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एआई के जरिये तलाशी उपचार की सुगम राहें

01:36 PM Jun 25, 2023 IST

मुकुल व्यास

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वैज्ञानिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से नई दवाएं खोज रहे हैं और प्रभावी वैक्सीनों का निर्माण कर रहे हैं। अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी और केनेडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एआई के उपयोग से एक नए एंटीबायोटिक की पहचान की है जो एक खास बैक्टीरिया को मार सकता है जो कई दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के लिए जिम्मेदार है। यदि दवा विकसित की जाती है तो इससे ‘एसिनेटोबैक्टर बाउमन्नी’ नामक बैक्टीरिया की एक प्रजाति से निपटने में मदद मिल सकती है जो अक्सर अस्पतालों में पाई जाती है और इससे निमोनिया,मेनिन्जाइटिस और अन्य गंभीर संक्रमण हो सकते हैं। यह रोगाणु इराक और अफगानिस्तान में घायल सैनिकों में हुए संक्रमण का एक प्रमुख कारण रहा है। एसिनेटोबैक्टर लंबे समय तक अस्पताल के दरवाज़ों और उपकरणों पर जीवित रह सकता है। यह अपने वातावरण से एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन ले सकता है। शोधकर्ताओं ने एक एआई मॉडल का उपयोग करते हुए लगभग 7,000 यौगिकों में से इस नई दवा की पहचान की है। एआई प्लेटफॉर्म के उपयोग से व्यापक सुरक्षा प्रदान करने वाले टीके भी कुशलतापूर्वक डिजाइन किए जा सकते हैं। अमेरिका के पेन स्टेट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एवैक्सियन बायोटेक नामक कंपनी के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है जिसमें भविष्य के कोविड वेरिएंट के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करने में एआई-जनित वैक्सीन की क्षमता को रेखांकित किया गया है।

टी सेल्स आधारित कोविड टीके का परीक्षण

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इस समय कोविड के टीके सार्स-कोव-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करते हैं लेकिन म्यूटेशन के कारण ऐसे टीके अपना असर खो सकते हैं। एआई की मदद से बनने वाला टीका टी-कोशिकाओं पर आधारित होगा। टी-कोशिका एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका है। टी कोशिकाएं हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होती हैं। टी-कोशिका आधारित टीके अधिक टिकाऊ इम्यूनिटी प्रदान कर सकते हैं और फ्लू जैसे अन्य मौसमी वायरल रोगों के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन ने चूहों में सार्स-कोव-2 के खिलाफ टी-सेल-आधारित वैक्सीन की प्रभावशीलता का परीक्षण किया। परीक्षण के नतीजों से पता चला कि जिन चूहों के टीके लगे उनमें जीवित रहने की दर 87.5 प्रतिशत थी जबकि बिना टीके वाले ग्रुप में सिर्फ एक चूहा जीवित रहा। इसके अलावा वैक्सीन प्राप्त करने वाले सभी जीवित चूहों ने सार्स-कोव-2 की घातक खुराक दिए जाने के दो सप्ताह के भीतर ही वायरस को साफ कर दिया। पेन स्टेट में जैव चिकित्सा विज्ञान के प्रोफेसर गिरीश किरीमंजेश्वर का कहना है कि एआई द्वारा डिजाइन की गई टी-सेल वैक्सीन द्वारा जीवित जीव में गंभीर कोविड के खिलाफ सुरक्षा दिखाने वाला यह पहला अध्ययन है। उन्होंने कहा कि हमारा टीका चूहों में गंभीर कोविड को रोकने में बेहद प्रभावी सिद्ध हुआ है। मनुष्यों में भी इसका परीक्षण शुरू करने के लिए इसे आसानी से विकसित किया जा सकता है।

अन्य रोगों में भी शोध के फायदे

यह शोध इन्फ्लूएंजा और दूसरी मौसमी वायरल बीमारियों के खिलाफ तेजी से नए टी-सेल टीके विकसित करने का मार्ग भी प्रशस्त करती है। एक सवाल यह पूछा जा रहा है कि हमें टी-सेल आधारित कोविड वैक्सीन की आवश्यकता क्यों है जब इस समय प्रयुक्त हो रहे एमआरएनएए टीके प्रभावी सिद्ध हुए हैं? किरीमंजेश्वर के अनुसार सार्स-कोव-2 वायरस का स्पाइक प्रोटीन भारी दबाव में है, जिसके परिणामस्वरूप म्यूटेशन हो सकते हैं जो नए वैरिएंट को जन्म दे सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वैक्सीन निर्माताओं को नए वैरिएंट को लक्षित करने वाले नए टीके निरंतर विकसित करने होंगे और लोगों को हमेशा इन नए टीकों की जरूरत पड़ेगी। पेन स्टेट के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित वैक्सीन में स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करने के बजाय सार्स-कोव-2 के विभिन्न प्रोटीनों से 17 विशिष्ट रसायन (एपिटोप) शामिल किए गए जो प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचाने जाते हैं। ये रसायन टी कोशिकाओं में इम्यून रेस्पांस उत्पन्न करते हैं। किरीमंजेश्वर ने बताया कि नई वैक्सीन का पहला फायदा यह है कि टी-कोशिकाओं से मिली इम्यूनिटी से बचने में सक्षम होने के लिए वायरस को बहुत अधिक म्युटेशनों से गुजरना होगा। दूसरा लाभ यह है कि टी कोशिकाओं से मिली इम्यूनिटी आमतौर पर लंबे समय तक चलती है, इसलिए बार-बार बूस्टर खुराक लेने की आवश्यकता नहीं होगी।

चलता-फिरता वैक्सीन प्रिंटर

जरूरतमंद लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना हमेशा आसान नहीं होता। कई टीकों को कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता होती है जिसकी वजह से उन्हें दूरदराज के इलाकों में भेजना मुश्किल हो जाता है। ऐसे इलाकों में टीकों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं होता। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एमआईटी के शोधकर्ताओं ने इस समस्या का एक नायब समाधान खोजा है। उन्होंने एक चलता-फिरता वैक्सीन प्रिंटर विकसित किया है जो एक दिन में वैक्सीन की सैकड़ों खुराक का उत्पादन करने में सक्षम हो सकता है। यह प्रिंटर वैक्सीन वितरण के लिए गेम चेंजर हो सकता है। यह एक टेबलटॉप पर फिट हो सकता है और इसे कहीं भी लगाया जा सकता है। एक दिन में इस प्रिंटर की मदद से मांग के हिसाब से वैक्सीन का उत्पादन किया जा सकेगा। उदाहरण के लिए यदि किसी विशेष क्षेत्र में इबोला का प्रकोप है तो इनमें से कुछ प्रिंटर वहां भेजे जा सकते हैं और उस स्थान पर लोगों का टीकाकरण किया जा सकता है। यह प्रिंटर वैक्सीन युक्त सैकड़ों सूक्ष्म सुइयों (माइक्रोनीडल्स) वाले पैच का उत्पादन करता है। पैच को त्वचा से जोड़ा जा सकता है। इससे टीका आसानी से शरीर में घुल जाता है और पारंपरिक इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं रहती। एक बार मुद्रित होने के बाद टीके के पैच को कमरे के तापमान पर कई महीनों तक संगृहीत किया जा सकता है।

पैच बेस्ड वैक्सीन

नेचर बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दिखाया कि वे कोविड-19 आरएनए टीकों का उत्पादन करने के लिए प्रिंटर का उपयोग कर सकते हैं। ये टीके चूहों में इंजेक्शन से दिए गए आरएनए टीकों द्वारा उत्पन्न इम्यून रेस्पांस के समान ही प्रतिक्रिया उत्पन्न करने में सफल रहे। एमआरएनए टीकों सहित अधिकांश टीकों को संगृहित करते समय प्रशीतित किया जाना चाहिए। इसकी वजह से उन्हें बड़े पैमाने पर जमा करना या उन्हें उन स्थानों पर भेजना मुश्किल हो जाता है जहां आवश्यक तापमान बनाए रखना कठिन होता है। इसके अलावा टीके लगाने के लिए लिए सीरिंज,सुइयों और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। शोधकर्ताओं ने पारंपरिक इंजेक्टेबल टीकों पर काम करने के बजाय टीकों के वितरण के एक नए तरीके पर काम करने का निश्चय किया जो अंगूठे के नाखून के आकार के पैच पर आधारित है। इसमें सैकड़ों सूक्ष्म सुइयां होती हैं। पोलियो,खसरा और रूबेला सहित कई बीमारियों के लिए अब ऐसे टीके विकसित किए जा रहे हैं। जब पैच को त्वचा पर लगाया जाता है,तो सुइयों की नोकें त्वचा के नीचे घुल जाती हैं,जिससे टीका डिलीवर हो जाता है। यह अध्ययन कोविड-19 आरएनए टीकों पर केंद्रित था। शोधकर्ता प्रोटीन या निष्क्रिय वायरस से बने टीकों सहित अन्य प्रकार के टीकों के उत्पादन के लिए इस विधि को अपनाने की योजना बना रहे हैं।

लेखक विज्ञाान संबंधी मामलों के जानकार हैं।

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