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बेहतर देखभाल व शिक्षा से बचपन को संबल

06:36 AM Oct 10, 2023 IST

सीमांत डडवाल

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बच्चे का मानसिक-सामाजिक विकास करने के लिए उसके अभिभावक और आसपास के समाज का बड़ा योगदान होता है। आज खुद से यह पूछना कि मौजूदा विकासशील भारत में हमारे बच्चों के लिए वह समाज कहां है जहां उभरते मध्यम वर्ग के मूल मूल्य के रूप में महत्वाकांक्षा उसके बचपन की सुरक्षा व संभाल से मेल खाती है। वह गांव जहां बच्चों का बेहतर ढंग से पालन-पोषण व शिक्षण होता हैं। या फिर असल में उनके भविष्य पर कोई संकट है?

बाल विकास में अहम अपनों का साथ

एक व्यक्ति के मस्तिष्क का 80 प्रतिशत हिस्सा 3 साल की उम्र में और 90 फीसदी हिस्सा 5 साल की उम्र में निर्मित हो जाता है। समय गुजरने के बाद जीवन में मस्तिष्क को अपने अनुरूप तैयार करना मुश्किल काम है। जबकि एक बच्चे के जीवन में वयस्कों के साथ उसके रिश्ते उसके मस्तिष्क के विकास पर सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। संवेदनशील, भरोसेमंद वयस्कों के साथ प्रेमपूर्ण रिश्ते बच्चे के सहज विकास के लिए आवश्यक हैं। ये रिश्ते घर पर माता-पिता और परिवार से शुरू होते हैं वहीं इनमें शिक्षक और निकट परिवेश के लोग भी शामिल हैं। हालांकि, भारत में कामकाजी माता-पिता को अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियां निभाते हुए बच्चों की देखभाल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कामकाज में व्यस्त अभिभावक मुश्किलों से गुजरते हैं, विशेषकर माताएं।

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कामकाजी पेरेंट्स की चुनौतियां

उदाहरण के तौर पर, एक युवा जोड़ा आईटी पेशेवर मेहर और अमनदीप, जो बेंगलुरु में कुछ साल काम करने के बाद, कोरोनाकाल में चंडीगढ़ लौट आया। इसके बाद उन्हें अपने बच्चे के लिए गुणवत्तापूर्ण प्री-स्कूल ढूंढने में कठिनाई हुई। एक अन्य माता-पिता, लीला और अनिल देहरादून की कम आय वाली बस्ती में रहते हैं। लीला और अनिल दोनों को अपने बच्चों को छोड़कर काम पर जाना पड़ता है। आर्थिक समस्या के चलते वे अपने बच्चे को प्री-स्कूल की सुविधा भी नहीं दे पा रहे हैं। दोनों अपने 18 महीने के लड़के को अपनी 6 साल की बेटी, सुनीता के जिम्मे छोड़ देते हैं, जो अपने छोटे भाई की देखभाल करती है। सुनीता ने अभी तक स्कूल में दाखिला नहीं लिया है। बच्चों की देखभाल की ये चुनौतियां, भले ही विभिन्न परिवारों के लिए अलग-अलग हों लेकिन सभी माता-पिता को एकजुट करती हैं। हर माता-पिता के बच्चों को वह देखभाल मिले जिसके वे हकदार हैं यह यकीनी बनाने को पहुंच, गुणवत्ता, विश्वसनीयता, सुविधा और सामर्थ्य के पहलुओं को हल करना होगा।

चाइल्ड केयर और शिक्षा नीति

बच्चे की देखभाल और शिक्षा नीति जो प्रदाताओं के बीच गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन देखभाल और सीखने तक पहुंच को सक्षम करने पर काम करती है, प्रत्येक राज्य के लिए जरूरी होनी चाहिए; लेकिन यह अधिकांश भारतीय राज्यों में मौजूद नहीं है। इस नीति को माता-पिता के लिए गुणवत्तापूर्ण चाइल्ड केयर विकल्पों की उपलब्धता और सामर्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करनी चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि या भौगोलिक स्थिति कुछ भी हो। कॉर्पोरेट कार्यालयों के साथ-साथ निर्माण स्थलों पर डेकेयर/क्रेच के प्रावधान को प्राथमिकता मिले।

शिक्षकों के प्रशिक्षण में निवेश

बच्चों के शिक्षकों के प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास में निवेश करना महत्वपूर्ण है। शिक्षक युवा दिमागों को पोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें आवश्यक संसाधन, सहायता और प्रशिक्षण प्रदान किये जायें। वास्तव में सरकारों को मध्य स्तरीय प्रशिक्षण केंद्रों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रशिक्षण केंद्रों को मजबूत करना चाहिए। राज्य विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करके देखभालकर्ता शिक्षण केंद्र (सीएलसी) बनने के लिए उनका दायरा बढ़ाना चाहिए और प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा शिक्षण कार्यक्रम/डिप्लोमा प्रदान करना चाहिए। वहीं निजी/गैर-लाभकारी सेवा प्रदाताओं को दिए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ-साथ शुल्क के बदले पालन-पोषण कार्यक्रम भी इन केंद्रों को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।

माता-पिता की भागीदारी

बच्चों की शुरुआती शिक्षा के लाभों को अधिकतम करने में माता-पिता की भागीदारी महत्वपूर्ण है। माता-पिता को अपने बच्चे की सीखने और विकास की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए ज्ञान और संसाधनों से सशक्त होना चाहिए। इसे कार्यशालाओं, गर्भवती महिलाओं, युवा माता-पिता के लिए पालन-पोषण कार्यक्रमों और शैक्षिक सामग्रियों तक पहुंच के जरिये प्राप्त किया जा सकता है। स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों को पालन-पोषण शिक्षा कार्यक्रम प्रदान करना चाहिए। दरअसल, बच्चों की परवरिश और शिक्षा के साथ उनकी देखभाल में निवेश करके हम देश के प्रारंभिक विकास, भविष्य के नेताओं व नवप्रवर्तकों में निवेश कर रहे हैं। आइए, एक ऐसे समाज, आधुनिक गांव का निर्माण करने के लिए काम करें, जो हर बच्चे के समग्र विकास को महत्व दे।

-लेखक मेराकी फाउंडेशन के संस्थापक हैं।

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