मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

गुड़ तै मिट्ठी गुड़याणी..!

06:54 AM Sep 17, 2023 IST

सत्यवीर नाहड़िया

Advertisement

जब देश में हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के विकास व परिमार्जन के बहुआयामी पक्षों पर विमर्श होता है, तब भारतेंदु युग तथा द्विवेदी युग के सेतु के रूप में बाबू बालमुकुंद गुप्त का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाता है। उर्दू पत्रकारिता में अखबारे-चुनार, कोहेनूर तथा हिंदी पत्रकारिता में हिंदोस्थान, हिंदी बंगवासी व भारत मित्र सरीखे चर्चित पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से तत्कालीन पत्रकारिता के गढ़ कहे जाने वाले लाहौर, कालाकांकर, बनारस व कोलकाता में अपने प्रतिभा उजागर करने वाले गुप्त जी की जन्मस्थली के बारे में देश के लोग कम ही जानते हैं। शब्दों की टकसाल कहे जाने वाले भारत मित्र में शिव शंभू के चिट्ठों जैसे कालजयी क्रांतिकारी लेखन को भला कौन भुला सकता है, जिनमें लॉर्ड कर्जन जैसे अंग्रेजी तानाशाहों को फटकार लगाते हुए उनकी लेखनी ने भारतवासियों में राष्ट्रभक्ति की नई अलख जगाई थी? इस स्मृति अभियान में ज्यों ही उनकी जन्मस्थली गांव गुड़याणी का नाम जेहन में आता है- तो मन श्रद्धा से भर जाता है, इस गांव की शताधिक यात्राओं की स्मृतियों के साथ ही कुछ शीर्षक कौंधते हैं... कलात्मक हवेलियों की गुड़याणी, आजादी के दीवानों की गुड़याणी, 1857 की क्रांति की साक्षी गुड़याणी व बाबू बालमुकुंद गुप्त की अनमोल स्मृतियों को सहेजे गुड़याणी व साहित्यिक ग्राम गुड़याणी... अपनी मां बोली में कहें तो- गुड़ तै मिट्ठी गुड़याणी...! हरियाणा के रेवाड़ी जिले के कोसली उपमंडल तथा नाहड़ विकास खंड के गांव गुड़याणी को साहित्यिक तीर्थ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, जहां सन‍् 1865 में जन्मे एक बालक ने अपनी लेखनी के बूते पर साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट मौलिक पहचान बनाकर इस गांव को असाधारण बना दिया। यहां के चप्पे-चप्पे से उनकी अनमोल स्मृतियां जुड़ी रही हैं। गुप्त जी के गांव के बारे में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त मत है कि गोरगानी या गोरयानी प्रजाति के अफगान मूल के पठानों द्वारा गुड़याणी को विक्रमी संवत् 1458 में बसाया गया। रोहतक लोकसभा तथा कोसली विधानसभा क्षेत्र का गांव गुड़याणी संयुक्त पंजाब के रोहतक जिले की झज्जर तहसील का प्रमुख गांव रहा है। गुड़याणी गांव के बारे में प्रसिद्ध कहावत में इसकी चर्चित चार चीजों सौदागरों (पठानों), घोड़ों, बेरों तथा एक कुआं विशेष का जिक्र आता है-
चहार चीज़ तोहफ़ा-ए-गुड़याणी।
बेर, घोड़े, सौदागर, अरु कोठी का पानी॥

बलिदान की परंपरा वाली जन्मभूमि

गुड़याणी के अमर सेनानी मोहम्मद आजम खां की वीरता एवं बलिदान के किस्से इतिहास में दर्ज हैं। सत्तावन की क्रांति में वे अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। गुड़याणी के वीर पठान अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाने वाले रणबांकुरों में आगे रहे। गोरी सेना ने शताधिक देशभक्त पठानों को फांसी चढ़ा दिया था। गुड़याणी के निकट इन शहीदों की मजारें हैं। आजादी के बाद भी गुड़याणी में शहादत परंपरा बरकरार है।

Advertisement

वास्तुकला व दो खास हवेलियां

वास्तुकला के नायाब नमूनों के तौर पर यहां की प्राचीन हवेलियों में कलात्मक कारीगरी आकर्षित करती है जिनमें दो हवेलियां का विशेष महत्व है, एक वह जिसमें गुप्त की जन्मे तथा दूसरी वह जिसका निर्माण उन्होंने स्वयं करवाया। पहली जहां खंडहर में तब्दील हो चुकी है, वहीं दूसरी आज भी बेहतरीन स्थिति में है। दूसरी हवेली से गुप्त जी की अनमोल स्मृतियां जुड़ी हुई है, क्योंकि उन्होंने अपने रचनाकाल में यहीं बैठकर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा, जिसका उल्लेख वे अपनी रचनाधर्मिता में करते रहे हैं। उनके निधन के नब्बे साल तक बंद रहने के बाद नब्बे के दशक में पुनः प्रकाश में आई यह हवेली पिछले पच्चीस वर्षों से विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों के केंद्र में रही है। इस हवेली को प्रदेश या केंद्र सरकार को देने के लिए गुप्त जी के प्रपौत्र विमल गुप्त (कोलकाता) ने प्रस्ताव भेजा था। नब्बे के दशक तक नब्बे वर्षों तक बंद रही इस हवेली को परिषद् की पहल पर गुप्त जी के पौत्र हरिकृष्ण गुप्त ने कोलकाता से आकर न केवल खुलवाया, अपितु इसका बहुआयामी जीर्णोद्धार भी करवाया। गुप्त जी के प्रपौत्र विमल गुप्त ने गुप्त जी के नाम से प्रतिवर्ष पुरस्कार देने की परंपरा प्रारंभ की।

साहित्यिक चेतना की संस्थागत अलख

गुप्त जी की भूले-बिसरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व को चिरस्थायी बनाने में गत अढ़ाई दशकों से जुटी बाबू बालमुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद् हरियाणा साहित्य अकादमी तथा प्रदेश के साहित्यकारों के साथ मिलकर साहित्यिक चेतना की अलख जगाए हुए है, जिसके दौरान इस हवेली को ही केंद्र में रखा गया है। करीब आधा दर्जन पुस्तक मेले, अनेक कवि सम्मेलन, विचार गोष्ठियां, बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार, शताधिक पुस्तकों का लोकार्पण के साहित्यिक जागरूकता अभियानों समेत अकादमी के दो पुरस्कार भी प्रारंभ किये जा चुके हैं। मीरपुर रेवाड़ी स्थित इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय में बाबू बालमुकुंद गुप्त पीठ की स्थापना हुई है। गत वर्ष हरियाणा साहित्य अकादमी के राज्य स्तरीय साहित्यकार सम्मान समारोह में गुड़याणी स्थित गुप्त जी की पैतृक हवेली में ई-लाइब्रेरी खोलने की घोषणा भी की गयी है। बाबू बाल मुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद्, रेवाड़ी तथा हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला गत पच्चीस वर्षों से गुप्त जी की पुण्यतिथि तथा जयंती पर संयुक्त तत्वावधान में विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन गुड़याणी, रेवाड़ी, झज्जर, गुरुग्राम व चंडीगढ़ आदि में करती आ रही हैं। दोनों संस्थाएं बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार भी रचनाकारों को प्रदान करती हैं।

बालमुकुंद का स्कूल

गुड़याणी में वह पुराना स्कूल भवन आज भी विद्यमान है, जिसमें कभी बालक बालमुकुंद ने पढ़ाई की तथा तत्कालीन संयुक्त पंजाब की पांचवीं कक्षा के परिणाम में पहला स्थान प्राप्त किया था। इसी स्कूल की छत पर पूलियों के सहारे ऊंट चढ़ाने की बाल सुलभ शरारत के किस्से उनकी जीवनी में चर्चित रहे हैं। आज गांव में उन्हीं के नाम से मॉडल संस्कृति राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय है।

बाबूजी का भारत-मित्र

बाबू बालमुकुंद गुप्त के कुशल संपादन में शब्दों की टकसाल कहे जाने वाले भारत मित्र समाचारपत्र तथा गुप्त जी के योगदान को प्रेरणापुंज बनाने के उद्देश्य से परिषद् द्वारा वरिष्ठ पत्रकार विजय सहगल तथा साहित्यकार डॉ.चंद्र त्रिखा के संपादन में प्रारंभ की गयी पत्रिका ‘बाबूजी का भारत मित्र’ को करीब दो दशक से संपादक एवं वरिष्ठ रचनाकार रघुविंद्र यादव ने शोध एवं साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका बनाकर प्रेरक योगदान दिया है।

महायज्ञ में दैनिक ट्रिब्यून की आहुति

हरियाणा में गुप्त जी पर जब नब्बे के दशक तक कोई कार्य नहीं हो रहा था, तब सबसे पहले दैनिक ट्रिब्यून ने संपादकीय पृष्ठ पर इस पीड़ा को प्रमुखता से उठाया। पूर्व संपादक विजय सहगल के बाद वर्तमान संपादक नरेश कौशल ने इस अभियान को संबल जारी रखा। दैनिक ट्रिब्यून ने गुप्त जी की जन्मस्थली को सम्मान देने को गुड़याणी डेटलाइन प्रारंभ की, जिससे साहित्यिक समाचार प्रकाशित होते रहे। पत्र ने उनकी स्मृति में शोध आलेख प्रकाशित किए।

शोधपरक लेखन

गांव गुड़याणी से चलाए जा रहे स्मृति अभियान के दौरान गुप्त जी पर करीब आधा दर्जन पुस्तकों का प्रकाशन, हरिगंधा, देस हरियाणा तथा बाबूजी का भारत मित्र में बाबू बालमुकुंद गुप्त विशेषांक, अकादमी की प्रदेश व्यापी बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्यिक चेतना यात्रा, पुस्तक मेले, विचार गोष्ठियां, कवि सम्मेलन, बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार, एवं शताधिक नवप्रकाशित कृतियों का लोकार्पण हुआ है। प्रदेश के लेखकों तथा रचनाकारों ने गुप्त जी तथा गुड़याणी पर शोधपरक लेखन किया है।
गुप्त जी की पत्रकारिता व साहित्य आदि विभिन्न क्षेत्रों में अभी बहुत शोध कार्य होने शेष हैं। प्रदेश के विश्वविद्यालय में उन पर शोध कार्य करवाएं व पाठ्यक्रमों में स्थान दें तो उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जा सकता है।
लेखक बाबू बालमुकुंद गुप्त स्मृति अभियान में सक्रिय हैं।

Advertisement