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नेता बोले बेलगाम, बाकी बोलों पर लगाम

04:00 AM Mar 29, 2025 IST

सहीराम

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देखो जी, कुणाल कामरा अगर होली पर किसी नेता को गद्दार कहते तो यह कहकर जान छुड़ाई जा सकती थी कि बुरा न मानो होली है। पर होली तो हो ली। बहुत पहले! अब वह छूट नहीं मिल सकती, अब मुश्किल है। यह राह अगर इतनी ही आसान होती तो न पत्रकार जेल में जाते, न कॉमेडियन, न कार्टूनिस्ट और न ही सोशल मीडिया पर कोई कड़ी टिप्पणी करने वाले जेल जाते। खैर, अब क्योंकि होली चली गयी है तो किसी नेता को गद्दार कहने का बुरा तो माना ही जाना था। सो माना गया।
नेता कह सकते हैं कि देखिए अभिव्यक्ति की आजादी का हम भी सम्मान करते हैं। पर वह सीमा में होनी चाहिए। हम उस सीमा से बाहर हैं। वैसे भी गद्दार होने के लिए जरूरी होता है आदमी का नेता होना, राजा होना, वजीर होना, नगर सेठ होना या फिर कोई और प्रभावी व्यक्ति होना। आम आदमी की हैसियत ही नहीं होती गद्दार होने की। वह ज्यादा से ज्यादा धोखेबाज हो सकता है। गद्दार होने के लिए जयचंद होना जरूरी है, मीर कासिम होना जरूरी है। बस यह दो नाम काफी हैं। अट्ठारह सौ सत्तावन के गद्दारों के नाम पर पंगा हो सकता है। बड़े-बड़े राजे-महाराजे जो हुए। गद्दार तो आजादी के आंदोलन के भी बहुत थे, पर उनका नाम कैसे बताया जाए। सो तौबा!
खैर, पहले कॉमेडियनों को, हंसोड़ों को यह छूट होती थी कि जो बात हैसियतदार इज्जतदार लोग रिश्ते बिगड़ने के खतरों के चलते नहीं कह पाते थे, उसे वो कह देते थे। हमारे हरियाणा-पंजाब में मीर-मिरासी बड़े-बड़े चौधरियों को कड़वी से कड़वी बात बोल देते थे, फिर भी वो बुरा नहीं मानते थे। लेकिन अब नेता लोग बुरा मान जाते हैं। लेकिन बताते हैं कि पहले वे भी नहीं मानते थे। किस्सा है कि नेहरूजी ने उस जमाने के सबसे बड़े कार्टूनिस्ट शंकर से कहा था-शंकर मुझे बख्शना मत। लेकिन वह पुराना भारत था। नए भारत में नेता कहता है- मुझे छूना मत। वरना पार्टी कार्यकर्ताओं को भेज दूंगा, पुलिस को भेज दूंगा। मजा चखा दूंगा। कुणाल कामरा मजा चख रहे हैं। ऐसे में हम जैसे व्यंग्यकार होने का दम भरने वालों को भी डरना चाहिए कि पता नहीं किस बात पर मजा चखा दिया जाए। मजे के चक्कर से बच कर रहना है।
नेता, नेता को गद्दार कहे, चलता है। कॉमेडियन नेता को गद्दार कैसे कह सकता है। नेता, नेता को चोर कहे, चलता है। कॉमेडियन कैसे कह सकता है। उसकी हैसियत क्या है। नेता किसी को भी देशद्रोही कह सकता है, उसे पाकिस्तान भेजने की कह सकता है। पर आम आदमी नेता को कैसे देशद्रोही कह सकता है, गद्दार कह सकता है। नेता बोलता है तो कोई सीमा नहीं होती। लेकिन अभिव्यक्ति की सीमा तो होनी चाहिए।

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