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कैसे बनेंगे आदर्श गांव

08:45 AM Jun 06, 2022 IST

प्रोत्साहित करें

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ननेतागण लोकप्रियता के लिए गांव को गोद लेने की घोषणा तो कर देते हैं, मगर हकीकत में सारे दावे खोखले सिद्ध होते हैं। ये जनप्रतिनिधि गांव के विकास की बात करते हैं मगर इनके द्वारा गोद लिए हुए गांव बिजली, पानी, पक्की सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। यह योजना तभी सार्थक होगी जब माननीय समय-समय पर गांव में जाएंगे। गांव की पंचायत से लोगों की समस्याओं के बारे में जानेंगे, उनको दूर करने का प्रयास करेंगे तथा विकास के लिए बजट मुहैया करवाएंगे। साथ ही युवाओं को विकास कार्यों में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करेंगे। वहीं गांव का हर व्यक्ति भी विकास कार्य में सहयोग करे।

पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

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ईमानदार पहल हो

सरकारों द्वारा लगातार ग्रांट जारी करने के उपरांत भी ग्रामीण अंचलों की दशा में परिवर्तन आता हुआ दिख नहीं रहा है। आदर्श

गांव बनाने के लिए स्वच्छ छवि वाले ईमानदार, शिक्षित एवं समाजसेवी व्यक्तियों को ही राजनीति में उतरना चाहिए। ग्राम पंचायत, ब्लाॅक विकास समिति एवं जिला परिषद के रिकाॅर्ड को ऑनलाइन किया जाना चाहिए। सरकारी ग्रांट एवं रिकॉर्ड का ऑडिट एवं निरीक्षण चरणबद्ध प्रकिया से किया जाना चाहिए ताकि हेराफेरी पर अंकुश लग सके। तभी हम आदर्श गांव की परिकल्पना का स्वप्न साकार होते हुए देख सकते हैं।

युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद

नि:स्वार्थ सेवा हो

केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई आदर्श गांव योजना के तहत स्थानीय सांसद को अपने चुनावी क्षेत्र में से किसी एक गांव को आदर्श गांव घोषित करने का उपक्रम शुरू हुआ था। इसमें बिजली, पानी, चिकित्सा एवं शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का विकसित किया जाना शामिल था। ऐसे आदर्श गांव में भी मूलभूत सुविधाओं की कमी, गंदे पानी से भरे तालाब, आपदा प्रबंधन सुविधाओं का अभाव आदि रहते हैं। अकसर ये सांसद की अनदेखी का कारण बने हैं। असल में सांसद-विधायकों की नि:स्वार्थ सेवा द्वारा ही गांव काे आदर्श रूप दिया जा सकता है।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

इच्छाशक्ति की कमी

काम पूरे होने संभव हैं जैसे पंचायती राज की स्थापना, सहकारिता, कृषि और उद्योगों में स्थानीय संसाधनों का उपयोग, साफ-सफाई, गांवों को सड़कों से जोड़ना, स्कूल बनाना इत्यादि। साधारण काम को भी दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी और दशकों की उपेक्षा ने मुश्किल बना दिया है। सरकारी योजनाओं से हटकर अगर गांवों से निकल कर कामयाब हुए लोग अपने-अपने गांवों को गोद लेकर उनका विकास करें, कंपनियों के लिए सीएसआर का कुछ हिस्सा गांवों में खर्च करना अनिवार्य हो जाये तो बड़ा बदलाव आ सकता है। निसंदेह आदर्श गांव के विचार को हकीकत में बदलना एक साझा प्रयास है।

बृजेश माथुर, गाजियाबाद

कर्तव्य समझें

किसी गांव को आदर्श बनाने के लिए जनप्रतिनिधियों व सरकार के साथ-साथ गांव के लोगों को भी आदर्शों व प्रतिमानों को स्थापित करना होगा। लोगों को सामुदायिक और स्वैच्छिक सेवा की भावना को मूर्त रूप देना होगा। लैंगिक समानता, महिलाओं के लिए सम्मान, सांस्कृतिक विरासत संरक्षण और प्रोत्साहन के साथ ही विकास और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन स्थापित करने की ओर ध्यान देना होगा। पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी के साथ ही मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के पालन के बिना आदर्श गांव की कल्पना नहीं की जा सकती है।

सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब

समुदाय की भागीदारी

सांसदों द्वारा आदर्श ग्राम योजना के तहत एक गांव गोद लेकर उसे आदर्श बनाने की दिशा में अच्छी पहल थी। लेकिन अकसर हमारे जनप्रतिनिधि गांव को गोद लेकर उसे भूल जाते हैं। इस योजना के तहत चयनित गांवों में भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। दरअसल, आदर्श गांव बनाने के लिए जनभावनाओं को समझ कर स्थानीय जरूरत के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता है। केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं में तालमेल बिठाना व ग्रामीण जनता को स्व विकास हेतु जागरूक करना जरूरी है। कुशल नेतृत्व, स्थानीय समुदाय की भागीदारी, धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं का योगदान भी आवश्यक है।

सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल

जिम्मेदारी निभायें

आदर्श गांव की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। एक ऐसा गांव, जिसमें हरियाली और खुशहाली हो। लेकिन ऐसा आदर्श गांव बनेगा कैसे? उत्तर एकदम स्पष्ट है- गांववालों की समझदारी, ईमानदारी और मेहनत से। प्रधानमंत्री रोजगार योजना तथा अन्य योजनाएं गांवों की समृद्धि के लिए हैं। इनका उपयोग निष्पक्ष भाव से होना चाहिए। इसके लिए ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा अपने स्तर पर कुछ जिम्मेदारी उठानी होगी। सामूहिक श्रमदान से गांव चमक सकते हैं। संसाधनों का समुचित उपयोग और संरक्षण होना चाहिए। आपसी द्वेष, वैमनस्य और ईर्ष्या को त्यागकर एकता के सूत्र में बंधकर आदर्श गांव की परिकल्पना में रंग भर सकते हैं।

नरेन्द्र सिंह नीहार, नयी दिल्ली

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