है।
जैविक चाय बागान
कोलुक्कुमलाई, 8,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह चाय बागान दुनिया का सबसे ऊंचा जैविक चाय बागान है। संकरी घुमावदार सड़कें और पहाड़ों के लुभावने दृश्यों को पार करते हुए यहां पहुंचते ही चाय तोड़ने की प्रक्रिया को देख विस्मित हुए बिना नहीं रहा जा सकता।
कन्नन देवन चाय संग्रहालय में चाय बनाने की प्रक्रिया में हुए बदलावों की जानकारी मिलती है। यहां पुरानी कलाकृतियां भी रखी गई हैं। मुन्नार की चाय संस्कृति को सही मायने में समझने के लिए, चाय बनाने की जटिल प्रक्रिया को समझना आवश्यक है। नरम और कोमल चाय की पत्तियों को तोड़ने से लेकर प्रसंस्करण, सुखाने और पैकेजिंग तक, यात्रा का प्रत्येक चरण चाय के बेहतरीन कप के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चाय का जायका
मुन्नार की कोई भी यात्रा चाय चखने के सत्र के बिना पूरी नहीं होती। स्थानीय चाय की दुकानें और कैफ़े हर स्वाद के हिसाब से कई तरह के स्वाद और मिश्रण पेश करते हैं। कड़क काली चाय से लेकर हरी चाय और सुगंधित हर्बल इन्फ्यूजन तक, मुन्नार में हर किसी के लिए कुछ न कुछ है। चाय की दुनिया में डूबते हुए हर घूंट का स्वाद लेने का यहां अलग ही मजा है।
कैसे पहुंचें
मुन्नार पहुंचने के लिए हवाई मार्ग, रेल मार्ग या सड़क मार्ग तीनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मुन्नार के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। चाय ने मुन्नार के इतिहास में एक अभिन्न भूमिका निभाई है।