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न्यायाधीशों की संपत्ति

04:00 AM Apr 05, 2025 IST

ऐसे वक्त में जब न्यायपालिका में अधिक पारदर्शिता की मांग सार्वजनिक विमर्श में है, सुप्रीम कोर्ट के सभी वर्तमान न्यायाधीशों के द्वारा न्यायालय की वेबसाइट पर विवरण प्रकाशित करके अपनी संपत्ति का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने पर सहमति व्यक्त करना सुखद ही है। निश्चय ही यह एक सार्थक पहल ही कही जाएगी। दरअसल, यह कदम न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास में लगी आग में नोटों का जखीरा जलने के समाचार प्रकाश में आने के कुछ समय बाद उठाया गया है। उल्लेखनीय है घटना के समय वे दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। निश्चय ही इस घटनाक्रम से समाज में अच्छा संदेश नहीं गया। दरअसल, वर्तमान परिपाटी के अनुसार न्यायाधीशों के लिये निजी संपत्ति का घोषणा पत्र प्रस्तुत करना एक स्वैच्छिक परंपरा है। जिसे अनिवार्य बनाने की मांग की जाती रही है। निश्चय ही न्याय व्यवस्था के संरक्षक होने के कारण इसके स्वैच्छिक रहने पर तमाम किंतु-परंतु हो सकते हैं। जनता हमेशा से ही पंच-परमेश्वरों की स्वच्छ-धवल छवि की आकांक्षा रखती है। दरअसल, न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति के खुलासे का मुद्दा दशकों तक सार्वजनिक विमर्श में उठता रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1997 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके अनुसार उसके सभी न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा देश की शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष करनी थी। इसी प्रकार उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को ये विवरण उनके राज्य के मुख्य न्यायाधीशों के समक्ष पेश करने थे। यहां ये उल्लेखनीय है कि इस प्रस्ताव के साथ एक शर्त भी जुड़ी थी कि ये घोषणाएं स्वैच्छिक और गोपनीय रहेंगी। लेकिन साथ ही सार्वजनिक विमर्श में यह मुद्दा भी रहा कि जनता भी इन जानकारियों को जानने की इच्छुक रहती है। वहीं दूसरी ओर वर्ष 2005 में सूचना के अधिकार अधिनियम को एक उम्मीद की किरण के रूप में देखा गया। लेकिन सूचना के अधिकार अधिनियम के एक प्रावधान में व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक करने में छूट दी गई थी। तर्क दिया गया था कि जब तक व्यापक सार्वजनिक हित में जरूरी न हो, प्रकटीकरण में छूट दी जाए।
दरअसल, इन प्रावधानों से न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणाओं की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के लिए एक अवरोध पैदा हुआ। यहां उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति देते हुए कहा था कि सूर्य का प्रकाश वास्तव में सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है। इस वक्तव्य के आलोक में न्यायाधीशों को भी अपनी संपत्ति के बारे में वास्तविक जानकारी सार्वजनिक परिदृश्य में रखने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। अन्यथा तथ्यों की परदादारी जनमानस के मन में कतिपय संशयों को भी जन्म दे सकती है। न्यायिक परिदृश्य में पारदर्शिता उजागर करने में विधायिका की सक्रिय भूमिका भी वक्त की मांग है। यहां उल्लेख करना समीचीन होगा कि विधि एवं न्याय विभाग की संसदीय समिति ने वर्ष 2023 में न्यायाधीशों के लिये अनिवार्य रूप से संपत्ति की घोषणा की सिफारिश की थी। लेकिन इस बाबत अभी तक कोई वैधानिक नियम नहीं बनाए गए हैं। निर्वाचित प्रतिनिधियों और नौकरशाहों को अपनी संपत्ति का सार्वजनिक खुलासा करना कानूनन अनिवार्य किया जा चुका है। ऐसे में आम जनमानस में धारणा बनी रहती है कि न्यायपालिका के बाबत भी कोई व्यवस्था होनी चाहिए। यह प्रश्न न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता और जबावदेही से भी जुड़ा है। यह सुखद होगा कि यदि ऐसी कोई पहल स्वयं न्यायपालिका की तरफ से होती है। न्यायपालिका हमेशा से समाज में पारदर्शिता व व्यावसायिक शुचिता की पक्षधर रही है। जनता इस कसौटी पर अपने पंच परमेश्वरों को भी खरा उतरता देखना चाहती है। निस्संदेह इस तरह के फैसले का दूरगामी प्रभाव भी होगा। इस दिशा में किसी भी पारदर्शी व्यवस्था का समाज में स्वागत ही होगा। ऐसे किसी भी कदम से उस आम आदमी के विश्वास को भी बल मिलेगा जो हर तरह के अन्याय व भ्रष्टाचार से तंग आकर उम्मीद की अंतिम किरण के रूप में न्यायालयों का रुख करता है। वह न्यायाधीशों को सत्य व सदाचारिता के प्रतीक के रूप में देखता है। वो न्याय देने वालों को न्याय की हर कसौटी पर खरा उतरना देखना चाहता है। यह न्याय की शुचिता की भी अनिवार्य शर्त है।

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