जहां शिव की भुजाओं की होती है पूजा
तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। तुंगनाथ सबसे ऊंचाई पर बना शिव मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा होती है। हर साल वैशाखी के पर्व पर तुंगनाथ के मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली के बाद छह महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
कमलेश भट्ट
उत्तराखंड में भगवान शिव के पांच प्रमुख मंदिरों को पंचकेदार के नाम से जाना जाता है। इनमें बाबा केदार यानी केदारनाथ के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन इसके अलावा चार और केदार हैं। पंचकेदार में केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर महादेव शामिल हैं। शिव जी की भुजाओं की पूजा तुंगनाथ में, मुख की पूजा रुद्रनाथ में, नाभि की पूजा मध्यमहेश्वर में, बाल की पूजा कल्पेश्वर में और बैल के कूबड़ की पूजा केदारनाथ में होती है।
तुंगनाथ सबसे ऊंचाई पर बना शिव मंदिर है। रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3690 मीटर की ऊंचाई पर है। इस मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा होती है। हर साल वैशाखी के पर्व पर तुंगनाथ के मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली के बाद छह महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल के दौरान, तुंगनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद, पूजा-अर्चना मार्कण्डेय मंदिर, मक्कू मठ में की जाती है। इस मंदिर में मक्कू गांव के पुजारी पूजा-अर्चना करते हैं।
स्कन्द पुराण के केदारखंड के अध्याय 50, श्लोक 16 में इस मंदिर के महत्व के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार, भगवान शिव तुंगनाथ के महत्व के बारे में कहते हैं कि जो व्यक्ति एक बार भी तुंगक्षेत्र का दर्शन करता है, उसे मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है। इसके अलावा, जो व्यक्ति तुंगनाथ के माहात्म्य को पढ़ेगा अथवा सुनेगा, उसे समस्त तीर्थों की यात्रा करने का फल मिलेगा।
मान्यता के अनुसार जिन-जिन स्थानों पर भगवान शिव पांडवों से छिपे उन स्थानों पर पंच केदार स्थित हैं। यह भी मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए यहीं पर तपस्या की थी। एक और मान्यता है कि भगवान राम ने यहां कुछ क्षण एकांत में बिताया था। इस मंदिर का निर्माण बाद में पांडवों ने करवाया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के कारण पांडव अपनों को मारने के बाद दुखी थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वह महर्षि व्यास के पास गए। व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाइयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ भगवान शिव ही बचा सकते हैं। महर्षि व्यास के कहने पर पांडव हिमालय पहुंचे, लेकिन भगवान शिव महाभारत युद्ध के कारण उनसे नाराज थे। भगवान शिव पांडवों को भ्रमित करने के लिए भैंसों के झुंड के बीच भैंसा (इसीलिए शिव को महेश के नाम से भी जाना जाता है) बनकर वहां से चले गए, लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानी पंच केदार कहलाए। इन्हीं में से एक केदार तुंगनाथ है। तुंगनाथ से ऊपर 1.5 किमी की ऊंचाई पर चंद्रशिला चोटी है जहां पर श्रीराम ने ब्रह्म हत्या से मुक्ति के लिए तप किया था।
फोटो स्रोतः ऋषभ रावत