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नकदी जज के द्वार : 17 साल पुराने केस में जस्टिस निर्मल यादव बरी

05:00 AM Mar 30, 2025 IST
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कोर्ट से बाहर निकलतीं जस्टिस निर्मल यादव।

रामकृष्ण उपाध्याय/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 29 मार्च
‘जज के दरवाजे पर नकदी’ संबंधी 17 साल पुराने केस में चंडीगढ़ की एक सीबीआई अदालत ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) निर्मल यादव और तीन अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है। वर्ष 2008 के इस केस में अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा। जिन अन्य आरोपियों को बरी किया गया है, उनमें होटल व्यवसायी रविंदर सिंह, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह शामिल हैं। हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल नामक एक आरोपी की मामले की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।
जस्टिस यादव के खिलाफ मामला तब शुरू हुआ था, जब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की एक अन्य जज जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर 15 लाख रुपये से भरा एक बैग पहुंचाया गया था। जस्टिस कौर के घर पर काम करने वाले अमरीक सिंह ने पुलिस को बताया था कि 13 अगस्त 2008 को रात करीब साढ़े आठ बजे प्रकाश राम नामक व्यक्ति प्लास्टिक का थैला लेकर आया और बताया कि ‘जस्टिस कौर को देने के लिए दिल्ली से कागजात आए हैं।’ थैला खोला गया तो उसमें नोट भरे मिले। पुलिस ने प्रकाश को हिरासत में ले लिया। बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी गयी। आरोप पत्र के अनुसार थैला जस्टिस यादव के लिए था, लेकिन दोनों जजों के नाम में समानता होने के कारण यह गलती से जस्टिस कौर के घर पहुंच गया। सीबीआई ने आरोप पत्र में दावा किया कि 13 अगस्त, 2008 को रविंदर सिंह ने जस्टिस निर्मल यादव को देने के लिए दिल्ली में संजीव बंसल को होटल में 15 लाख दिए। बंसल ने अपनी पत्नी को फोन करके रुपए प्रकाश राम के जरिए पहुंचवा दिए। सीबीआई ने दावा किया कि प्रकाश राम अनजाने में जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गए।
सरकारी वकील नरेंद्र सिंह ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष ने केस संदेह से परे साबित किया है। जस्टिस यादव की ओर से पेश हुए वकील विशाल गर्ग ने दलील दी कि सीबीआई ंने उन्हें गलत तरीके से फंसाया है। अभियोजन पक्ष ने मामले में शुरुआत में 84 गवाहों का हवाला दिया था।

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‘हर किसी को समझनी चाहिए पीड़ा, कोर्ट ने सम्मान बहाल किया’

कैप्टन अजय यादव

चंडीगढ़ (सौरभ मलिक) : 17 साल की लंबी पीड़ा को याद करते हुए कहा जस्टिस निर्मल यादव ने कहा, ‘हर किसी को उनकी पीड़ा समझनी चाहिए।’ उनके भाई, हरियाणा के पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इसने वर्षों की पीड़ा और अपमान के बाद उनके सम्मान को बहाल किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लंबी कानूनी लड़ाई और उसके साथ-साथ मीडिया ट्रायल ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था, लेकिन न्यायपालिका ने अंततः उनके मामले में न्याय को बरकरार रखा। उन्होंने कहा, ‘अदालत के आदेश से मेरी बहन का सम्मान सुरक्षित हुआ है। उनका करियर बेदाग रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘उन्हें बहुत मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा, लेकिन हमें हमेशा न्यायिक प्रणाली पर भरोसा था। फैसला उनके लिए बहुत बड़ी राहत लेकर आया है।’

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 कब क्या हुआ
13 अगस्त, 2008 : जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंचा नोटों से भरा बैग
16 अगस्त, 2008 : एफआईआर दर्ज
22 अगस्त, 2008 : पुलिस का दावा नकदी जस्टिस निर्मल यादव के लिए थी
26 अगस्त, 2008 : केस सीबीआई के सुपुर्द, उसी दिन समिति गठित
12 दिसंबर, 2008 : समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रधान न्यायाधीश को सौंपी।
15 जनवरी, 2009 : सीबीआई का अभियोजन स्वीकृति का अनुरोध
07 दिसंबर, 2009 : विधि मंत्रालय ने सीबीआई से कहा, कार्रवाई जरूरी नहीं
12 दिसंबर, 2009 : सीबीआई कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल
26 मार्च, 2010 : विशेष न्यायाधीश ने क्लोजर रिपोर्ट ठुकराई, जांच को कहा
01 मार्च 2011 : केस की स्वीकृति मिली
04 मार्च 2011 : सीबीआई कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल
14 नवंबर 2011 : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अभियोजन स्वीकृति आदेश रद्द करने संबंधी आवेदन खारिज किया
18 जनवरी 2014 : सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए
15 फरवरी 2014 : अभियोजन पक्ष की गवाही शुरू
27 मार्च 2025 : अंतिम बहस पूरी
29 मार्च 2025 : सभी आरोपी बरी

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