फिल्मों में भी खूब झलकी है देशभक्ति
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष दिखाने, उनके योगदान के बारे में बताने के लिए बॉलीवुड ने देशभक्ति की दास्तां बयां करती कई फिल्में बनाई हैं। गानों, फिल्मों और टीवी सीरियल के जरिए हमें उन लोगों के बारे में जानने को मिलता है जिन्होंने इस देश का सर पूरी दुनिया के सामने ऊंचा किया। हमारा देश जब भारत छोड़ो आंदोलन से गुजरा था, तभी सन 1943 में एक फिल्म आई थी ‘किस्मत’। इसका गाना ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है’ लोगों के बीच अंग्रेजों के विरोध का चेहरा बन गया था। उस समय भारत की फिल्मों को ब्रिटिश सेंसर बोर्ड की मंजूरी के साथ ही रिलीज किया जाता था। ऐसे में ब्रिटिश अफसरों के कमजोर भाषायी ज्ञान के चलते किसी तरह इस फिल्म के गाने को मंजूरी मिल गई थी। आजादी के बाद वजाहत मिर्जा ने ‘शहीद’ फिल्म का लेखन किया और इसका निर्देशन रमेश सहगल ने किया। इस फिल्म का गीत ‘वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो’ क़मर जलालाबादी ने लिखा था। 1950 में सबसे अधिक कामयाब फिल्म थी ‘समाधि’। इसका निर्देशन भी रमेश सहगल ने किया था। कहा जाता है कि यह फिल्म नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज से जुड़ी सच्ची घटना पर आधारित थी। उस दशक की सबसे कामयाब फिल्म महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ (1957) रही।
महात्मा गांधी के वास्तविक जीवन पर आधारित फिल्म ‘गांधी’ 1982 में बनी। निर्देशन रिचर्ड एटनबरोघ द्वारा किया गया है और इसमें बेन किंग्सले गांधी की भूमिका में हैं। इसे गांधीजी की महानता का परिणाम भी कह सकते हैं कि विदेशी उनके व्यक्तित्व के ऐसे मुरीद हुए कि फिल्म ही बना दी। युवाओं के दिलों पर राज करने वाले भगत सिंह के जीवन पर आधारित फ़िल्म 2002 में ‘द लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ बनी थी। भगत सिंह पर आधारित शहीद, और शहीद-ए-आजम बनी थी। यह फिल्म तीन मशहूर युवा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर बनी है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जिन्होंने अपनी जान गंवा दी थी। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के सामने घुटने नहीं टेके थे।
देश ने 60 के दशक में 1960 में गोवा मुक्ति युद्ध, 1962 में चीनी आक्रमण और 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण को झेला था। फिर 1971 में भी भारत-पाक युद्ध हुआ। इन युद्धों से शौर्य, देशभक्ति और बलिदान को लेकर हम सचेत हुए। उसके बाद देशभक्ति फिल्मों की लाइन लग गई। इनमें हक़ीक़त (1964), हमसाया (1968), प्रेम पुजारी (1970), ललकार (1972), हिन्दुस्तान की क़सम (1973), विजेता (1982)और आक्रमण (1975) शामिल हैं। अपने समय के मुताबिक प्रहार (1991), टैंगो चार्ली (2005), शौर्य (2008), 1971 (2007), ग़ाज़ी अटैक (2017) जैसी फिल्में बनीं। उपकार (1967) जैसी फिल्मों ने फौज की नौकरी छोड़ चुके व्यक्ति के काला बाजारी और नकली दवाओं के जाल में उलझने के खतरों को दर्शाया। पूरब और पश्चिम (1970) ने पश्चिम में भारतीय संस्कृति की अलख जलाये रखी।
20 वीं शताब्दी के अंत में भारत पर पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध थोपा था। हमारे जांबाज सैनिकों ने अपनी जान को दांव पर लगा दिया था और करगिल की चोटी पर तिरंगा लहराया। वर्ष 2003 में बनी फिल्म ‘एलओसी कारगिल’ भारत पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध पर बनी है। इसी तरह से सेनाओं के पराक्रम पर आधारित फिल्म 1997 में ‘बॉर्डर’ भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित थी। फिल्म की कहानी 1971 मे हुए भारत-पाकिस्तान की लड़ाई से प्रेरित है, जहां राजस्थान में 120 भारतीय जवानों ने सारी रात पाकिस्तान की टैंक रेजिमेंट का सामना किया था।
1960 के दशक के मध्य के बाद से, अमरीका और ब्रिटेन जैसे पश्चिम के औद्योगिक देशों में जाने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसने सुदूर राष्ट्रवाद की भावना के उदय का मार्ग प्रशस्त किया, जिसके द्वारा भारतीय अपनी पहचान पर गर्व करने लगे। ‘आई लव माई इंडिया’ (परदेस 1997) जैसे गीतों ने इस भावना को बरकरार रखा। लगान (2001), चक दे इंडिया (2007), भाग मिल्खा भाग (2013), दंगल (2016) जैसी फिल्मों ने देशभक्ति की भावना जगाने के लिए खेलों का सहारा लिया।
साल 2016 में कश्मीर के उरी में हुए आतंकी हमले पर बनी ‘उरी’ फिल्म भारतीय सेना के जोश और ताकत को दिखाती है। इसी तरह से 2018 में बनी फिल्म ‘परमाणु- द स्टोरी ऑफ पोखरन’ बनी थी। भारत में अंग्रेजों से पहली लड़ाई 1857 की क्रांति के दौरान ही देखने को मिली थी, जिसकी शुरुआत मंगल पांडेय ने की थी। उन पर आधारित फिल्म ‘मंगल पांडे : द राइजिंग’ बनी थी। साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ भड़की क्रांति के मुख्य नायक मंगल पांडे पर बनी यह इकलौती फिल्म है। जिसे निर्देशक केतन मेहता ने आमिर ख़ान को मुख्य भूमिका में लेकर बनाया था।
आजाद हिंद फौज के जरिए अंग्रेजों के पसीने छुड़ा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर साल 2004 में ‘नेताजी सुभाष चन्द्र बोस : द फॉरगॉटन हीरो’ बनी थी। श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी यह फिल्म चर्चा में अधिक नहीं रही, लेकिन इसने काफी सराहना बटोरी थी। इस तरह देश को आजादी दिलाने वाले हमारे नायकों पर कई उल्लेखनीय फिल्में बनीं।