मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

जन संसद

08:04 AM Jul 22, 2024 IST
Advertisement

बदलाव हेतु चेतावनी

हिमालय क्षेत्र भूधसाव व भूस्खलन की दृष्टि से हमेशा संवेदनशील रहा है। फिर भी अपने प्राकृतिक वातावरण के लिए लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु है। इसी के लालच में कथित विकास न केवल यहां की आबोहवा को खराब कर रहा है बल्कि पहाड़ों से निकलने वाले पानी के रास्तों को भी अवरुद्ध कर रहा है। जोशीमठ में पहाड़ों का दरकना इसी का नतीजा है। नि:संदेह, ये घटनाएं सभी पर्वतीय राज्यों के लिए पहाड़ों की संरचना के अनुरूप यहां के विकास मॉडल में बदलाव करने की चेतावनी दे रही हैं।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद

संवेदनशील व्यवहार जरूरी

मानसून आने के साथ ही देश के पर्वतीय राज्यों में आम आदमी का जनजीवन चौतरफा मुश्किलों से घिर जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों का यह संकट बताता है कि पहाड़ों की विषम परिस्थितियों के चलते विकास के मॉडल में बदलाव की जरूरत है। पहाड़ अध्यात्म के केन्द्र भी रहे हैं। उन्हें पर्यटकों की विलासिता का केन्द्र नहीं बनाया जाना चाहिए। हमें अपेक्षाकृत नये हिमालयी पहाड़ों और उसके पारिस्थितिकीय तंत्र के प्रति संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए। ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदियों का बढ़ा जल संकट का कारण बन रहा है।
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
Advertisement

अवैज्ञानिक दोहन

पर्यटन आवश्यकताओं और विकास परियोजनाओं को पूरा करने हेतु पारिस्थितिकीय संतुलन को नज़रंदाज़ करके किए गए निर्माण कार्यों की बदौलत देश के पहाड़ी राज्यों पर आफत के पहाड़ टूट रहे हैं। सड़कों को चौड़ा करने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और विस्फोट से चट्टानों को तोड़ने के परिणामस्वरूप जमीनों के दरकने और भूस्खलन की घटनाएं जीवन को अस्त-व्यस्त कर रही हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की बहुमूल्य संपदा के अवैज्ञानिक दोहन ने पहाड़ों की नाज़ुक पारिस्थितिकीय तंत्र और पर्यावरण के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है। मानवीय गतिविधियों के बढ़ते दबाव ने ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति पैदा कर दी है। प्रकृति के अनुकूल विकास का मॉडल जब तक अपनाया नहीं जाता, प्राकृतिक आपदाएं उपस्थित होती रहेंगी।

ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

नए सिरे से विचार

ग्लोबल वार्मिंग का संकट निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इस संकट के कारण बारिश कभी कम तो कभी बहुत अधिक मात्रा में आती है। खासतौर पर पर्वतीय राज्यों में मानसून के आते ही आम लोगों का जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में बिजली-पानी आदि की समस्याएं गंभीर रूप धारण कर लेती हैं। सड़कों को चौड़ा करने के कारण भूस्खलन की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को ध्यान में रखते हुए पहाड़ों में विकास के माडल पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल

विकास का मॉडल बदलें

मानसून की दस्तक के साथ ही देश के पर्वतीय राज्यों में जनजीवन मुश्किलों से घिर जाता है। खासकर सड़कों को चौड़ा करने से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। बादल फटने की घटनाएं आम हो जाती हैं। ये संकट बताता है कि पहाड़ की विषम परिस्थितियों के चलते विकास के मॉडल में बदलाव की आवश्यकता है। पहाड़ काटकर सड़कों का जाल बिछाना जहां एक ओर मनुष्य का जीवन आसान हुआ है वहीं प्रकृति से छेड़छाड़ प्राकृतिक विपदा का कारण बनी है। विकास के नाम पर अत्यधिक दोहन सदैव उस प्रकार है जैसे सहनशीलता की सीमा का उल्लंघन करना।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र

अंधाधुंध दोहन

मानसून की दस्तक के साथ ही पर्वतीय राज्यों में पहाड़ दरकने लगते हैं और नदियां अपना रौद्र रूप दिखाने लगती हैं। ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते बारिश के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। बारिश कम समय में ज्यादा मात्रा में बरसती है जिससे न केवल पहाड़ों में कटाव बढ़ जाता है बल्कि पानी के साथ भारी मात्रा में मलबा गिरकर मार्गों को भी अवरुद्ध कर देता है। यह सब प्राकृतिक साधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण हो रहा है। पहाड़ों में सड़कों को फोरलेन-सिक्स लेन बनाने के कारण पहाड़ों का नैसर्गिक वातावरण खतरे में आ गया है। निश्चित ही पहाड़ी इलाकों में विकास के मॉडल पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। पर्वतों और उनके पारिस्थितिकीय तंत्र के प्रति संवेदनशील व्यवहार किया जाना चाहिए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

Advertisement
Advertisement