प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक विरासत
रमेश पठानिया
मानूसन ख़त्म होते ही मौसम बदल जाएगा और घुम्मकड़ी के लिए मौसम उपयुक्त होगा। मानसून के बाद शरद ऋतु आती है। हवा में हल्की-सी सर्दी, सुबह-शाम बहुत ही खूबसूरत और दिन सुहाने होते हैं; दोपहर में न ज्यादा धूप होती है न ज्यादा गर्मी। ऐसे में सही समय होता है कि कहीं घूमने निकला जाए।
अजंता-एलोरा की गुफाएं
आपके पास समय है, तो महाराष्ट्र में छत्रपति संभाजीनगर स्थित अजंता-एलोरा की गुफाएं देखने का कार्यक्रम बनाएं। यही नहीं, एलोरा में विश्व का एक ऐसा मंदिर भी है, जिसे एक बड़े पत्थर को तराश कर बनाया गया है। इसका नाम कैलास मंदिर है, और यहां 12 में से एक ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थित है।
ऐतिहासिक महत्व
अजंता गुफाओं का निर्माण 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर छठी शताब्दी ईस्वी के बीच हुआ था। ये गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्यान और तपस्या के लिए बनाई गई थीं; इनमें बहुत शांति रहती है। बहुत सारे भिक्षु साधना में लीन देखे जा सकते हैं। अजंता गुफाएं अपनी भित्तिचित्रों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो बौद्ध धर्म की कहानियों और जैन जीवन के दृश्यों को दर्शाती हैं।
फोटोग्राफी के नियम
इन गुफाओं में रोशनी बहुत कम है। फोटोग्राफी करते समय किसी कृत्रिम रोशनी का उपयोग नहीं कर सकते। ट्राइपॉड से फोटोग्राफी करना भी मना है। मशहूर फोटोग्राफर और आर्ट हिस्टोरियन बिनोय बहल ने गुफाओं के अंदर इन पेंटिंग्स को बेहतरीन तरीके से अपने कैमरे में कैद किया है। वह इन पेंटिंग्स की देश-विदेश में प्रदर्शनियां भी कर चुके हैं। अजंता गुफाओं की चित्रकला और स्थापत्य कला ने इसे विश्व धरोहर स्थल बना दिया है।
गुफाओं की भौगोलिक स्थिति
अजंता गुफाएं अजंता-वाघोरा नदी के किनारे स्थित हैं। गुफाओं का दृश्य बहुत ही आकर्षक है। ये औरंगाबाद या संभाजी नगर से करीब 110 किमी की दूरी पर हैं। एलोरा गुफाओं का निर्माण 5वीं से 10वीं शताब्दी के बीच हुआ था। ये गुफाएं हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों की विविध स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
एलोरा गुफाओं की विशेषताएं
इसमें कुल 34 गुफाएं हैं, जो विभिन्न धर्मों की मूर्तियों और चित्रणों के लिए प्रसिद्ध हैं। एलोरा गुफाओं में सबसे प्रमुख गुफा कांची (गुफा 16) है, जिसमें एक विशाल कैलास मंदिर है, जो एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। यहां की गुफाएं न केवल बौद्ध और जैन धर्मों की कला को दर्शाती हैं, बल्कि हिंदू धर्म के मंदिरों की भी बेजोड़ उदाहरण हैं।
यात्रा की जानकारी
एलोरा गुफाएं छत्रपती संभाजीनगर (औरंगाबाद) से अधिक सुलभ हैं, और यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को गाड़ी, बस या टैक्सी का उपयोग करना पड़ता है। गुफाओं के आस-पास की प्रकृति और संस्कृति भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। छत्रपति संभाजी नगर से एलोरा गुफाओं का सफर बहुत आनंददायक है।
इतिहास और कला का संगम
दोनों स्थल विश्व धरोहर स्थल हैं और भारतीय स्थापत्य और चित्रकला का महत्वपूर्ण उदाहरण पेश करते हैं। यदि आप भारतीय इतिहास और कला के प्रेमी हैं, तो अजंता और एलोरा की गुफाएं आपके लिए अवश्य देखने लायक हैं।
अद्वितीय कैलास मंदिर
कैलास मंदिर, एलोरा गुफाओं का एक प्रमुख आकर्षण है और विश्व के अद्वितीय स्थापत्य कृतियों में से एक माना जाता है। कैलास मंदिर, एलोरा गुफाओं (गुफा 16) में स्थित है, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। कैलास मंदिर का निर्माण 8वीं सदी के मध्य में, राष्ट्रकूट सम्राट कृष्ण के शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है, जो इसे विश्व के सबसे बड़े एकल-चट्टान मंदिरों में से एक बनाता है।
मंदिर की वास्तुकला
कैलास मंदिर का डिजाइन हिंदू वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें एक विशाल केंद्रीय भवन है, जो एक ऊंचाई पर स्थित है और इसके चारों ओर अन्य छोटे-छोटे मंदिर और मंडप हैं।
मूर्तियां और सजावट
मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर अद्भुत नक्काशी और चित्रण हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं और देवी-देवताओं के चित्रण को दर्शाते हैं। इसमें भगवान शिव की एक बड़ी प्रतिमा है, जो शिवलिंग के रूप में होती है। इसके अलावा, देवी पार्वती और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी यहां देखी जा सकती हैं।
संरचना और निर्माण तकनीक
कैलास मंदिर का मुख्य भवन एक बड़े मंच पर स्थित है, जिसके चारों ओर विभिन्न संरचनाएं जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर का निर्माण पूरे परिसर को एक ही चट्टान से काटकर किया गया है; इसके चारों ओर की अन्य संरचनाएं भी इस विशाल चट्टान से ही उकेरी गई हैं। इस मंदिर के निर्माण में पत्थर को खोदकर और काटकर निर्माण प्रक्रिया पूरी की गई, जो उस समय के तकनीकी कौशल और निपुणता को दर्शाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
यही नहीं, एलोरा के पास ही एक ज्योतिर्लिंग है, जिसका नाम घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह शिवालय एला गंगा नदी और एलोरा गुफाओं के नजदीक स्थित है। यह मंदिर 3000 साल पुराना है और महाराष्ट्र के पांच ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
नियम और शिष्टाचार
मंदिर में चमड़े की कोई भी वस्तु जैसे बेल्ट या पर्स अंदर नहीं ले जा सकते। पुरुषों को कमीज के बिना बनियान में प्रवेश की अनुमति है। मंदिर में पाषाण युग के बेहतरीन नक्काशी है।
यात्रा की सुविधा
अजंता-एलोरा के लिए दिल्ली से औरंगाबाद के लिए सीधी उड़ानें हैं और रेल सेवा भी है। आप पुणे से या मुंबई से भी जा सकते हैं। यह सही समय है अपनी टिकट अक्तूबर के लिए बुक करने का ताकि आप अजंता-एलोरा गुफाओं में सही समय पर जाकर आनंद ले सकें।