कृत्रिम लाइट से धूमिल सितारों की झिलमिल
रेणु जैन
यह खबर बहुत चर्चित हो रही है कि तारों की जगमग कम हो रही है। सही भी है, अब वो दिन लगभग नहीं रहे जब खुले आकाश के नीचे सोने वाले अगर कहते थे कि नींद नहीं आ रही तो उनसे कहा जाता था कि तारे गिन लो, नींद आ जाएगी। आसमान में इतने तारे बिखरे रहते थे कि गिनना असंभव था। आज भी तारे तो वैसे ही बिछे हैं लेकिन नीचे से तकने वालों को कई जगह उनका नजारा देखना मुश्किल होता जा रहा है। चौंकिए नहीं, यहां बात हो रही है सूर्य के ढल जाने के बाद भी हमारी कार्य क्षमता को बरकरार रखने के लिए जरूरी आर्टिफिशियल लाइट की। कृत्रिम रोशनी वातावरण में प्रकाश प्रदूषण का बड़ा कारण बनता जा रहा है, जो कि वायु व जल प्रदूषण जितना खतरनाक है। इस कृत्रिम प्रकाश में राष्ट्रीय तथा राज्य मार्गों की स्ट्रीट लाइटों की भी भूमिका है। वहीं स्ट्रीटलाइट, जगमगाते बाजार, मॉल्स, विज्ञापन बोर्ड, वाहन लाइटें, घरों-दफ्तरों की लाइटें प्रकाश प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताए गए हैं।
चौंकाने वाले तथ्य
2016 में पत्रिका साइंस एडवांस द्वारा ग्लोबल लाइट पॉल्यूशन पर जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 80 फीसदी आबादी प्रकाश से प्रदूषित आसमान तले रहती है। प्रकाश प्रदूषण सालाना दस फीसदी बढ़ रहा है। इटली के वैज्ञानिक डॉ. सिजनोमे ने सेटेलाइट चित्रों की मदद से एक अध्ययन किया कि आकाश का 20-22 फीसदी भाग प्रकाश प्रदूषण की चपेट में है। कनाडा व जापान का 90 फीसदी, यूरोपीय संघ के देशों का 85 फीसदी तथा अमेरिका का 62 फीसदी आकाश प्रकाश प्रदूषण की गिरफ्त में है। वर्ष 2016 में नासा वैज्ञानिकों ने बताया, विश्व के कई हिस्सों में प्रकाश प्रदूषण लगातार फैल रहा है। नक्षत्र वैज्ञानिकों के अनुसार, साफ-सुथरी रात में किसी स्थान से लगभग 250 तारे देखे जा सकते थे। एक अध्ययन में, अमेरिका में न्यूयार्क के आसपास 250 एवं मैनहटन में सिर्फ 15-20 तारे ही दिखाई देते हैं। शोधकर्ताओं ने आगाह किया, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आसमान भी अलग-अलग दर से चमकता है। भारत के नई दिल्ली स्थित नेहरू तारामंडल के खगोल शास्त्रियों ने प्रकाश प्रदूषण के करीब 2800 किमी ऊंचाई से उपग्रहों से लिए चित्रों में पाया कि यूरोप, अमेरिका, जापान के बाद भारत का ही स्थान है। इस अध्ययन में प्राप्त चित्रों के अनुसार, दिल्ली गहरे प्रकाश प्रदूषण से प्रभावित था। अन्य शहरों में चंडीगढ़, अमृतसर, पुणे, मुंबई, कलकत्ता, लखनऊ तथा इंदौर भी शामिल हैं।
सेहत के लिए खतरा
बढ़ता प्रकाश प्रदूषण मानव स्वास्थ्य में तनाव, सिरदर्द, दृष्टि में कमी, हार्मोन्स असंतुलन, नींद में खलल, व याददाश्त में नुकसान पहुंचाता है। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार, जिन महिलाओं के आसपास रात में ज्यादा रोशनी रहती है उनमें स्तन कैंसर का खतरा ज्यादा है। चिंताजनक है, अमेरिका और यूरोप के 99 फीसदी लोग सूर्य की प्राकृतिक रोशनी और बल्ब की कृत्रिम लाइट में अंतर नहीं कर पाते। कारण कि वे 24 घंटे बनावटी रोशनी में रहते हैं।
पेड़-पौधे भी परेशान
वैज्ञानिकों का मानना है, आने वाले वक्त में पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान प्रकाश प्रदूषण से ही होगा। रात की तेज रोशनी फसल के लिए भी नुकसानदेह है। पेड़-पौधे फोटो सिंथेसिस क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। रात का अंधेरा उन्हें अहम यौगिक ‘फाइटोक्रोम’ तैयार करने में मदद करता हैैं। हर वक्त की रोशनी से उनकी भोजन बनाने की प्रक्रिया बाधित होती है।
जीव जंतु भी भ्रमित
बढ़ता प्रकाश प्रदूषण जानवरों तथा कीटों, मछलियों, चमगादड़ों, चिड़ियों तथा अन्य जानवरों की प्रवासन प्रक्रिया को भी प्रभावित कर रहा है। जल वैज्ञानिकों के अनुसार, रात को जलाशयों में पानी के जीव-जन्तु सतह पर आकर अपना भोजन खाते हैं, पर आसपास तेज कृत्रिम प्रकाश के कारण जलीय जीव-जन्तु भ्रमित होकर सतह पर ही नहीं आते, वे भूख से मर जाते हैं। कई प्रवासी पक्षी चांद-तारे देखकर ही दिशा का पता लगाते हैं। कृत्रिम प्रकाश ऐसे में प्रवासी पक्षियों को भ्रमित कर देते हैं तो ये पक्षी या तो समय से पहले अपने ठिकाने पहुंच जाते हैं या समय के बाद। ऐसे में मौसम की प्रतिकूलता के चलते कई प्रवासी पक्षियों की जान पर बन जाती है।
रोचक किस्सा
किस्सा ये कि लॉस एंजिलिस में 1994 में भूकंप से शहर की बिजली चली गई। लोगों ने पहली बार इतना अंधेरा देखा तथा ढेरों टिमटिमाते सितारे देखे तो उन्होंने घबराकर आपात नम्बर पर फोन किया कि आसमान में रूपहली चीजें दिख रही हैं। दरअसल, यह रूपहली चीज और कुछ नहीं अपितु आकाश गंगा (गैलेक्सी) थी।
प्रदूषण के प्रति जागरूकता
प्रकाश प्रदूषण के खिलाफ बहुत सी संस्थाएं आगे आ रही हैं। शहरी महकमों, लोकल सेल्फ कॉन्सिल तथा कॉर्पोरेट रोशनी के डिजाइन बनाने वाले इंजीनियरों को अहसास है कि आसमान में ज्यादा अंधेरा ही रहना चाहिए। इसलिए लाइट फिटिंग में ध्यान जरूरी है कि रोशनी कम मात्रा में ऊपर जाये। बल्ब, ट्यूब आदि की बनावट ऐसी रहे कि उजाला नीचे की ओर आये। गैरजरूरी लाइटों का समय तय हो। अमेरिका में स्थापित इंटरनेशनल डार्क स्कॉय’ एसोसिएशन में प्रकाश प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाने को 70 देशों को शामिल किया है। भारत का नेहरू तारामंडल तथा साइंस पापुलराइजेशन एसोसिएशन ऑफ कम्युनिकेटर्स एंड एजुकेटर्स प्रयासरत हैं। सवाल है भारत में रात में प्रकाश प्रदूषण बढ़ने के और क्या कारण हैं? दरअसल, यहां बीते कुछ सालों में कृत्रिम रोशनी का उपयोग शादी पार्टियों, उत्सवों, न्यू इयर, दीपावली आदि कई आयोजनों के दौरान बढ़ता ही जा रहा है। कृत्रिम रोशनी का गैरजरूरी फैलाव कई अर्थों में गलत है।
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