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रोग के उपचार में मददगार शुरुआती स्टेज पर जांच

09:02 AM Feb 14, 2024 IST
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प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाले कैंसरों में दूसरा सबसे कॉमन टाइप है। दिक्कत होने पर शुरुआत में ही डॉक्टर से संपर्क करें तो इलाज संभव है। इसके कारणों, जांच के तरीकों व उपचार को लेकर नई दिल्ली स्थित फोर्टिस अस्पताल में एडीशनल डायरेक्टर यूरोलॉजी डॉ. अमन गुप्ता से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

ब्रिटेन के राजा चार्ल्स प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे हैं। वे पिछले महीने बढ़े हुए प्रोस्टेट का इलाज करवाने के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे। तभी प्रोस्टेट कैंसर संबंधी खबर पता चली। लेकिन प्रोस्टेट कैंसर किस स्टेज का है- इसके बारे में खुलासा नहीं किया गया है। प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाले कैंसरों में दूसरा सबसे कॉमन है। मूलत: यह 55 साल से अधिक उम्र के पुरुषों में होता है। प्रोस्टेट ग्लैंड पेट के निचले हिस्से में अखरोट के आकार का एक ऑर्गन है। यह ग्लैंड अंडकोष (टेस्टीज़) से टेस्टोस्टेरान हार्मोन बनाती है जो पुरुष प्रजनन प्रणाली का अहम हिस्सा है।

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बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया

उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों में हार्मोनल बदलाव या असंतुलन होने लगते हैं। इससे प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ने लगती है। इस स्थिति को बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (बीपीएच) कहा जाता है। आंकड़ों की मानें तो प्रोस्टेट ग्लैंड का विकास 40 फीसदी पुरुषों में कैंसर का कारण बनता है। अगर यह विकास बाहर की तरफ होता है तो प्रॉब्लम कम होती है। लेकिन फैलाव अंदर की तरफ होने पर यह युरेथरा पर दबाव डालती है। इससे प्रोस्टेट ग्लैंड में सूजन आ जाती है, मूत्रमार्ग में रुकावट आने से पेशाब ठीक तरह से करने में दिक्कतें होती हैं।

रोग की दो स्टेज

प्रोस्टेट कैंसर को दो स्टेज पर देखा जा सकता है :-

प्राइमरी यानी प्रोस्टेटाइटस स्टेज

यह 50-55 साल के पुरुषों में हेता है। इसमें प्रोस्टेट ग्लैंड के बढ़ने से शुरुआती पेशाब करने में समस्याएं होती हैं। प्रोस्टेट ग्लैंड के कैंसर सेल्स बनने लगते हैं और पेशाब करने में समस्याएं शुरू हो जाती हैं। ये सेल्स धीरे-धीरे असामान्य रूप से बढ़ते हैं और पूरे प्रोस्टेट ग्लैंड में फैल कर इसके टिशूज को नष्ट करने लगते हैं।

रोग की एडवांस स्टेज

यह 55 साल से अधिक उम्र में होती है। प्रोस्टेटाइटस की स्थिति जब काफी समय तक बनी रहती है तो यूटीआई की समस्या हो जाती है। ब्लैडर में यूरिनरी स्टोन बन सकते हैं जिससे यूरिनरी ट्रैक ब्लॉक हो जाता है। देर तक यूरिन पास न होने पर पेशाब ब्लैडर में इकट्ठा होता है और इंफेक्शन का कारण बनता है। इससे पेशाब में पस, ब्लड आने लगता है। पेशाब बैक-फ्लो करने लगता है किडनी की तरफ। इससे किडनी डैमेज हो सकती है। पेशाब आना बंद हो सकता है। एमरजेंसी में डॉक्टर के पास जाकर पाइप लगाकर पेशाब निकलवाना पड़ता है।

ये हैं लक्षण

प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ने से मरीज को मूत्रत्याग करने में दिक्कतें आती हैं। पेशाब आने की फीलिंग बार-बार होना, कंट्रोल न होना और बीच में ही निकल जाना, रात को पेशाब ज्यादा आना, कठिनाई या ड्रिबलिंग, जलन और दर्द होना, पेशाब रुक-रुक कर या बूंद-बूंद आना, ब्लैडर खाली न होने के कारण इन्फेक्शन होना, पेशाब और सीमन में पस, ब्लड आना, कूल्हे, जांघों और पीठ में दर्द रहना आदि शामिल हैं।

क्या हैं प्रोस्टेट कैंसर के कारण

बढ़ती उम्र में पुरुषों में होने वाले हार्मोनल बदलाव, आनुवंशिक यानी नजदीकी रिश्तेदारी में किसी को प्रोस्टेट कैंसर रहा हो, गलत जीवन शैली और खानपान, रेड मीट, वसायुक्त डेरी उत्पाद या जंक फूड का सेवन अधिक करना इसकी वजहों में शामिल हैं। एल्कोहल, सिगरेट की आदत , व्यायाम न करना, मोटापा भी प्रोस्टेट की सेहत बिगाड़ते हैं। प्रोस्टेट ग्लैंड के बढ़ने और समस्याएं होने पर पीड़ित को डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

ऐसे होता है डायग्नोज

डॉक्टर सबसे पहले मरीज का क्लीनिकल एग्जामिनेशन करते हैं। टेस्टीज को बाहर से और मलमार्ग से प्रोस्टेट ग्लैंड को अंदर से जांचा जाता है। पीएसए ब्लड टेस्ट किया जाता है। कैंसर का पता लगाने के लिए बायोप्सी भी की जाती है। प्रोस्टेट ग्लैंड की स्थिति का पता लगाने के लिए एमआरआई, बोन स्कैन, पैट स्कैन किए जाते हैं।

क्या है उपचार

मरीज की स्थिति के हिसाब से इलाज किया जाता है। शुरुआती स्टेज पर 6-7 महीने के लिए मेडिसिन दी जाती हैं जो यूटीआई में होने वाली ब्लॉकेज को दूर करने और बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड का साइज कम करने में मदद करती हैं। अगर मरीज को मेडिसिन का असर नहीं होता, तो सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है। सर्जरी करके कैंसर सेल्स निकाल दिए जाते हैं। यूरिन में से ब्लड आने या एडवांस स्टेज में कैंसर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कैंसर का अंदेशा होने पर बॉयोप्सी कराई जाती है। पुष्टि होने पर कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और हार्मोन थेरेपी दी जाती है। रोबोटिक रेडिकल प्रोस्टेटैक्टॉमी या लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिये बाय-लेटरल टेस्टीकल रिमूवल ट्रीटमेंट किया जाता है। स्थिति ज्यादा खराब होने पर प्रोस्टेट ग्लैंड को रिमूव कर दिया जाता है।
एक उम्र के बाद जरूरी कै कि स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं, व्यायाम करें। नॉनवेज, जंक फूड के सेवन से बचें। साल में एक बार हैल्थ चेकअप करवाएं। समय रहते बीमारी का पता चलने पर इलाज संभव है।

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