जीवन के लिए नयी संभावनाओं की तलाश
प्रमोद भार्गव
आगामी चौदह जुलाई को दोपहर 2ः 35 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चंद्रमा पर चंद्रयान-3 अंतरिक्ष की ओर भेजेगा। यदि चांद पर यह सफलतापूर्वक उतर जाता है, तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत इस अभियान में सफलता पाने वाला चौथा देश बन जाएगा। 14 जुलाई को उड़ान भरने के बाद चंद्रयान-3, तीन लाख 75 हजार किलोमीटर की यात्रा करके 23 या 24 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र की सतह पर उतरेगा। इसरो ने चांद पर भेजे जाने वाले यान को राॅकेट एलवीएम-3 (लाॅन्च व्हीकल मार्क-3) से जोड़ दिया है। रॉकेट श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपनी यात्रा शुरू करेगा। कोशिश है कि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। यान में कई उपकरण चांद की सतह का अध्ययन करेंगे। सभी उपकरणों का परीक्षण सफलतापूर्वक इसी साल मार्च में कर लिया गया है।
दरअसल, सफल लैंडिंग के लिए सूर्य की स्थिति के आधार पर तिथि तय की जाती है। इसे उतारते समय चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश होना आवश्यक है। 23 और 24 तारीखों में सूर्य का प्रकाश चांद पर रहेगा। यहां प्रत्येक 14 से 15 दिन अंधेरा रहता है। इसी को चांद का एक दिन और एक रात माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि 13 स्वदेशी वैज्ञानिक उपकरणों एवं उपग्रह समेत यान का कुल वजन 4400 क्विंटल के करीब है। स्वदेशी एलवी मार्क तीन रॉकेट इसे अंतरिक्ष में पहुंचाएगा। इसके तीन भाग हैं। लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर। रोवर में ‘प्रज्ञान’ बेहद महत्वपूर्ण है। यही प्रज्ञान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के बाद अपने काम में जुट जाएगा। यहां की सतह में पानी और खनिजों की खोज करेगा। चंद्रमा पर हीलियम की खोज करके उससे पृथ्वी पर फ्यूजन पद्धति से ऊर्जा की समस्या का हल करने की परिकल्पना वैज्ञानिकों के दिमाग में है। दरअसल फिलहाल चंद्रमा पर गहरा अंधेरा व सन्नाटा पसरा है। अतएव कृत्रिम तरीकों से बिजली पैदा की जाएगी। यहां जीवनदायी तत्व हवा, पानी और अग्नि नहीं हैं। ये तत्व नहीं हैं इसलिए, जीवन भी नहीं है।
याद रहे भारत द्वारा 2008 में भेजे गए चंद्रयान-1 ने ही दुनिया में पहली बार चंद्रमा पर पानी होने की खोज की थी। चंद्रयान-2 की असफलता का विस्तार चंद्रयान-3 है। यह अभियान मानव को चांद पर उतारने जैसा ही चमत्कारिक होगा। इस अभियान की लागत करीब 7,000 करोड़ रुपये आएगी। चांद पर उतरने वाला यान अब तक चंद्रमा के अछूते हिस्से दक्षिणी धुव्र के रहस्यों को खंगालेगा। चंद्रयान-3 इसरो का पहला ऐसा मिशन है, जो किसी दूसरे ग्रह की जमीन पर अपना यान उतारेगा। दक्षिणी धुव्र पर यान को भेजने का उद्देश्य इसलिए अहम है, क्योंकि यह स्थल दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए अब तक रहस्यमय बना हुआ है। यहां की चट्टानें 10 लाख साल से भी ज्यादा पुरानी बताई गई हैं। इतनी प्राचीन चट्टानों के अध्ययन से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को समझने में मदद मिल सकती है। इससे इतर इस पर लक्ष्य साधने का अन्य उद्देश्य चंद्रमा के इस क्षेत्र का अब तक अछूता रहना भी है। दक्षिणी धुव्र पर अब तक कोई भी यान नहीं उतारा गया है। अब तक के अभियानों में ज्यादातर यान चंद्रमा की भूमध्य रेखा के आसपास ही उतरते रहे हैं। चांद पर उतरने की दिलचस्पी इसलिए भी है, क्योंकि यहां एक तो पानी उपलब्ध होने की संभावना जुड़ गई है, दूसरे यहां ऊर्जा उत्सर्जन की संभावनाओं को भी तलाशा जा रहा है।
अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यानों को भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और शंकाओं से भरी होती है। यदि अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या फिर गति का संतुलन थोड़ा-सा ही लड़खड़ा जाए तो कोई भी चंद्र-अभियान या तो चंद्रमा पर जाकर ध्वस्त हो जाता है, या फिर अंतरिक्ष में कहीं भटक जाता है। इसे न तो खोजा जा सकता है और न ही नियंत्रित करके दोबारा लक्ष्य पर लाया जा सकता है। दरअसल, 7 सितंबर, 2019 की रात्रि में 1ः40 बजे भारत ने चंद्रयान-2 भेजा था। लेकिन रात्रि 2ः50 बजे अभियान पर पानी फिर गया।
वर्ष 1960 के दशक में जब अमेरिका ने उपग्रह भेजे थे, तब उसके शुरू के छह प्रक्षेपण के प्रयास असफल रहे थे। अविभाजित सोवियत संघ ने 1959 से 1976 के बीच 29 अभियानों को अंजाम दिया। इनमें से नौ असफल रहे थे। 1959 में रूस ने पहला उपग्रह भेजकर इस प्रतिस्पर्धा को गति दे दी थी। तब से लेकर अब तक 67 चंद्र-अभियान हो चुके हैं, लेकिन चंद्रमा के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है। इस होड़ का ही नतीजा रहा कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जाॅन एफ कैनेडी ने चंद्रमा पर मानव भेजने का संकल्प ले लिया। 20 जुलाई, 1969 को अमेरिका ने यह ऐतिहासिक उपलब्धि वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन को चंद्रमा पर उतारकर प्राप्त भी कर ली। इसी से कदमताल मिलाते हुए रूस ने 3 अप्रैल, 1984 को वैज्ञानिक स्नेकालोव, मालिशेव बाईकानूर और राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यान सोयूज टी-11 से चंद्रमा पर भेजने में सफलता हासिल की। इस कड़ी में चीन 2003 में मानवयुक्त यान चंद्रमा पर उतारने में सफल हो चुका है।