भारत की आत्मा
एक बार महात्मा गांधी और ठक्कर बाप्पा उड़ीसा में एक छोटे से स्टेशन पर रेलगाड़ी की प्रतीक्षा में थे कि एक बुज़ुर्ग आदिवासी आया और घुटने टेककर गांधीजी के चरण छूने लगा। गांधीजी उसे अपलक देखते रहे। उसने केवल एक लंगोटी पहन रखी थी और उसके शरीर में बस पसलियां ही पसलियां दिखाई दे रही थीं। कमर से उसने एक पैसा निकाला और महात्मा जी के पैरों के पास भावुक होकर रख दिया। गांधीजी की आंखें चमक उठीं। ‘क्यों? यह पैसा क्यों रखा?’ उन्होंने प्रश्न किया। ‘देव-दर्शन को जाते हैं तो कुछ भेंट चढ़ाने तो ले ही जाते हैं ना?’ वह बोला। ‘अब क्या करूं?’ गांधीजी ने कुछ सोचा, फिर उन्होंने विनम्रतापूर्वक वह पैसा ले लिया और पास बैठे हुए उड़ीसा के निस्वार्थ समाजसेवक गोपबंधु दास से बोले, ‘देखो गोपबंधु, यही है भारत की आत्मा। इसका शरीर दुर्बल है, पर आत्मा बहुत बलवान है।’ गोपबंधु दास जी ने इस प्रसंग का उल्लेख अपने लेखों तथा विविध उद्बोधनों में कई बार किया है।
प्रस्तुति : पूनम पांडे