राष्ट्रीय गौरव का केंद्र बनें सरकारी स्कूल : रिपोर्ट
नयी दिल्ली : भारत के छात्रों को वैश्विक मानकों के अनुरूप तैयार करने और एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए काम कर रहे नॉलेज एंड अवेर्नेस मैपिंग प्लैट्फॉर्म (केएएमपी) ने अपने ताजा अध्ययन में पाया है कि उत्तर भारत के सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों की उपलब्धता में गहरी खायी है, जो लगातार बढ़ती जा रही है। लाखों बच्चों के भविष्य की नींव रखने वाले सरकारी स्कूल आज मजबूरी में चुने जाने वाले स्कूल माने जाते हैं। निजी स्कूल जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अवसरों का प्रतीक बन चुके हैं, वहीं सरकारी स्कूलों को वंचित तबके के लिए आरक्षित समझा जाता है। यह असमानता हमारे समाज और राष्ट्र दोनों के लिए बड़ी चुनौती है।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा स्थापित नॉलेज एंड अवेर्नेस मैपिंग प्लैट्फॉर्म (केएएमपी) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर आशीष मित्तल कहते हैं कि निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूलों के बच्चों के मन में कमतरी का अहसास उनके आत्मसम्मान को ही चोट नहीं पहुंचाता, बल्कि उनके पूरे जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए सरकारी स्कूलों को 'गरीबों का स्कूल' नहीं, बल्कि 'सपनों का मंदिर' और 'राष्ट्रीय गौरव' का केंद्र बनाए जाने की जरूरत है। यह बदलाव न केवल बच्चों के जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को भी मजबूत करेगा।
रिपोर्ट के साथ ही इस बात का दावा किया गया कि छात्रों की वैज्ञानिक क्षमता व कौशल का मूल्यांकन और उन्नयन करने के उद्देश्य से स्थापित केएएमपी की मुफ्त ऑनलाइन कार्यशालाओं से अब तक 3.5 लाख से ज्यादा बच्चे लाभ उठा चुके हैं। इस दौरान इस प्लेटफॉर्म से जुड़े विशेषज्ञों ने पाया कि भारत का हर बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार, या खिलाड़ी बनने के सपने देखता है। लेकिन समान अवसर न मिल पाने के कारण उनके सपने पूरे नहीं हो पाते। हालांकि सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। 'पीएम-श्री स्कूल पहल' इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह योजना सरकारी स्कूलों को अत्याधुनिक '21वीं सदी के मॉडल स्कूल' में बदलने का प्रयास है। इस योजना के तहत शिक्षा के नए मानक स्थापित करने के लिए 14,500 से अधिक स्कूलों को विकसित किया जा रहा है। इन स्कूलों में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, आधुनिक शिक्षण पद्धतियां, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, और समग्र विकास पर जोर दिया जाएगा।
दिल्ली सरकार का मिशन बुनियाद प्राथमिक शिक्षा में सुधार का एक और बड़ा उदाहरण है, जिसने छात्रों की सीखने की क्षमता में 80% सुधार दिखाया। केरल के हाईटेक क्लासरूम प्रोजेक्ट ने सरकारी स्कूलों को स्मार्ट क्लास रूम में बदल दिया है। मध्याह्न भोजन योजना ने न केवल बच्चों को स्कूलों में बनाए रखा है, बल्कि उनके पोषण स्तर को भी बढ़ाया है। ये पहल सराहनीय हैं, लेकिन सरकारी और निजी स्कूलों के बीच का अंतर आज भी बच्चों के भविष्य के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। अब समय आ गया है कि सरकारी स्कूलों को 'राष्ट्रीय मॉडल स्कूल' बनाया जाए, जहां बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सह-पाठ्यक्रम अवसर, और भविष्य के लिए तैयार करने वाली शिक्षा मिल सके।
2021 के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) के आंकड़ों के अनुसार, कक्षा 5 के 50% सरकारी स्कूलों के छात्र बुनियादी गणित और पढ़ाई में कमजोर हैं, जबकि निजी स्कूलों के छात्रों में यह प्रतिशत काफी कम है। शिक्षकों की कमी, सुविधाओं का अभाव, और शिक्षा के प्रति उदासीनता ने सरकारी स्कूलों की छवि को धूमिल कर दिया है। इसके विपरीत, निजी स्कूलों में बेहतर शिक्षण पद्धतियां, आधुनिक तकनीक और व्यक्तिगत ध्यान बच्चों को उनके सपनों की दिशा में अग्रसर करता है।