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तरुण कुमार के दिए संस्कारों ने निखारा जया को

04:05 AM Apr 12, 2025 IST
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तरुण कुमार भादुड़ी प्रतिष्ठित पत्रकार व लेखक थे। 1948 में उन्हें कन्या रत्न जया भादुड़ी की प्राप्ति हुई। पिता तरुण जी के प्रयास व संस्कार ही थे कि जया भादुड़ी के नामी अभिनेत्री बनीं। तरुण जी नागपुर में रिपोर्टर थे। आर्थिक स्थिति बस ठीक ही थी और बेटी एक आम स्कूल में पढ़ती थी। बाद में संवाददाता बन भोपाल आये। वेतन बढ़ा तो जया का एडमिशन कॉन्वेंट में कराया। जया पढ़ने में तेज थी। वहीं छोटी उम्र में फिल्मों में शुरुआत की, फिर जया ने फिल्म गुड्डी में अभिनय से सबका दिल जीत लिया। उसके बाद उपहार, कोरा कागज़, ज़ंजीर, अभिमान और शोले जैसी फिल्मों में यादगार अभिनय किया।

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कृष्ण कुमार शर्मा
1978 का साल था वो। मैंने आईआईएमसी दिल्ली से जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद समाचार एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार के दिल्ली कार्यालय में बतौर उपसंपादक ज्वाइन किया । लेकिन कुछ ही माह बाद मुझे भोपाल कार्यालय का काम देखने का आदेश दिया गया। भोपाल जाकर कहां रहूंगा ये समस्या थी। संघ से पुराने संबंधों के चलते मेरी व्यवस्था प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष मुकुंद सखा राम निवालकर जी के यहां हो गई । जब मैं पहले दिन वहां पहुंचा तो उनके प्रतीक्षा कक्ष में 7-8 लोग पहले से ही विराजमान थे । इनमे से अर्जुन सिंह को,जो तब विपक्ष के नेता थे, पहचान सका । मैंने पत्र विधान सभा अध्यक्ष के निजी सचिव सदाशिव मुक्तिबोध को दिया । थोड़ी ही देर में निवालकर जी आए और उन्होंने फौरन सचिव को मुझे बुलाने को कहा ।
बाहर देखा एक वरिष्ठ सज्जन कुछ भड़के हुए अंदाज़ में अर्जुन सिंह से बात कर रहे हैं। उन महोदय ने पूछा - आपकी तारीफ ? मैंने अपना संक्षिप्त परिचय दिया। मैंने पूछा क्या आप भी पत्रकार है तो बोले - जी हां ‘स्टेट्समैन’ का यहां ब्यूरो चीफ हूं । मैंने भी अपना परिचय दिया ।
अगले दिन मुक्तिबोध जी ने मुझे बताया कि जिनसे आप बात कर रहे थे वो भोपाल के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी थे । जो जया भादुड़ी के पिता और अमिताभ बच्चन के ससुर भी हैं। उनकी नाराजगी का कारण ये था कि वो और अर्जुन सिंह व दिग्विजय सिंह आपसे पहले आए हुए थे और निवालकार जी ने पहले आपको बुला लिया।
तीन दिन बाद ही मेरी तरुण जी से फिर मुलाकात हुई। भोपाल में राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था । मैंने उस दिन अनजाने में उपजी नाराजगी को शांत करने और उम्र में पिता तुल्य होने के कारण उनके पैर छुए । वो भी सहृदयता से बोले आओ तुम भी चर्चित तैराक बूला के इंटरव्यू के कुछ प्वाइंट नोट करके रिपोर्ट तैयार कर लो।
फिर एक बार कुशाभाऊ ठाकरे की प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद तरुण जी बोले -चलो मेरा घर पास ही है। मैं उनकी कार में बैठ कर श्यामला हिल्स स्थित उनके घर पहुंचा। ड्राइंग रूम में जया और अमिताभ की फोटुएं लगी थी । बातों ही बातों में मैंने उनका इंटरव्यू ले डाला । तरुण जी प्रचार से दूर रहने वाले व्यक्ति थे । वे जया भादुड़ी जैसी अभिनेत्री के पिता , अमिताभ बच्चन के ससुर , हरिवंश राय बच्चन जैसे कवि के समधी और खुद भी नामी पत्रकार -लेखक थे। उनके व्यवहार से पता नहीं चलता था कि वो कितने विशिष्ट हैं ।
भादुड़ी जी ने जर्नलिज्म कैरियर अंग्रेजी दैनिक ‘नागपुर टाइम्स ‘से 1948 में शुरू किया। उनकी शादी 1944 में पटना की सुशिक्षित-सुंदर युवती इंदिरा गोस्वामी से हुई थी । 9 अप्रैल 1948 में उन्हें कन्या रत्न की प्राप्ति हुई। जिसे बाद में पूरी दुनिया ने जया भादुड़ी के नाम से जाना। तरुण जी तब नागपुर में धन-तौली मुहल्ले में रहते थे। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। रिपोर्टिंग साइकिल से करने जाते थे और जया बंगाली गर्ल्स हाई स्कूल नाम के एक सामान्य स्कूल में ही पढ़ती थी। 1956 में राज्य पुनर्गठन पर नागपुर महाराष्ट्र में चला गया। मध्य प्रदेश नाम से एक बड़ा राज्य बना। स्टेट्समैन को भोपाल के लिए संवाददाता चाहिए था। तरुण जी ने आवेदन किया और पर्याप्त अनुभव, अंग्रेजी और बंगला भाषाओं में बढ़िया पकड़ होने के कारण सेलेक्ट हुए । फिर वो नागपुर से भोपाल आ गए । अब उनकी तनख्वाह पहले से तीन गुनी हो गई थी। यहां आकर उन्होंने पहले रिपोर्टिंग की भागदौड़ अच्छे से करने हेतु एक मोटर साइकिल खरीदी रॉयल इनफ़ील्ड। साथ ही बेटी जया का एडमिशन भोपाल के सबसे अच्छे स्कूल सेंट जोसेफ कॉन्वेंट में कराया। जया के आगमन को वो बहुत लकी मानते थे।
जया ना केवल पढ़ने में तेज थी बल्कि स्कूल के नाटकों, खेलकूद और एनसीसी में भी रुचि पूर्वक भाग लेती थी। 1965 में लाल बहादुर शास्त्री के हाथों उन्हें एनसीसी के बेस्ट कैडिट का मेडल भी मिला था। इतनी सारी एक्टिविटीज के बीच 6 साल का भरत नाट्यम कोर्स भी किया । केवल 12-13 साल की सुकुमारी जया के जीवन में एक ऐसी घटना हुई, जिसने पिता तरुण को गौरवान्वित होने का तो मौका दिया ही, जया को फिल्मों में कैरियर बनाने को भी प्रेरित किया।
बंगाली फिल्मों के सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक तपन सिन्हा तरुण जी के क्लास फेलो हुआ करते थे। उन्होंने 1962 के आसपास एक खूबसूरत फिल्म बनाई थी ‘क्षुधित पाषाण’ जिसकी शूटिंग भोपाल में हुई। तरुण जी ने दोस्ती का फ़र्ज़ निभाते हुए भोपाल में शूटिंग का पूरा इंतजाम देखा था। फिल्म हिट रही और सिल्वर जुबली समारोह में तरुण को सपरिवार आमंत्रित किया। यहां सत्यजित राय ने जया को देखा और अपनी एक नई फिल्म ‘महानगर’ में एक अच्छी भूमिका देने का प्रस्ताव दिया। सत्यजित राय जो पाथेर पांचाली से दुनिया में नाम कर चुके थे, भला इसके लिए स्कूल कैसे मना कर देता। अंततः जया ने प्रिंसिपल से अनुमति लेकर फिल्म में काम किया।
बातचीत के दौरान मैंने देखा कि तरुण जी टाइप राइटर से कोई पत्र टाइप कर रहे हैं। वे सिर्फ एक अंगुली से ही टाइप करने लगे। वो बोले ,मुझे कभी टाइप सीखने की इच्छा नहीं हुई । काग़ज़ पर पेन से लिखने में ही अच्छा लगता है । इसके बाबजूद ये तीन किताबें लिख चुके थे। एक थी ‘अभिशप्त चंबल’ दूसरी थी ‘मरुप्रांतर’ (बंगाली में) और तीसरी थी ‘रोड टू कश्मीर’ (अंग्रेजी)।
शायद 1967 का साल था। जया ने हायर सेकंडरी परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली। उनका मन हुआ कि पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग का कोर्स किया जाए। फॉर्म भरा और फॉर्म के साथ सत्यजित राय का एक अनुशंसा पत्र भी संलग्न किया जिसमें उन्होेंने लिखा था —‘अभी तक मैंने जितने भी नवोदित कलाकारों के साथ काम किया, जया उनमें शायद सबसे अच्छी थी।’ प्रशिक्षणार्थियों के चयन के लिए इंटरव्यू दिल्ली में हुए। इंटरव्यू बोर्ड में शामिल थे बलराज साहनी, कामिनी कौशल जैसे दिग्गज कलाकार। उन्होंने कहा था कि अगर इस लड़की को एडमिशन नहीं दिया, तो यह कला के क्षेत्र में शताब्दी की सबसे बड़ी भूल होगी। जया जब पूना फिल्म इंस्टीट्यूट में पहुंचीं, तो उस बैच में शत्रुघ्न सिन्हा, रेहाना सुल्तान और डैनी भी थे। उन दिनों इंस्टीट्यूट में दो सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षणार्थियों को स्कॉलरशिप देने का भी चलन था जिसके लिए परीक्षा होती थी। परीक्षा के बाद पहली छात्रवृत्ति मिली जया को,और दूसरी डैनी को।
ऋषिकेश मुखर्जी उन दिनों ‘गुड्डी’ फिल्म बना रहे थे। जिसमें उन्हें एक कम उम्र और छोटी हाइट की एक खूबसूरत और मासूम सी लड़की की तलाश थी । इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर जगत मुरारी ने जया भादुड़ी के नाम की अनुशंसा की । और ऋषि दा ने उन्हें देखते ही पसंद कर लिया था। मगर इंस्टीट्यूट के नियमों के मुताबिक कोर्स पूरा करने से पहले कोई भी छात्र फिल्म में काम नहीं कर सकता था। ऋषि दा इसके लिए मान गए। जब 1970 में जया ने इंस्टीट्यूट के श्रेष्ठतम प्रतिभागी के रूप में कोर्स पूरा किया तो ऋषि दा ने एक लाख साइनिंग अमाउंट दिया, जया ने उससे 15 अगस्त 1970 को घर के लिए पहला फ्रिज खरीदा। सोलह अगस्त 1970 को भोपाल से मोहन स्टूडियो मुंबई के लिए रवाना हुई
ऋषि दा के निर्देशन में बनी और जया और धर्मेंद्र (मेहमान भूमिका) के लाज़वाब अभिनय से सजी गुड्डी (1971) ने सबका दिल जीत लिया। फिर हिंदी सिनेमा को जया भादुड़ी के रूप में ऐसा नायाब सितारा मिल गया, जिसने उपहार (1971), कोशिश (1972) कोरा कागज़ (1974) ज़ंजीर (1973), अभिमान (1973), चुपके चुपके (1975), मिली (1975) और शोले (1975) जैसी अनेक फिल्मों में यादगार अभिनय के जरिए करोड़ों दर्शकों का दिल जीता। उन्हें अमिताभ बच्चन जैसा महानायक पति के रूप में मिला । नूतन जैसी महानतम अभिनेत्री के समकक्ष 9 बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिले, पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पिछले 20 साल से राज्यसभा सांसद हैं।
अपनी बेटी की इतनी सारी उपलब्धियों को देखने के लिए उनके पिता और मेरे परम आदरणीय मित्र तरुण भादुड़ी जी आज मौजूद नहीं हैं। उनका निधन करीब 27 साल पूर्व 1996 में हो गया। आखिरी बार कोई तीस साल पहले 1993 में मिला था उनसे।

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