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उम्मीदों का कत्ल

07:27 AM Apr 11, 2024 IST
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अमेरिका में क्लीवलैंड यूनिवर्सिटी में आईटी मास्टर्स करने गये हैदराबाद के एक छात्र की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत ने अमेरिका में अध्ययनरत भारतीय छात्रों को भयभीत किया है। यह छात्र अपने विश्वविद्यालय के होस्टल से बीते माह लापता हुआ था। परिजनों के अनुसार गत सात मार्च से उसका मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था। विचलित करने वाली बात यह है कि इस साल के अभी तीन माह ही बीते हैं और ग्यारह भारतवंशी या भारतीय छात्रों की हत्या या संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। हैदराबाद के अब्दुल अरफाथ के परिजनों का कहना था कि उनसे एक अज्ञात कॉल के जरिये एक व्यक्ति ने फिरौती की मांग की थी। कहा जा रहा था कि किसी आपराधिक समूह द्वारा उनका अपहरण किया गया था। माता-पिता ने विदेश मंत्रालय से भी मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाई थी। गत माह 21 मार्च को न्यूयार्क स्थित भारतीय कांसुलेट के अधिकारियों ने कहा था कि वे स्थानीय अधिकारियों से तालमेल बनाये हुए हैं। दुखद ही है कि एक अन्य भारतीय छात्रा उमा सत्या साई की क्लीवलैंड में ही पिछले सप्ताह संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। जिसकी जांच चल रही है। अभी तक उसकी मौत के कारणों का पता नहीं चल सका है। पिछले महीने भी भारत के एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नर्तक अमरनाथ घोष की मिसौरी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बीते महीने भारतीय वाणिज्य दूतावास ने एक्स पर बीस वर्षीय भारतीय छात्र अभिजीत की मौत की जानकारी दी थी। इसी तरह फरवरी में एक 23 वर्षीय अमेरिकी-भारतीय छात्र समीर कामथ इंडियाना के एक प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र में मृत पाये गए थे। अब चाहे दो फरवरी को वाशिंगटन में रेस्तरां के बाहर आईटी इंजीनियर विवेक तनेजा पर जानलेवा हमला हो, जनवरी में इलिनोइस में 18 वर्षीय छात्र अकुल धवन की संदिग्ध मौत हो या फिर जनवरी में एक बेघर नशेड़ी द्वारा भारतीय छात्र विवेक सैनी की पीट-पीटकर की गई हत्या हो, ये घटनाएं बेहद दुखद व चिंता जनक हैं।
दरअसल, भारतीय छात्रों के मन में अमेरिका को लेकर जो ‘सपनों के नखलिस्तान’ की धारणा बनी रही है, अब अमेरिका सुरक्षा की दृष्टि से उतना निरापद नहीं रहा। जब अमेरिका का कोई राष्ट्रपति सार्वजनिक तौर पर उकसावे का बयान दे कि भारतीय युवा तुम्हारी नौकरियां खा जाएंगे तो नासमझ लोगों की घातक प्रतिक्रिया का खमियाजा किसी न किसी को तो भुगतना ही होगा। नस्लभेदी नजरिया हो, अपराधों की दुनिया हो, नशे तस्करों के जाल हों या फिर ईर्ष्या की प्रतिक्रिया हो, भुगतना तो निर्दोष प्रवासियों को ही है। भारतीय अभिभावक अपना पेट काटकर व बैंकों से लोन लेकर अपने बच्चों को पढ़ाने अमेरिका भेजते हैं। ऐसे में किसी छात्र की हत्या पूरे परिवार को गहरे दुख व अवसाद में डुबो देती है। एक छात्र की मौत एक प्रतिभा की तमाम संभावनाओं की मौत होती है। भारतीय छात्रों का बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा व रोजगार के लिये लगातार पलायन करना हमारे नीति-नियंताओं के लिये भी आत्ममंथन का विषय है कि क्यों हम अपनी प्रतिभाओं को अनुकूल शैक्षिक व रोजगार का वातावरण भारत में नहीं दे पा रहे हैं। सही मायनों में अमेरिका लोकतांत्रिक मूल्यों, समरसता के समाज और वैचारिक आजादी जैसे जुमलों के सहारे जैसे विकासशील व गरीब मुल्कों को धमकाया करता है, वे मूल्यों उसके यहां प्रतिष्ठित हैं, इस बात में भी संदेह है। पिछले दिनों एक भारतीय की कार से कुचलने पर हुई मौत पर पुलिसकर्मी ने एक संवेदनहीन टिप्पणी की थी कि उसे मुआवजा मिलेगा। यह बयान अमेरिकी समाज की एक इंसान की जान के बारे में संकीर्ण सोच को भी दर्शाता है। पेप्सिको की पूर्व सीईओ इंदिरा नूई की भारतीय छात्रों के साथ हो रही घटनाओं पर की गई टिप्पणी भी विचारणीय है। जिसमें उन्होंने छात्रों से सतर्क रहने, सुरक्षा के लिये स्थानीय कानूनों का सम्मान करने तथा नशे से दूर रहने की सलाह दी थी। एक विडंबना यह भी है कि अमेरिका में वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास में तरनजीत सिंह संधू की सेवानिवृत्ति के तीन माह बाद भी पूर्णकालिक राजदूत की नियुक्ति नहीं हो पायी है।

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