मोटापा सब पे भारी
आर्थिक विषमताओं के बावजूद देश के लोगों में मोटापे की प्रवृत्ति का बढ़ना एक गंभीर स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है। इस संकट का विरोधाभासी पक्ष यह है कि अमीर संग गरीब भी मोटापे का शिकार हैं। जिसकी वजह से देश की आबादी के लिये मोटापे के मानकों को फिर से परिभाषित किया जा रहा है। इस बाबत नवीनतम दिशानिर्देश समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं। दरअसल, पारंपरिक बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई नये परिदृश्य में मोटापे को तार्किक रूप से परिभाषित नहीं करता। ये हमारी शरीर में बढ़ी चर्बी को नहीं दर्शाता। यह वजह है कि नये मानक पेट की चर्बी को प्राथमिकता देते हैं। दरअसल, हमारी शरीर की बढ़ी हुई चर्बी ही कालांतर मधुमेह और हृदय रोग जैसे चयापचय संबंधी विकारों को जन्म देती है। जो भारतीयों को असमान रूप से परिभाषित करता है। यही वजह है कि अब बीएमआई को माटापे नापने में अपर्याप्त माना जा रहा है। दरअसल, मोटाप नापने का परंपरागत मानक आनुवंशिक व शारीरिक संरचना के अंतर को नजरअंदाज करता है। जिसके विकल्प के रूप में अब कमर की परिधि और कमर से ऊंचाई के अनुपात को अधिक विश्वसनीय संकेतक के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। दरअसल, वर्ष 2019-21 की अवधि के दौरान किए गये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 23 फीसदी महिलाएं अधिक वजन वाली और चालीस फीसदी मोटे पेट वाली थीं। जबकि 22 फीसदी पुरुष अधिक वजन वाले और 12 प्रतिशत मोटे पेट वाले थे। विरोधाभासी रूप से गरीबों में भी इसका प्रभाव नजर आया है। दरअसल, आर्थिक विसंगतियों के बावजूद लोग कैलोरी सघन व पोषक तत्वों की कमी वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के विकल्प को चुनते हैं। ऐसे में इन खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले अधिक वजन वाले तो हो जाते हैं मगर रहते कुपोषित ही हैं। दरअसल, तेजी से बढ़ते शहरीकरण और निष्क्रिय जीवनशैली ने भी मोटापे की समस्या को बढ़ाया है। यह संकट उन कम आय वाले समूहों में भी है, जहां स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा की कमी इससे जुड़े जोखिमों को बढ़ा देती है।
निर्विवाद रूप से पोषण संबंधी खामियों और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के कारण ही मोटापे की समस्या बढ़ रही है। खासकर शहरी क्षेत्रों में जंक फूड का बढ़ता प्रचलन इस समस्या को बढ़ा रहा है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी सामर्थ्य के अभाव में असंतुलित आहार जैसी चुनौतियों का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया में बाजार के भ्रामक प्रचार के चलते युवा स्वास्थ्य की बजाय सौंदर्यशास्त्र को प्राथमिकता देते हैं। जिसके लिये वे असुरक्षित आहार या कृत्रिम सप्लीमेंट का सहारा ले रहे हैं। राष्ट्रीय मधुमेह, मोटापा और कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन के शोध के निष्कर्ष मोटापे के लिये दो चरणीय वर्गीकरण प्रणाली पेश करते हैं। पहला उपचार पूर्व प्रयास और दूसरा उपचार। इस साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण का उद्देश्य बढ़ते स्वास्थ्य जोखिमों को संबोधित करना, संतुलित जीवन शैली को अपनाना और मोटापे की महामारी पर अंकुश लगाना है। निश्चय ही तेजी से बढ़ते गैर संक्रामक रोगों पर अंकुश लगाने के लिये मोटापा दूर करने के गंभीर प्रयासों की जरूरत है। बदलते सामाजिक व आर्थिक परिदृश्य में लोगों का स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिये नीति-नियंताओं, स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले पेशेवरों और जागरूक नागरिकों के सहयोगात्मक प्रयासों की जरूरत है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम संतुलित भोजन के साथ अपनी शारीरिक सक्रियता को बढाएं। सप्ताह में हमारे व्यायाम, खेल, तैराकी, जिम व योग-प्राणायाम के न्यूनतम घंटे निर्धारित होने चाहिए। निर्विवाद रूप से हमारे खानपान का संयम, गतिशील जीवन और प्रकृति के अनुरूप खानपान चर्बी घटाने में सहायक हो सकता है। यदि हम ऐसा करते हैं तो हमारे शरीर में अनावश्यक चर्बी जमा नहीं होगी और हम मधुमेह, उच्च रक्तचाप व हृदय रोग जैसी चुनौतियों का सामना करने से बच सकते हैं। दरअसल, सिर्फ मोटापा ही समस्या नहीं है बल्कि यह रोगों का पूरा कुनबा साथ लेकर चलता है। जिसे हम अनुशासित जीवन शैली और खानपान में सावधानी से ही टाल सकते हैं। अंतत: हम अनुशासित जीवनचर्या व संतुलित आहार से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत कर सकते हैं।