भौगोलिक चुनौतियों के साथ आस्था की यात्रा
आदि कैलास एक अद्भुत और आध्यात्मिक स्थल है, जो पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। यह स्थान भगवान शिव के निवास स्थल के रूप में जाना जाता है और इसकी यात्रा को एक चुनौतीपूर्ण लेकिन दिव्य अनुभव माना जाता है। हाल ही में यहां सड़क मार्ग की सुविधाओं में सुधार हुआ है, जिससे भक्तों के लिए यात्रा आसान हो गई है। आदि कैलास न केवल आध्यात्मिक तृप्ति का केंद्र है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और शांति भी अद्वितीय है।
मनोज वार्ष्णेय
उत्तराखंड के चारधामों के बाद अब स्पीरिचुअल टयूरिज्म के लिए आदि कैलास एक नया सर्किट बनकर तेजी से सामने आया है। आदि कैलास, कल्पेशवर महोदव के बाद आसानी तथा कम कठिनाइयों से पहुंंच जाने के कारण भक्तों की आस्था का केन्द्र बनकर उभर रहा है। शिव के धामों में सर्वाधिक कठिनाई कैलास-मानसरोवर की यात्रा में होती है और उसके बाद केदारनाथ, मद्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ की यात्रा आती हैं। अमरनाथ गुफा की यात्रा में अब गत वर्ष से काफी सहूलियत हुई हैं पर जब से आदि कैलास की यात्रा सड़क बन जाने से आसान हुई है तब से यहां पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। आदि कैलास का आध्यात्मिक महत्व सनातन धर्म को मानने वालों में बहुत गहरा है।
ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव का सांसारिक निवास स्थान है। यहां पर वह अपनी पत्नी देवी पार्वती के साथ निवास करते हैं। पौराणिक ग्रंथों के आधार पर कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने गहन ध्यान लगाया था।
आदि कैलास की ऊंची चोटी लगभग 6.191 मीटर तक है। यहां की यात्रा साहस के साथ ही आश्चर्य में डालने वाली होती है। सही अर्थों में यहां आना न सिर्फ आध्यात्मिक तृप्ति का केन्द्र बनता है बल्कि हमारे शरीर को चुनौती के लिए भी जागरूक करता है। पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलास मंदिर के पट वर्ष 2024 में मई के अंत में खुले थे और लगभग 150 दिनों की यात्रा में 32 हजार से अधिक यात्रियों ने दिव्य दर्शन किए। वर्ष 2023 में यहां पर लगभग दस हजार भक्त आए थे। अब जब यहां पर सड़क की बेहतर सुविधा के साथ ही रहने आदि की भी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं तो इस वर्ष एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। हालांकि, अभी यात्रा की आधिकारिक तिथि घोषित नहीं हुई है पर अप्रैल के तीसरे सप्ताह में इस यात्रा के आरंभ होने की संभावना बन रही है।
आदि कैलास की यात्रा के लिए ऐसे तो कई द्वार हैं पर सर्वाधिक प्रचलित रास्ता और सुरक्षित मार्ग काठगोदाम से होकर जाता है। काठगोदाम से भीमताल होते हुए कैचीधाम, चितई गोलू देवता, जागेश्वर महादेव होते हुए धारचूला तक पहुंचा जा सकता है। इसके बाद गुंजी/नाभि होते हुए ओम पर्वत के दर्शन होते हैं। अपेक्षाकृत रास्ते पहले के मुकाबले काफी अच्छे हो गए हैं, इसलिए यदि कम समय में यात्रा करनी हो तो काठगोदाम से सीधे धारचूला और वहां से ओम पर्वत होते हुए आदि कैलास की यात्रा चार दिनों में पूरी की जा सकती है। रास्ते में टनकपुर में माता पूर्णागिरी के धाम के दर्शनों का लाभ भी लिया जा सकता है। गुंजी मोटरयात्रा का आखिरी पड़ाव है उसके बाद ट्रैकिंग करके आदि कैलास के दर्शन किए जा सकते हैं। अभी भी करीब चार से पांच किलोमीटर की ट्रैक यात्रा का रोमांच यहां पर मिलता है।
आदि कैलास यात्रा के साथ ही ओम पर्वत की यात्रा भी हो जाती है। ओम पर्वत पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 170 किलोमीटर दूर नाभी में स्थित है। मान्यता है कि इस पर्वत पर शिव की मौजूदगी हमेशा रहती है। स्कंद पुराण में ओमपर्वत की यात्रा को कैलास मानसरोवर की यात्रा के समान ही महत्व दिया गया है। ओम पर्वत पर जब बर्फ होती है तो इस पर ओम की आकृति साफ नजर आती है। माना जाता है कि दुनिया में ओम की आकृति के आठ पर्वत हैं लेकिन अभी तक इसी पर्वत के दर्शन आसानी से होत हैं। इधर डीडीहाट क्षेत्र में भी एक ओम पर्वत पूर्व दिशा में कुछ दिनों से नजर आ रहा है। मुनस्यारी तथा धारचूला के बीच में इसकी लोकेशन ट्रेस हुई है। इस ओम पर्वत के दर्शन दोपहर को बेहतर हो रहे हैं। आदि कैलास-ओम पर्वत यात्रा के साथ ही पवित्र पार्वती सरोवर भी आपको देवी पार्वती की अर्चना करने को आमंत्रित करता है।
आदि कैलास-ओमपर्वत यात्रा के दौरान कुछ सावधानियां जरूरी हैं। दूसरी तीर्थों के मुकाबले यहां पर दुश्वारियां अधिक हैं और सुविधाएं कम। इसलिए आपका सेहतमंद होना बहुत जरूरी है। इस यात्रा में जाने की अनुमति से पहले स्वास्थ्य प्रमाण पत्र देना अनिवार्य होता है तभी आपको इनरलाइन परमिट उपलब्ध होगा। चूकि यहां पर अभी पहाड़ों के माल रोड जैसी व्यवस्था नहीं है और न ही कोई स्टार होटल आदि हैं इसलिए पहले ही से डॉरमैट्री व्यवस्था में रहने के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए। सर्दी-गर्मी इस यात्रा की विशेषता है। कुछ स्थानों पर आपको तापमान 37-39 डिग्री तक मिल सकता है तो जैसे-जैसे आप शिवधाम के नजदीक पहुंचते हैं वैसे-वैसे यह तापमान दो-तीन डिग्री तक जा सकता है। बेहतर होगा कि आप गर्म कपड़ों के साथ कान-सिर को बचाने के लिए ऊनी वस्त्र आदि प्रचुर मात्रा में लेकर चलें।
इस स्पीरिचुअल सर्किट की यात्रा कैलास मानसरोवर जितनी महंगी तो नहीं है पर सुविधाओं के आधार पर यह प्रतियात्री 15 से 20 हजार रुपये तक हो सकती है। यदि आप यहां पर खुद के वाहन से आते हैं तो भी आपको धारचूला के बाद स्थानीय वाहन से ही यात्रा की अनुमति होगी। जहां तक यात्रा करने का सबसे बेहतर समय क्या है तो यह मई से जून तथा सितंबर से अक्तूबर में यहां आना उत्तम है। आप अपनी तैयारियों में इनर लाइन परमिट तथा स्वास्थ्य प्रमाण पत्र को सबसे ऊपर रखें और यदि किसी टूर आपरेटर के माध्यम से यह यात्रा कर रहे हैं तो यात्रा व्यय आदि की पूरी जानकारी जरूर कर लें। चूंकि यह क्षेत्र सेंसटिव जोन में आता है अत: बेहतर होगा कि आप अपने साथ प्लास्टिक कम से कम ले जाएं और जो भी ले जाएं वह वापस आए इसका ध्यान रखें।