दिलचस्प जीवन चक्र है साहसी-संघर्षशील जीव का
तटीय केकड़ा एक साहसी और संघर्षशील जीव है, जो सागर तटों पर पाया जाता है। यह अपनी शारीरिक संरचना और शिकार की आदतों के लिए प्रसिद्ध है, साथ ही इसका जीवनचक्र और प्रजनन प्रक्रिया भी काफी दिलचस्प है। तटीय केकड़ा प्राकृतिक परिवर्तनों के अनुरूप ढलता है और अपनी विविधतापूर्ण रंगों और डिजाइनों से पहचाना जाता है।
के.पी. सिंह
तटीय केकड़ा सागर तटों पर रहने वाला एक साहसी एवं लडाकू केकड़ा है। यह खतरा निकट होने पर अपने पंजे ऊपर कर लेता है। यह उसकी आत्मरक्षा की मुद्रा होती है, किंतु इसे देखने पर ऐसा लगता है मानो यह लड़ाई के लिए तैयार हो। तटीय केकड़ों की अनेक जातियां हैं, जिनमें यूरोप का तटीय केकड़ा प्रमुख है। यह यूरोप के पश्चिमी भागों के सागर तटों पर बहुतायत से मिलता है। यूरोप का तटीय केकड़ा अटलांटिक महासागर में उत्तर अमेरिका के सागर तटों पर भी केपकाड से न्यूजर्सी तक देखा जा सकता है। यहां इसे हरा केकड़ा कहते हैं। यूरोप तथा उत्तर अमेरिका में पाए जाने वाले तटीय केकड़ों में हरा रंग मुख्य रूप से नर का होता है। वयस्क मादाओं का रंग प्रायः नारंगी होता है। इनके बच्चों के रंगों और डिजाइनों में काफी विविधता होती है। कुछ काले होते हैं, तो कुछ हरे, कुछ सफेद-लाल होते हैं, तो कुछ लाल-काले होते हैं। ये बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, इनके रंगों की विविधता कम होती जाती है, और वयस्क होते-होते यह विविधता पूरी तरह समाप्त हो जाती है। तटीय केकड़ों की कुछ जातियां दक्षिण अमेरिका में ब्राजील के सागर तटों पर, उत्तरी अफ्रीका के सागर तटों पर, तथा श्रीलंका, भारत, ऑस्ट्रेलिया आदि के सागर तटों पर भी पाई जाती हैं।
तटीय केकड़ा दलदली या चट्टानी जगह पर रहना पसंद करता है। यह ताजे पानी में ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता। दिन के समय यह चट्टानों की दरारों में छिपा रहता है और रात में सक्रिय होता है। ज्वार के समय यह सागर तट पर आ जाता है, और ज्वार के लौट जाने पर भी वहीं बना रहता है। सर्दियों में ज्वार के साथ वापस लौट जाता है। यह जमीन और पानी दोनों में आसानी से रह सकता है, लेकिन यह अच्छा तैराक नहीं है। इसकी शारीरिक संरचना वास्तविक केकड़े के समान होती है। यह पानी में घुली हुई ऑक्सीजन के साथ ही सीधे हवा से भी सांस ले सकता है। नर तटीय केकड़े का पेट पांच भाग वाला होता है, जबकि मादा के पेट में सात भाग होते हैं।
तटीय केकड़ा एक अच्छा शिकारी जीव है, जो उन सभी जीवों का शिकार करता है जिन्हें यह मार सकता है। शिकार के लिए यह अपने पैरों के चिमटे का उपयोग करता है। इसके पैरों के चिमटे बहुत मजबूत और ताकतवर होते हैं। तटीय केकड़ा शिकार न मिलने पर सड़ा-गला मांस भी खा लेता है। इसमें बाह्य समागम और बाह्य निषेचन पाया जाता है। तटीय केकड़ों में पूरे वर्ष समागम और प्रजनन चलता रहता है, लेकिन फरवरी में इनमें प्रजनन चरम सीमा पर होता है।
मादा तटीय केकड़ा अपने निषेचित अंडों को परिपक्व होने तक अपने पेट के नीचे रखती है। वसंत और गर्मियों के आरंभ में अंडे फूटते हैं और इनसे बड़ी संख्या में लार्वे निकलते हैं। तटीय केकड़े के लार्वे जन्म देने वाले माता-पिता से पूरी तरह भिन्न होते हैं, और चार अवस्थाएं पार करने के बाद छोटे से वयस्क केकड़े जैसे बन जाते हैं। इसका विकास बड़ी धीमी गति से होता है। इसके दो सेंटीमीटर लंबे बच्चे के शरीर पर पीले, लाल, सफेद, काले आदि रंग और विभिन्न प्रकार की डिज़ाइनों का पाया जाना सामान्य है। जैसे-जैसे ये बढ़ते हैं, इनके रंगों और डिज़ाइनों की विविधता कम होती जाती है। तटीय केकड़ा का लार्वा छह बार निमोचन करता है, और अंतिम बार निमोचन करने के बाद बच्चा तटीय केकड़ा जैसा दिखने लगता है। अब ये जमीन पर चल सकता है तथा अपने पैरों के तीसरे और चौथे जोड़े को अपने आवरण पर रखकर तैर सकता है। तटीय केकड़ा का लार्वा बच्चा केकड़ा बनने के बाद भी निमोचन करता रहता है। इसके बाद यह एक बार विशेष निमोचन करता है, और इसके प्रजनन अंग निकलते हैं। बच्चा केकड़ा बनने के बाद भी 10 से 11 बार निमोचन करता है। मादा तटीय केकड़े के 6.5 सेंटीमीटर का हो जाने और नर के 7.5 सेंटीमीटर होने पर निमोचन बंद हो जाता है। ये गर्मियों में अधिक निमोचन करते हैं।
निमोचन के समय यह अपने शरीर में अपने वजन का 70 प्रतिशत तक पानी भर लेता है, जिससे इसका शरीर फूल जाता है और ऊपर का आवरण अनेक जगहों से चटक जाता है, फिर धीरे-धीरे मरकर शरीर से अलग हो जाता है। तटीय केकड़े का नया आवरण बहुत कोमल होता है। अतः इसे उस समय तक छिपकर रहना पड़ता है, जब तक यह कठोर नहीं हो जाता। तटीय केकड़ा स्वजाति भक्षी होता है। अगर यह अपने शत्रुओं से बच जाए तो यह लगभग तीन वर्ष की आयु तक जीवित रहता है, लेकिन मानव से नहीं बच पाता। यूरोप के अनेक देशों के लोग तटीय केकड़े को बहुत शौक से खाते हैं। इ.रि.सें.