संरक्षण से ही जुड़ा है पृथ्वी का अस्तित्व
शशांक द्विवेदी
पिछले दिनों लोकसभा के मानसून सत्र में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2022 बिना किसी विरोध के पारित हो गया। असल में यह विधेयक 2002 के जैविक विविधता अधिनियम को संशोधित करता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) के लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की सहायता के लिए लागू किया गया था। वर्ष 1992 में स्थापित सीबीडी यह मानता है कि देशों को अपने क्षेत्रों के भीतर अपनी जैविक विविधता को नियंत्रित करने का पूर्ण अधिकार है। इस विधेयक को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने 16 दिसंबर, 2021 को संसद में पेश किया था। बाद में इसे 20 दिसंबर, 2021 को एक संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया था क्योंकि इसको लेकर यह चिंता जताई गई थी कि यह संशोधन उद्योगों के पक्ष में है और सीबीडी की भावना के विपरीत है। इसकी ध्यान से जांच करने के बाद संयुक्त संसदीय समिति ने दो अगस्त, 2022 को संसद में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी, जिसमें सुझाव दिया गया था कि विधेयक पर कुछ छोटे बदलावों के बाद मंजूरी दी जा सकती है।
पूरी दुनिया की जलवायु में तेजी से परिवर्तन हो रहा है, बेमौसम आंधी, तूफ़ान और बरसात से हजारों लोगों की जान जा रही है, साथ ही सभी ऋतु चक्रों में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। सच्चाई यह है कि पर्यावरण या जैव विविधता संरक्षण सीधे-सीधे हमारे अस्तित्व से जुड़ा मसला है। हाल ही में विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ के अनुसार वैश्विक स्तर पर 1970 से 2018 के बीच 48 वर्षों के दौरान वन्य जीवों की आबादी में 69 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हैरान कर देने वाली बात है कि नदियों में पाए जाने वाले जीवों की करीब 83 फीसदी आबादी अब नहीं बची है। वर्ष 1970 के बाद फिशिंग 18 गुना बढ़ी है जिससे शार्क की आबादी में औसतन 71 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। दुनियाभर में पाए जाने वाले पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं की करीब एक-तिहाई प्रजातियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं। एक तरफ मानवीय जनसंख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, वहीं मानव अन्य जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को नष्ट कर उनकी जगह भी पसरता जा रहा है। वास्तव में जैव विविधिता के संरक्षण के बिना विकास का कोई महत्व नहीं है।
इस विधेयक में किए गए महत्वपूर्ण बदलाव औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देते हैं और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति का समर्थन करते हैं। वे इस क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान और निवेश को प्रोत्साहित करते हैं। साथ ही औषधीय उत्पाद बनाने वाले चिकित्सकों और कंपनियों के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण से अनुमति लेने की आवश्यकताओं को भी कम करते हैं। इसका अन्य उद्देश्य वन उपज का लाभ स्थानीय लोगों तक पहुंचाना भी है।
असल में यह संशोधन उन मुद्दों का समाधान नहीं करता, जिनका सामना भारत में जैव विविधता संरक्षण में करना पड़ता है। ऐसे में भारत को दिसंबर, 2022 में मॉन्ट्रियल में आयोजित सीबीडी के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन में स्थापित नए संरक्षण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कदम उठाने होंगे। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दुनिया के पास अब सिर्फ सात साल बचे हैं।
एक सच्चाई यह भी है कि जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के जितने भी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और कार्यक्रम होते हैं, उनमें विकासशील और विकसित देशों के बीच आर्थिक मुद्दों पर विवाद होता है। विकसित देश अधिक जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि विकासशील देश ही जैव विविधता दुनिया में गर्म होती जलवायु, कम होते जंगल, विलुप्त होते प्राणी, प्रदूषित होती नदियों, सभी को बचाने का काम करें। यहां तक कि इन कामों के लिए वे पर्याप्त आर्थिक मदद देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। जैव विविधता के लिए आधुनिक विकास और प्रकृति संरक्षण दोनों के बीच संतुलित तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है। जैव विविधता पर संकट इसका ही नतीजा है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था वर्ल्ड वाइल्ड फिनिशिंग ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि 2030 तक घने जंगलों का 60 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाएगा। वनों के कटान से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से कार्बन अधिशोषण ही वनस्पतियों व प्राकृतिक रूप से स्थापित जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न करेगी। मौसम के मिजाज में होने वाला परिवर्तन ऐसा ही एक खतरा है। इसके परिणामस्वरूप हमारे देश के पश्चिमी घाट के जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां तेजी से लुप्त हो रही हैं।
जैव विविधता के लिए आधुनिक विकास और प्रकृति संरक्षण दोनों के बीच संतुलित तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है। वस्तुतः कोरोना का वैश्विक संकट इसका ही नतीजा था और अभी भी बरक़रार है। जीव-जंतुओं और पौधों की लगभग 50 प्रजातियां रोजाना विलुप्त हो रही हैं, इसलिए आज पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण किया जाना जरूरी है। यह हमारी सोच में होना चाहिए कि जीव जंतुओं का महत्व हमसे कम नहीं है।
कुल मिलाकर देश के प्राकृतिक संसाधनों का ईमानदारी से दोहन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास के साथ-साथ जनता की सकारात्मक भागीदारी की जरूरत है। जनता के बीच जागरूकता फैलानी होगी, तभी इसका संरक्षण हो पायेगा। जैव विविधता के संरक्षण का सवाल पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़ा है।
लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।