नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बीरा
चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म माना गया है। वे ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं और भगवान शिव की तरह ही अत्यंत भोले हैं जो शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। वे चिरंजीवी हैं और कलियुग के इस समय में भी हमारे बीच विद्यमान हैं।
योगेंद्र माथुर
आज मनुष्य तमाम संकटों से जूझ रहा है। विषम परिस्थितियों में संकट मोचक हनुमानजी का स्मरण हो आना स्वाभाविक है, क्योंकि कलियुग में एक मात्र हनुमान जी ही ऐसे जाग्रत देवता माने गए हैं जो हमें संकट से मुक्ति दिला सकते हैं। अपने भक्तों को संकट से उबारने की शक्ति व कृपा के कारण ही उन्हें संकटमोचक नाम दिया गया है।
‘संकट से हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावे॥’
जन्म और उनकी महिमा
चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म माना गया है। वे ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं और भगवान शिव की तरह ही अत्यंत भोले हैं जो शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। वे चिरंजीवी हैं और कलियुग के इस समय मे भी हमारे बीच विद्यमान हैं। माता सीता से उन्हें अष्टसिद्धि व नवनिधि का स्वामी होने का आशीर्वाद प्राप्त है।
‘अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता। अस वर दिन जानकी माता॥’
अद्वितीय बल-बुद्धि
पवनपुत्र हनुमानजी को अतुलनीय बल-बुद्धि के स्वामी के रूप में नमन किया गया है :-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
बाल्यकाल और शक्तियों का आशीर्वाद
हनुमानजी के महाबलशाली होने के संबंध मे उनकी बाल्यावस्था से जुड़ा प्रसंग है। अपनी बाल्यावस्था में एक बार जब हनुमानजी ने भूख की प्रबलतावश भगवान सूर्य को फल मान कर आहार के रूप में ग्रहण कर लिया तो समूचे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया। चिंतित देवी-देवताओं ने इसका कारण जानकर जब उनसे भगवान सूर्य को मुक्त करने का अनुरोध किया तब इस अनुरोध पर हनुमानजी ने भगवान सूर्य को अपने मुख से पुनः मुक्त कर दिया। इसके बाद हर्षित-प्रफुल्लित सभी देवी-देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद के साथ अपनी अंशात्मक शक्तियां भी प्रदान कीं। अपनी शक्तियों के साथ सभी देवी-देवताओं की अंशात्मक शक्तियां प्राप्त होने से हनुमानजी अतुलनीय बल-बुद्धि के स्वामी हो गए।
‘रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनीपुत्र पवन सुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥’
आराधना के लाभ
संसार या सृष्टि का ऐसा कोई कार्य नहीं है जो अंजनीपुत्र हनुमानजी के अनुग्रह से पूर्ण व सफल नहीं होता हो।
‘दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥’
महावीर हनुमानजी की आराधना करने वाले भक्तों को भूत-प्रेत बाधा आदि का भय भी नहीं सताता है। उनके स्मरण मात्र से यह भय समाप्त हो जाता है।
‘भूत पिशाच निकट नही आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥’
जो व्यक्ति सदावत्सल श्रीराम जी के साथ उनके परम भक्त हनुमानजी की आराधना में सदैव संलग्न रहते हैं, वे रोग, शोक, दुख आदि से सदैव बचे रहते हैं।
‘नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बीरा॥’
श्राप प्रसंग
अतः संसार के किसी भी संकट से संकटमोचन हनुमानजी ही हमें उबार सकते हैं। हमें उनका ध्यान कर सभी प्रकार के संकट से मुक्ति की प्रार्थना सदैव करना चाहिए। लेकिन एक बात का हमें अवश्य ध्यान रखना होगा कि पवनपुत्र हनुमानजी को श्राप है कि उन्हें अपनी शक्ति का भान नहीं रहेगा। उन्हें उनकी शक्ति का भान कराना पड़ता है। इस संबंध में सर्वाधिक प्रचलित प्रसंग के अनुसार बचपन में अपनी नटखट शरारतों के चलते जब उन्होंने ऋषि-मुनियों के आश्रम में पहुंचकर आश्रम को नुकसान पहुंचाया और उनके धार्मिक अनुष्ठानों में बाधा पहुंचाई तो ऋषि-मुनियों ने उन्हें यह श्राप दे दिया लेकिन बाद में अपना क्रोध शांत होने पर उन ऋषि-मुनियों ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें भान कराने पर ही अपने बल का स्मरण होगा।
रामचरित मानस के किष्किंधा कांड के प्रसंग के अनुसार लंका जाकर माता सीता की खोज का जब प्रश्न खड़ा हुआ तो जामवंतजी ने हनुमानजी को उनकी शक्तियों का भान कराया था और अपनी शक्तियों का भान होने के बाद ही हनुमानजी ने लंका पहुंच कर माता सीता का पता लगाया था।
‘कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना॥
कवन सो काज कठिन जग माही। जो नही होत तात तुम पाही॥’
प्रसन्न करने का उपाय
अतः यदि हम उक्त चौपाइयों का पाठ कर महावीर हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण कराएं और उन्हें प्रसन्न कर संकट मुक्ति हेतु कृपा मांगे तो वे निश्चित ही हमें अभय प्रदान करेंगे।
रामभक्त हनुमानजी को प्रसन्न करने का सीधा व सरल उपाय है उन्हें सिंदूर चढ़ाना। सिंदूर लेपन से वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इसकी वजह उनका स्वामी भक्ति या निष्ठा से जुड़ा प्रसंग सर्वाधिक प्रचलित है। प्रसंग के अनुसार एक बार माता सीता को मांग में सिंदूर भरते देख हनुमानजी ने उनसे इसका कारण पूछा। माता सीता में उन्हें बताया की ऐसा करने से उनके स्वामी अर्थात् प्रभु राम की उम्र व उनके प्रति प्रेम बढ़ता है। तब यह सोचकर कि माता सीता की मांग में भरे चुटकी भर सिंदूर से यदि उनके स्वामी की उम्र व प्रेम बढ़ जाता है तो पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने से प्रभु राम की उम्र व उनके प्रति प्रेम कितना बढ़ जाएगा? ऐसा सोचकर उन्होंने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया। ऐसा करने के बाद जब वे प्रभु श्रीराम व माता जानकी के सामने पहुंचे तो उन्होंने उनका यह स्वरूप देखकर हंसते हुए हनुमानजी से इसका कारण पूछा। हनुमानजी ने जब उन्हें अपने मन की बात बताई तो प्रभु श्रीराम व माता जानकी ने अपने प्रति उनकी निष्ठा, भक्ति व प्रेम से अभिभूत होकर उन्हें यह आशीर्वाद दिया कि जो कोई भक्त उन्हें सिंदूर चढ़ाएगा उसके सभी संकट शीघ्र समाप्त हो जाएंगे और उसकी सभी मनोकामना पूरी होगी।
जयंती पर विशेष आराधना
अतः हनुमान जयंती पर उनके ध्यान व आराधना का सुअवसर है। हम उनका सिंदूर शृंगार कर हनुमान चालीसा, सुंदरकांड व रामायण पाठ के साथ उनकी पूजा-अर्चना करें और वर्तमान संकट से मुक्ति की प्रार्थना करें।