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श्रावणी : आध्यात्मिक ज्ञान साधना का पर्व

02:12 PM Aug 22, 2021 IST

दीप चन्द भारद्वाज

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भारतीय समाज उत्सव धर्मी है। भारतवर्ष में पर्वों, उत्सवों और व्रतों की परंपरा अनवरत रूप से चलती रहती है। श्रावणी पर्व का भारतीय समाज में विशेष महत्व है। ज्योतिष के हिसाब से इस दिन श्रवण नक्षत्र होता है जिससे पूर्णिमा का संयोग होने से यह श्रावणी कही जाती है। सावन की पूर्णिमा को ज्ञान की साधना का पर्व माना गया है। यह आध्यात्मिक ऊर्जा को जाग्रत करने का पावन पर्व है। मनुस्मृति में इस दिन को उपाकर्म करने का दिन कहा गया है। श्रावणी पूर्णिमा एक मास के आध्यात्मिक ज्ञान रूपी यज्ञ की पूर्णाहुति है, वैदिक ग्रंथों के अध्ययन अध्यापन का उत्सव है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने कहा था, ‘वेद सत्य विद्याओं की पुस्तक है, वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।’ इस श्रावणी उपाकर्म के अंतर्गत वेदों के श्रवण मनन का विशेष महत्व है। इस पर्व में वैदिक ज्ञान व संस्कृति के संवर्धन एवं उन्नयन का रहस्य विद्यमान है।

ऋषि तर्पण

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श्रावण मास वर्षा ऋतु का समय होता है। इस महीने में देश के अधिकतर भागों में वर्षा होती है। प्राचीन काल में लोग श्रावण मास में वर्षा के कारण अवकाश रखते थे तथा घरों पर रहकर वैदिक शास्त्रों का श्रवण किया करते थे। अपने आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ाते थे। प्राचीन काल में आज की तरह सभी ग्रंथ मुद्रित रूप में सबको सुलभ नहीं थे अतः निकटवर्ती आश्रमों में जाकर रहते थे, वहां वैदिक विद्वानों से वेद के उपदेशों का श्रवण करते थे। ऋषि, मुनियों, योगियों के सान्निध्य में रहकर उनके मुखारविंद से आध्यात्मिक शास्त्रों के गूढ़ तत्वों का श्रवण करना इस श्रावणी पर्व का मुख्य ध्येय होता था। यह पर्व वेदों के स्वाध्याय का पावन पर्व है, जिसे ऋषि तर्पण का नाम भी दिया जाता है। तर्पण का अर्थ है ज्ञान और सत्य विद्या के मर्मज्ञ ऋषियों को संतुष्ट करना, जिनसे हमें वैदिक रहस्य को जानने व समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस दिन गुरुकुलों में ऋषि, मुनि वेद पारायण आरंभ करते थे तथा बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन किया जाता था। प्राचीन काल में गुरुकुलों में इसी दिन से शिक्षण सत्र का आरंभ होता था। इस दिन छात्र गुरुकुल में प्रवेश लेते थे, जिनका यज्ञोपवीत नहीं हुआ, उन्हें यज्ञोपवीत दिया जाता था। गुरु शिष्य के परम पवित्र एवं आवश्यक संबंध की स्थापना होती थी। प्राचीन मान्यताओं में इस पर्व को मानने वाले श्रद्धालु इस दिन नदियों के जल में खड़े होकर विराट भारत की महान परंपराओं का स्मरण करते हुए हिमालय जैसा महान संकल्प करते हैं जिसे हिमाद्रि संकल्प का नाम दिया गया है। इस पर्व पर ब्राह्मण, पुरोहित पवित्र तीर्थों पर स्नान करते हैं तथा नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। इस दिन बहनें स्नेह के प्रतीक के रूप में अपने भाई की कलाई पर न केवल राखी बांधती हैं, बल्कि वह अनिष्ट से सदा दूर रहे, यह कामना भी करती हैं। राखी का संस्कृत में नाम रक्षा है। रक्षा के बांधने से ही इसे रक्षाबंधन भी कहा जाता है। प्राचीन काल में यह कार्य पुरोहित करते थे। आचार्य अपने शिष्यों को रक्षासूत्र बांधते थे।

संस्कृत दिवस

शास्त्रों की भाषा संस्कृत के अध्ययन अध्यापन की परंपरा का यह दिन अक्षुण्ण रहे, इसी विचार को ध्यान में रखते हुए इस दिन को संस्कृत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा का आना पारंपरिक चेतना को जाग्रत करता है।

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Tags :
आध्यात्मिकज्ञान,श्रावणीसाधना