रामलला का सूर्य तिलक
सौर संरेखण और भारतीय खगोलशास्त्र के सटीक ज्ञान के उपयोग से पिछले साल रामनवमी के दिन अयोध्या के राम मंदिर में रामलला का राजतिलक सूर्य किरणों से किया गया, जिसे ‘सूर्य तिलक’ कहा गया। लेकिन अब आगामी 20 सालों तक हर दिन ‘सूर्य तिलक’ करने का निर्णय लिया गया है। यह बेहद जटिल तकनीकी है जिससे पहली बार किसी मंदिर में मूर्ति के सटीक मस्तक पर सूर्य किरणों से तिलक हुआ है।
लोकमित्र गौतम
आज यानी 6 अप्रैल 2025 से अयोध्या के राम मंदिर में रामलला का हर रोज सूर्य तिलक होगा। मंदिर निर्माण समिति के निर्णय के अनुसार, करीब 4 मिनट तक प्रतिदिन सूर्य की किरणें रामलला के ललाट को सुशोभित किया करेंगी। समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र के अनुसार हर दिन सूर्य तिलक की योजना अगले 20 सालों तक के लिए की गई है। गौरतलब है कि पिछले साल रामनवमी के दिन यानी 17 अप्रैल, 2024 को पहली बार रामलला का राजतिलक सूर्य की किरणों से किया गया था, जिसे ‘सूर्य तिलक’ कहा गया। इसकी वैज्ञानिक तकनीक प्रकाश के परावर्तन और अपवर्तन के सिद्धांतों पर आधारित है।
ऐसे किया गया सूर्य तिलक
सबसे पहले संग्रहण लैंस, कंडेंसर लैंस, और दर्पणों की मदद से सूर्य की किरणों को एक नियत स्थान पर केंद्रित किया गया, यह सूर्य की स्थिति की सटीक खगोलीय गणना और इंजीनियरिंग का कमाल था, जिससे दर्पणों और लैंसों को एक खास कोण पर स्थापित किया गया, जिससे किरणें सीधे रामलला के मस्तक पर सुशोभित हुईं। इस प्रक्रिया में सौर संरेखण और भारतीय खगोलशास्त्र के सटीक ज्ञान का प्रयोग किया गया। पहले ऐसा करना हर वर्ष रामनवमी के दिन के लिए प्रस्तावित था लेकिन अब से हर दिन ऐसा किया जाएगा।
क्या पहले भी ऐसा कहीं हुआ?
मुगलों द्वारा क्षतिग्रस्त किए जाने के पहले तक ओडिशा स्थित कोणार्क के सूर्य मंदिर के मुख्य गर्भगृह तक भी सूर्य की पहली किरणें पहुंचती थीं, लेकिन यहां किसी प्रतिमा के मस्तक पर सटीक तिलक नहीं होता था। इसी तरह महाराष्ट्र के कोराडी मंदिर में भी सूर्य की किरणें एक विशेष दिन गर्भगृह में प्रवेश करती हैं। ऐसे ही मदुरै के मीनाक्षी मंदिर (तमिलनाडु) में भी सूर्य की रोशनी गर्भगृह तक पहुंचती है। बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर) में भी विशेष संरेखण के जरिए शिवलिंग पर एक निश्चित समय सूर्य की रोशनी पड़ती है। लेकिन इन सभी मंदिरों में किसी मूर्ति के सटीक मस्तक पर तिलक होने की तकनीक पहले कभी नहीं थी। ऐसी विशिष्ट तकनीक पहली बार प्रयोग की गई। पूरे विश्व की बात करें तो अबू सिंबल मंदिर (मिस्र) में हर वर्ष 22 फरवरी और 22 अक्तूबर को सूर्य की किरणें सीधे फराओ रामसेस द्वितीय की मूर्ति पर पड़ती हैं। लेकिन मूर्ति के मस्तक पर सटीक ढंग से महज कुछ मिनटों के लिए सूर्य की किरणें नहीं गिरतीं।
बड़ी तकनीक बेहतरीन समन्वय का परिणाम
यह तकनीक वास्तव में इंजीनियरिंग और खगोलशास्त्र का संगम है। इस तकनीक में खगोलशास्त्र, भौतिकी और प्रकाश विज्ञान का एक साथ उपयोग किया गया है। वास्तव में यह दुर्लभ संरेखण यानी रेयर एलाइनमेंट, सटीक काल गणना और दर्पण-लेंस प्रणाली के बेहतरीन समन्वय का नतीजा होती है। पहली बार किसी मंदिर में यह सूर्य किरण तिलक धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बना है। सूर्य तिलक बेहद जटिल तकनीकी है। किसी खास दिन, केवल कुछ तय क्षणों के लिए इसे सुनिश्चित करना भी बड़ी विशेषज्ञता है।
नित्य ऐसे होगा सूर्य तिलक
चूंकि रामनवमी से हर दिन सूर्य तिलक होना है, जिस दिन सूर्य उगने के समय बारिश हो रही होगी, धुंध और कोहरा होगा तब यह कैसे संभव होगा? जानकारों के अनुसार अगर किसी दिन मौसम की खराबी के कारण सूर्य दिखाई नहीं देगा, व तकनीक प्रत्यक्ष सूर्यप्रकाश पर निर्भर होगी, तब तो उस दिन सूर्य तिलक संभव नहीं। दुनिया के किसी भी स्थान पर 100 फीसदी ऐसा करना प्राकृतिक ढंग से सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। लेकिन बिना प्रत्यक्ष सूर्योपासना के भी विभिन्न वैज्ञानिक तकनीक से संभव है।
कृत्रिम विकल्प से संभव है
यदि मंदिर प्रशासन चाहे, तो कुछ वैकल्पिक तकनीकी समाधान अपनाए जा सकते हैं जैसे आर्टिफिशियल लाइटिंग सिस्टम। जिस तरह से सौर ऊर्जा संयंत्रों में सोलर लैंप का उपयोग किया जाता है, उसी तरह विशेष प्रकार की प्रकाशीय व्यवस्था यहां भी की जा सकती है। यह एलईडी या लेजर तकनीक का उपयोग कर सूर्य के प्रकाश का कृत्रिम रूप तैयार कर सकती है। रिफ्लेक्टर मिरर सिस्टम से भी यह संभव है। पिछले दिनों के एकत्रित प्रकाश का उपयोग किया जा सकता है। एक अन्य विकल्प थ्री डी प्रक्षिप्ति या होलोग्राम तकनीक भी हो सकती है, जो तिलक के प्रभाव को ठीक वैसे ही दिखाएगी जैसा वास्तविक सूर्य तिलक के दौरान होता है। हालांकि मंदिर प्रशासन ने अब तक किसी आपातकाल में कृत्रिम विकल्प अपनाने की घोषणा नहीं की है।
...और भी तकनीक हैं
कई बार मौसमी परिस्थितियों के चलते सामान्यतः सूर्य उगता हुआ नहीं दिखाई देता, लेकिन वैज्ञानिक यही कहते हैं कि तब भी सूरज बादलों के पार उगा होता है और उसकी रोशनी किसी न किसी रूप में धरती में आ रही होती है। वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से इस रोशनी का इस्तेमाल सूर्य तिलक के लिए संभव है। इसके लिए आधुनिक प्रकाशीय तकनीकों (ऑप्टिकल टेक्नोलॉजीज) और सौर ऊर्जा संग्रहण प्रणालियों का उपयोग किया जा सकता है। ऑप्टिकल सेंसर और रिले मिरर के साथ-साथ सूर्य ट्रैकिंग सेंसर के जरिए जब सूरज उगा हुआ न दिखे तब भी यह संभव है। क्योंकि ये सेंसर सूर्य की स्थिति को ट्रैक करते हैं, भले ही वह बादलों के पीछे छिपा हो। तो वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से बादलों के बावजूद सूर्य तिलक संभव है, लेकिन इसके लिए सौर ट्रैकिंग, रिले मिरर, ऊर्जा संचयन जैसी लेजर तकनीकों का उपयोग करना होगा। - इ.रि.सें.