शर्मसार हैं हम
कर्नाटक के हंपी में इस्राइली पर्यटक समेत दो महिलाओं के साथ गैंगरेप की घटना का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि दिल्ली में एक ब्रिटिश पर्यटक से दुराचार का घृणित मामला सामने आया है। निश्चय ही यह देश की छवि को धूमिल करने वाला कृत्य है। हंपी की घटना तो भयावह थी, जिसमें रात में कैंपिंग कर रहे तीन पर्यटकों को नहर में फेंक दिया गया और तीन अपराधियों ने इस्राइली महिला व एक भारतीय महिला से सामूहिक दुष्कर्म किया। दोनों महिलाओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहीं नदी में फेंके गए एक पर्यटक की मौत हो गई, जिसका शव बरामद कर लिया गया। पर्यटकों में एक अमेरिकी व दो भारतीय थे। बदमाशों ने न केवल दुष्कर्म किया बल्कि मारपीट व लूटपाट भी की। हालांकि, तीनों अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन देश की प्रतिष्ठा को जो आंच आई है, उसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं। विदेशों में भारत की छवि यौन अपराधियों के चलते लगातार खराब हो रही है। गाहे-बगाहे सुनसान पर्यटक स्थलों पर यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती हैं। वहीं दूसरी ओर दिल्ली के एक होटल में एक ब्रिटिश पर्यटक के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया। एक युवक ने सोशल मीडिया पर दोस्ती करके भारत घूमने आई ब्रिटिश महिला को दिल्ली बुलाया और एक होटल में दुष्कर्म किया। इस मामले में ब्रिटिश दूतावास ने संज्ञान लिया है। बहुत संभव है कि विदेशी सरकारें भारत आने वाले पर्यटकों को लेकर कोई नकारात्मक एडवाइजरी जारी करें।
हाल के दिनों में भारत में यौन अपराधों की बाढ़-सी आई हुई है। न केवल विदेशियों बल्कि भारतीय महिलाओं के साथ घृणित यौन अपराधों की तमाम घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस नैतिक पराभव का कारण क्या है। कहीं न कहीं ये जीवन मूल्यों में क्षरण का भी परिचायक है। दरअसल, इंटरनेट और कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री की बाढ़-सी आई हुई है। देश का युवा उसकी चपेट में आकर भटकाव की राह में बढ़ रहा है। सामाजिक स्तर पर संयुक्त परिवारों के बिखराव से भी यह संकट और बढ़ा है। गांव व शहर में पहले सामाजिक संरचना मनुष्य को संयमित व मर्यादित जीवन जीने को बाध्य करती थी। हमारी शिक्षा व्यवस्था से नैतिक शिक्षा की कमी भी अखरती है। दरअसल, सोशल मीडिया पर ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो पश्चिमी जीवन शैली की तर्ज पर स्वच्छंद यौन व्यवहार को प्रोत्साहित करते हैं। जिसे युवा सामान्य जीवन में स्वच्छंदता का पर्याय मानने लगा है। कहीं न कहीं महानगरीय संस्कृति में नई पीढ़ी पर परिवार संस्था की ढीली होती पकड़ भी इन अपराधों के मूल में है। समाज विज्ञानियों को आत्ममंथन करना होगा कि यौन अपराधों को लेकर सख्त कानून बनने के बावजूद इस आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है। इस दिशा में सरकार, समाज व परिवार को गंभीरता से मंथन करना होगा। अन्यथा भारत यौन अपराधों की राजधानी बनने में देर नहीं लगेगी।