पर्यावरण व किसान हित में धान की सीधी बिजाई
वीरेन्द्र सिंह लाठर
सरकारी नारा ‘धान छोड़े किसान’ हरियाणा और पंजाब के कर्णधारों के व्यावहारिक कृषि ज्ञान की गवाही तो नहीं देता है। बीते नौ वर्षों में ‘मेरा पानी-मेरी विरासत योजना’ के तहत हरियाणा में फसल विविधीकरण के नाम पर हजारों करोड़ रुपये बर्बाद हुए लेकिन धान क्षेत्र कम नहीं किया जा सका। इसके उलट धान नये क्षेत्रों महम, सिरसा, चरखी दादरी-भिवानी आदि में ज्यादा भूमि पर उगाई गई। यही हाल पंजाब का भी रहा है। दरअसल, धान राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है और किसान भी धान-गेहूं उगाना ज्यादा लाभदायक मानते हंै। तभी इन फसलों का रकबा बढ़कर कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसीलिये सरकार किसानों को धान-गेहूं फसल चक्र से बाहर नहीं निकाल पा रही है। हरियाणा में सरकार विविधता लाने के लिए अधिक पानी खपत वाली धान की फसल के बजाय मक्का, सूरजमुखी, मूंग जैसी फसलों और खेत खाली रखने वाले किसानों को प्रोत्साहन जैसी अव्यावहारिक योजना लागू कर रही है जो खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम से कम नहीं।
इन प्रदेशों के पश्चिमी शुष्क क्षेत्रों में फसल विविधीकरण के लिए कपास अच्छा विकल्प रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बीटी कपास की विफलता से परेशान किसानों ने भी कपास छोड़कर धान अपनाया है। हरियाणा सरकार के डीएसआर-2023 पोर्टल के अनुसार, कपास बहुल सिरसा जिले में 74,000 एकड़ भूमि पर धान की सीधी बिजाई हुई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तालिका के अनुसार, धान फसल किसानों को वार्षिक 101,190 रुपये प्रति हेक्टेयर लाभ देती है जो दूसरी खरीफ फसलों मक्का, बाजरा व मूंग के मुकाबले दुगनी लाभदायक है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के चार संस्थानों द्वारा भी पंजाब और हरियाणा में फसल प्रणालियों के विविधीकरण पर जून-2021 में एक नीति पत्र लाया गया, जिसमें माना कि धान-गेहूं के मुकाबले किसानों को अन्य फसलों पर अपेक्षाकृत कम फायदा मिलता है। यूं भी पंजाब-हरियाणा में फसल विविधीकरण व्यावहारिक नहीं हैं क्योंकि खरीफ सीजन में इन प्रदेशों में जलभराव बड़ी समस्या है जिससे यहां मक्का, बाजरा, मूंग उगाना सम्भव नहीं।
सदियों से पूर्वी व दक्षिण भारत सहित दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में धान मुख्य फसल रही है जहां बिना फसल विविधीकरण किये धान की सालभर में दो-तीन फसलें उगाई जाती है। बेहतर है कि भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए किसानों को धान-गेहूं फसल चक्र के बीच हरी खाद उगाने के लिए प्रोत्साहित करें। लेकिन पंजाब, हरियाणा की सरकारें वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव में फसल विविधीकरण का राग अलाप रही है। अमेरिका और यूरोप के देशों के मक्का किसानों के बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा महंगे बीजों के जरिये शोषण के विपरीत, भारतीय किसान धान-गेहूं में स्व-परागण बीज प्रणाली होने से प्रतिवर्ष महंगे बीज पर निर्भर नहीं हैं क्योंकि बीज वे स्वयं बना सकते हैं जबकि संकर किस्मों के महंगे बीज किसान को प्रतिवर्ष बाजार से ही खरीदने की मजबूरी रहेगी। इसलिये बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के संकर धान बीज 500 रुपये प्रति किलो के मुकाबले उन्नत पारम्परिक धान किस्मों के बीज मात्र 30-50 रुपये प्रति किलो उपलब्ध हैं। खास बात यह कि संकर बीजों की पैदावार भी पारंपरिक धान किस्मों से ज्यादा नहीं। दरअसल, बहुराष्ट्रीय कम्पनियां मार्किटिंग द्वारा महंगे संकर बीज किसानों को बेच रही हैं। किसानों को अपने महंगे बीजों के जाल में फंसाने के लिए अब जीएम सरसों और एचटी-धान हाइब्रिड बीजों की मंजूरी के लिए सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं। जबकि इन जीएम हाइब्रिड बीजों की पैदावार पारम्परिक किस्मों के मुकाबले ज्यादा नहीं है।
विविधीकरण थोपने का आधार रोपाई की गयी धान में सिंचाई पानी की ज्यादा खपत को बनाया जा रहा है जो सच भी है। लेकिन तथ्य यह भी कि हरित क्रांति के दौर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने को नीति नियंताओं ने ही धान की बौनी किस्माें के साथ रोपाई विधि को अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान से आयात कर ट्यूबवेल सिंचाई और समर्थन मूल्य द्वारा पंजाब-हरियाणा जैसे शुष्क प्रदेशों में लागू किया था। इसलिये भूजल बर्बादी के लिए किसान नहीं बल्कि सरकारें जिम्मेवार हैं। वहीं धान की फसल भूजल बर्बादी के लिए बदनाम है लेकिन मक्का और सूरजमुखी भी कम नहीं , क्योंकि इन फसलों को भी भूजल आधारित सिंचाई की ज़रूरत होती है। इसलिए भूजल संरक्षण के लिए सरकार को ‘प्रिजर्वेशन आफ सब सॉयल वाटर एक्ट’ में पहली जुलाई से पहले धान रोपाई और वसंतकालीन मक्का-सूरजमुखी फसलों पर भी प्रतिबन्ध लगाना चाहिए और सीधी बिजाई धान को प्रोत्साहन देना चाहिए। जिससे लागत, भूजल, ऊर्जा व लेबर की बचत होगी व ग्रीनहाउस गैस विसर्जन कम होगा। हरियाणा सरकार की वेबसाइट के अनुसार, 2022 में किसानों ने 72 हजार एकड़ में सीधी बिजाई धान उगाकर 31500 करोड़ लिटर भूजल की बचत की है। यानी प्रदेश के कुल धान क्षेत्र पर रोपाई की बजाय सीधी बिजाई कर, हरियाणा में सालाना 14-16 बीसीएम भूजल बचत की जा सकती है।
हरियाणा सरकार के कृषि विभाग के पोर्टल के अनुसार वर्ष-2023 खरीफ सीजन के लिए निर्धारित लक्ष्य 2.5 लाख एकड़ के मुकाबले किसानों ने 3 लाख एकड़ से ज्यादा भूमि पर धान की सीधी बिजाई तकनीक से की, जो किसानों द्वारा इस पर्यावरण हितैषी तकनीक की स्वीकृति को दर्शाता है।