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समय रहते जांच और उपचार से जीवन रक्षा

05:43 AM Nov 29, 2024 IST

ज्ञानेन्द्र रावत

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फ्लोरोसिस एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण पानी में फ्लोराइड की अधिकता है, जिसके चलते हड्डियां, दांत, किडनी और अन्य शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इस रोग से प्रभावित लोग, विशेष रूप से गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में हैं, जहां पानी की खपत अधिक होती है। भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है, जहां लोग हैंडपंप या कुओं का पानी उपयोग करते हैं।
फ्लोरोसिस के कारण लोगों की हड्डियां कमजोर हो रही हैं, जिससे रीढ़ और शरीर के अन्य हिस्सों की हड्डियां टेढ़ी-मेढ़ी हो गई हैं। बच्चों के दांतों में पीलापन, छेद या टूटने की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा, हड्डियों में सूजन, जोड़ों में दर्द, घुटनों में सूजन और झुकने या बैठने में कठिनाई जैसे लक्षण भी देखे जा रहे हैं। इसके साथ ही पेट भारी रहना, कब्ज, प्यास न बुझना और किडनी के रोग भी बढ़ रहे हैं। अक्सर लोग हड्डियों के दर्द को गठिया समझ लेते हैं, लेकिन ये फ्लोरोसिस के लक्षण हो सकते हैं।
फ्लोरोसिस मुख्य रूप से दांतों को प्रभावित करने वाली एक कास्मेटिक स्थिति है, जो जीवन के पहले आठ वर्षों में फ्लोराइड के अधिक सेवन के कारण होती है, जब दांत बन रहे होते हैं। भारत के कई राज्य भूजल में फ्लोराइड की अधिक मात्रा से प्रभावित हैं, जिनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु प्रमुख हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, पानी के अलावा गेहूं, चावल और आलू जैसे खाद्य पदार्थों से भी फ्लोरोसिस हो सकता है। दिल्ली के कुछ इलाकों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में भी फ्लोराइड की अधिक मात्रा से लोग प्रभावित हैं।
फ्लोरोसिस के बारे में जागरूकता का अभाव इसके बढ़ने का मुख्य कारण है। जल प्रदूषण, भूमिगत जल के अत्यधिक उपयोग और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही ने इस बीमारी को फैलने का मौका दिया है। शोध से पुष्टि हुई है कि फ्लोरोसिस किसी भी उम्र में हो सकता है, और यदि समय रहते इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह गंभीर हो सकता है। बच्चों में डेंटल फ्लोरोसिस अधिक होता है, जिसके कारण उनके दांत कमजोर, पीलापन, छेद, धब्बे और गैप की समस्या उत्पन्न होती है। फ्लोरोसिस शरीर में पोटेशियम की वृद्धि और कैल्शियम की कमी का कारण बनता है।
विशेषज्ञों के अनुसार फ्लोरोसिस होने के बाद किसी भी व्यक्ति का सामान्य जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि फ्लोरोसिस होने ही नहीं दिया जाए। यह ध्यान देने वाली बात है कि यह केवल दूषित पानी से ही नहीं होता, पानी के अलावा भी बहुत सारी चीजों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
बीते दिनों नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में क्लिनिकल ईकोटैक्सियोलॉजी फेसिलिटी की ओर से तीन दिवसीय 36वीं इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ इंटरनेशनल सोसायटी फॉर फ्लोरोसिस रिसर्च का आयोजन हुआ। इसमें भारत के अलावा जापान, थाईलैंड, चीन, ईरान और अन्य देशों के वैज्ञानिक शामिल हुए, जिन्होंने भूजल स्तर नीचे खिसकने समेत बहुतेरे कारणों की वजह से पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने के चलते फ्लोरोसिस की व्यापकता और बीमारी से निपटने के उपायों पर गहनता से विचार-विमर्श किया।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राजधानी क्षेत्र में भी फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा मानक से कहीं बहुत ज्यादा है। यहां रहने वाले फ्लोराइड जनित बीमारियों से परेशान हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने से न तो रंग में कोई बदलाव आता है और न ही स्वाद में कोई अंतर ही आता है। ऐसी स्थिति में इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। उनके अनुसार ज्यादातर जलस्रोतों में प्राकृतिक रूप से भी फ्लोराइड पाया जाता है। यह भूजल में चट्टानों के कटाव से भी आता है। यही नहीं, आग या विस्फोट से पानी अत्यधिक गंदा होने से भी पानी में फ्लोराइड बढ़ रहा है।
चिकित्सकों का कहना है कि बचाव ही फ्लोरोसिस का सबसे बेहतर इलाज है। पानी में ज्यादा मात्रा में फ्लोराइड है तो उसमें फिल्टर लगाया जाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति में प्राथमिक स्तर पर बीमारी का पता चल जाता है तो एक्सरसाइज या दूसरे तरीकों से आसानी से उसका इलाज किया जा सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन-सी युक्त भोजन के अभाव में भी फ्लोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है। इससे बचाव हेतु एंटीऑक्सीडेंट्स आदि की प्रचुरता वाला भोजन लें।
विशेषज्ञों का मानना है कि फिल्टर करके पानी उपयोग करें। बारिश का पानी जमा करके इस्तेमाल में लाएं । खून की जांच कराएं, जिससे फ्लोराइड की मौजूदगी का पता चल जाता है। यदि पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.05 एमजी/लीटर है, तो यह सेहत के लिए खतरनाक है। एक्सरे की मदद से स्केलेटल फ्लोरोसिस का पता लग जाता है। हमें खासकर हड्डियों का भी एक्सरे कराना चाहिए, जिससे बीमारी का पता लग जाता है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि जागरूक रहना फ्लोरोसिस को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है।

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