Navratri 2nd Day : भगवान शिव के लिए देवी ब्रह्मचारिणी ने फूल-पत्ते खाकर की थी हजारों साल तपस्या, जानिए पौराणिक कथा
चंडीगढ़, 30 मार्च (ट्रिन्यू)
Navratri 2nd Day : हिंदू धर्म में ब्रह्मचारिणी देवी का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है, जिनकी चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन पूजा की जाती है। इनका नाम 'ब्रह्मचारिणी' संस्कृत शब्द 'ब्रह्म' (अर्थात तप, साधना या ध्यान) और 'चारिणी' (अर्थात चलनेवाली या साधना करनेवाली) से लिया गया है। अर्थात, ब्रह्मचारिणी का अर्थ है 'वह देवी जो ब्रह्मा या साधना की विधि में चलने वाली हैं।'
आध्यात्मिक और साधना का प्रतीक
ब्रह्मचारिणी देवी तप-साधना की प्रतीक मानी जाती हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को आत्मनिर्भरता, समर्पण और आत्म-नियंत्रण की शिक्षा मिलती है। देवी ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत सौम्य और पवित्र होता है। इनका स्वरूप एक कन्या के रूप में है, जो हाथ में कमंडल और माला लिए हुए होती हैं। देवी का रूप शांतिपूर्ण-तपस्वी होता है, जो एक साधक की आंतरिक शक्ति और तपस्या को दर्शाता है।
ब्रह्मचारिणी का महत्व
देवी ब्रह्मचारिणी का महत्व इसलिए है क्योंकि वे तपस्या, साधना और योग के माध्यम से आत्मा के शुद्धिकरण का मार्ग दिखाती हैं। उन्हें पूजा करने से व्यक्ति के भीतर मानसिक शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है। देवी के आशीर्वाद से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह अपने लक्ष्य की ओर बिना किसी विघ्न के अग्रसर होता है।
देवी ब्रह्मचारिणी की जन्म कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, वह माता पार्वती का ही रूप हैं, जिन्होंने हिमालयराज के घर जन्म लिया। शास्त्रों में कहा गया है कि देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, तब उनका शरीर केवल हवा, जल, और आकाश के आहार से जीवित रहा था इसलिए उनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा।
अपने तप के दौरान माता ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल, टूटे हुए बिल्व पत्र खाएं। 100 सालों तक वह खुले आकाश के नीचे बारीश और धूप को सहन करते हुए जमीन पर रहीं। तब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार किया। इसी कारण देवी ब्रह्मचारिणी को सिद्धि और आशीर्वाद की देवी भी माना जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
ऐसे करें देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न
देवी ब्रह्मचारिणी कू पूजा करते समय उन्हें आचमन, पान, सुपारी जरूर चढ़ाएं। मां को प्रसन्न करने के लिए शक्कर से बनी चीजें या हरी बर्फी व पेठी चढ़ाएं। इसके अलावा आप मां को उनके पसंदीदा चमेली या अड़हुल के फूल भी चढ़ा सकते हैं।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।