देशभक्ति का जज्बा
बात उन दिनों की है जब अलीपुर षड्यंत्र केस में श्रीअरविंद और अन्य देशभक्त गिरफ्तार हो चुके थे। इन देशभक्तों को छुड़ाने के लिए देशबंधु चितरंजन दास जी-जान से लगे हुए थे। आंदोलनकारियों की सहायता के लिए उन्होंने एक व्यापारी से दो लाख रुपये कर्ज लिए थे। एक दिन वह व्यापारी देशबंधु के घर पर आया और बोला, ‘अब आप मेरे दो लाख रुपये दे दीजिए। मैं रुपये लिए बिना यहां से नहीं जाऊंगा।’ तभी एक व्यक्ति वहां आया और देशबंधु से एक मुकदमे की पैरवी के लिए विनती करने लगे। वह व्यक्ति देशबंधु को मुकदमे की पैरवी के लिए पांच लाख रुपये देने को तैयार था। देशबंधु व्यस्तता के बीच बोल पड़े, ‘इन देशभक्तों के जीवन के सामने, जिनके बचाव के लिए मैं इस मुकदमे में लगा हूं , पांच लाख रुपये क्या? आप अपनी सारी संपत्ति भी दे दें, तो वह मेरे लिए तुच्छ है।’ देशबंधु की बातें सुनकर व्यापारी की आंखें खुल गयीं। त्याग के इस देवता के सामने अपनी हरकत के लिए उसे आत्मग्लानि होने लगी। उसने अपनी चेक बुक निकाली और देशबंधु के सामने रखकर बोला, ‘आपके इस त्याग को देखकर मेरा सिर श्रद्धा से झुुक गया है। आपको जितने रुपयों की आवश्यकता हो इस चेक में भरकर लिख दीजिए। देश के लिए यह मेरी छोटी-सी भेंट स्वीकार कीजिए।’ प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प