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Pauranik Kahaniyan : आखिर क्यों भगवान पशुराम ने अपनी माता का किया वध... आप भी नहीं जानते होंगे ये कहानी

07:33 PM Apr 11, 2025 IST
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चंडीगढ़, 11 अप्रैल (ट्रिन्यू)

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Pauranik Kahaniyan : भगवान परशुराम, जोकि भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, का चरित्र अत्यंत जटिल और प्रेरणादायक है। भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि थे, जो महान तपस्वी और ब्रह्मज्ञानी थे। उनकी माता रेणुका भी अत्यंत पतिव्रता, धर्मपरायण और शक्तिशाली स्त्री थीं। वे प्रतिदिन गंगा नदी से जल भरकर लातीं और भगवान के पूजन हेतु कर्म करती थीं। मगर, ऐसा क्या हुआ कि पशुराम को अपनी माता का वध करना पड़ा? चलिए जानते हैं पौराणिक कथा...

गंगा नदी से जल भरने गई पशुराम की माता, और...

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक दिन जब रेणुका नदी पर थीं उन्होंने वहां राजा चित्र रथ, गंधर्वों व अप्सराओं को जलक्रीड़ा करते हुए देखा और क्षणिक रूप से उनका मन विचलित हो गया। वह यह सब देखने में इतना व्यस्त हो गई कि उन्हें एक लंबा समय बीत गया। उधर, महर्षि जमदग्नि हवन पूजन हेतु बैठे हुए थे और उन्हें देर हो रही थी। जब तक देवी रेणुका आश्रम पहुंची तब तक हवन में विलंब हो चुका था। इससे महर्षि जमदग्नि भी क्रोधित हो गए थे।

पिता की आज्ञा पर किया माता का वध

क्रोध में उन्होंने अपनी पत्नी को मर्यादा विरोधी आचरण करने हेतु दंड दिया। उन्होंने पुत्रों को आदेश दिया कि वे माता का वध करें। पहले चारों पुत्रों रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु ने ऐसा करने से मना कर दिया। जमदग्नि ने उन्हें विचार शून्य होने का श्राप दे दिया। जब उन्होंने भूत भविष्य जानने वाले परशुराम को यह आदेश दिया तो उन्होंने बिना किसी सवाल के माता का वध कर दिया।

फिर क्या हुआ?

परशुराम की इस आज्ञाकारिता से ऋषि अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने परशुराम से तीन वरदान मांगने के लिए कहा। चूंकि भगवान परशुराम यह सब पहले से ही जानते हैं, इसलिए उन्होंने बिना किसी झिझक व देरी सबसे पहले अपनी माता को पुनर्जीवित करने का वर मांगा। साथ ही अपने भाइयों को भी जीवनदान देने का आग्रह किया। ऋषि जमदग्नि ने यह वरदान स्वीकार किया और सभी को पुनः जीवित कर दिया। दूसरा वह उन्होंने मांगा कि इनमें से किसी को भी इन बातों की स्मृति ने रहे।

तीसरा वरदान में भगवान पशुराम ने अपने भाईयों व माता के लिए दीर्घायु एवं अजय का वर मांगा। तथास्तु कह कर उन्होंने अपने पुत्र को तीनों वरदान दे दिए। साथ ही महर्षि जमदग्नि समझ गए कि उनका पुत्र जरूर भगवान का अवतार है। कोई भी पुत्र ऐसे अपनी माता का वध नहीं कर सकता। उन्होंने मन ही मन अपने पुत्र को प्रणाम किया।

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