रोगी की उचित देखभाल के चिकित्सीय मानक
उपभोक्ता अधिकार
श्रीगोपाल नारसन
यूं तो रोगी व चिकित्सक का आपसी रिश्ता भक्त और भगवान की तरह होता है। लेकिन जब से चिकित्सा सेवा ने व्यवसाय का रूप लिया है तब से ये रिश्ता भी दरकने लगा है। तभी तो किसी भी चिकित्सा सेवा में लापरवाही या कमी होने पर रोगी अब न्याय के लिए चिकित्सक के विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाने लगा है। सवाल उठता है चिकित्सीय लापरवाही क्या होती है? वास्तव में एक चिकित्सक के अपने रोगी के प्रति कुछ कर्तव्य होते हैं, जिसका पालन उसे रोगी के इलाज के लिए करना चाहिए। इस कर्तव्य में कमी के चलते ही लापरवाही होती है। जिसके लिए पीड़ित रोगी एक उपभोक्ता के रूप में चिकित्सक के विरुद्ध उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराकर न्याय की अपेक्षा करता है।
शिकायतों में तेजी है चेतना की पर्याय
वर्तमान में समाज में रोगियों के अधिकारों के संबंध में जागरूकता बढ़ रही है। जो चिकित्सा व्यवसाय में दायित्व के प्रति लापरवाही से संबंधित शिकायतों में आई तेजी से स्पष्ट है, जिसमें चिकित्सा लापरवाही, विकृत सहमति और डॉक्टर-रोगी संबंधों से उत्पन्न गोपनीयता के उल्लंघन के कारण होने वाली पीड़ा के निवारण का दावा किया गया है। न्यायिक प्रक्रिया के तहत, चाहे वह उपभोक्ता आयोग हो या नियमित अदालत,सभी अदालतें चिकित्सीय लापरवाही आदि मामलों से संबंधित कानूनी सिद्धांतों पर विचार करती हैं।
दोतरफा दृष्टिकोण की जरूरत
न्यायिक प्रक्रियाएं अपनाने के संदर्भ में, दोतरफा दृष्टिकोण की आवश्यकता है। एक ओर, वांछनीय दिशा सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संदर्भ के आलोक में न्यूनतम उचित मानकों की पहचान की ओर इशारा करती है जो निर्णायकों को उद्देश्यपूर्ण आधार पर व्यावसायिक दायित्व के मुद्दों पर निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है। जिससे रोगी के अधिकारों की सुरक्षा हो सकेगी। चिकित्सीय लापरवाही में अदालत का कार्य किसी भी उपभोक्ता शिकायत पर प्रतिवादी या साक्षी को बुलाना और उपस्थित होने के लिए बाध्य करना और गुण-दोष के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचते हुए न्याय प्रदान करना आदि होता है। चिकित्सीय लापरवाही उचित देखभाल करने में विफलता कही जा सकती है जिसमें चिकित्सक का रोगी के प्रति देखभाल का कर्तव्य पूरा हुआ या नहीं, इस कर्तव्य का किस स्तर पर, कितना और किन परिस्थितियों में उल्लंघन किया है। इस उल्लंघन के कारण रोगी को कितनी पीड़ा या क्षति हुई है- यह सब देखना भी अदालत के लिए आवश्यक है।
न्यायिक दृष्टि से डॉक्टर के दायित्व
एक चिकित्सक का अपने रोगी की चिकित्सीय देखभाल करने का कर्तव्य होता है। यह कर्तव्य या तो संविदात्मक कर्तव्य हो सकता है अथवा अपकृत्य कानून से उत्पन्न कर्तव्य। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, ‘प्रत्येक चिकित्सक का, सरकारी अस्पताल या अन्य जगहों पर, जीवन की रक्षा के लिए उचित विशेषज्ञता के साथ अपनी सेवाएं प्रदान करना एक व्यावसायिक दायित्व है’, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने परमानंद कटारिया बनाम भारत संघ केस में संदर्भित किया है। एक अन्य केस लक्ष्मण बनाम ट्रिमबैक में सुप्रीम कोर्ट कहती है, डॉक्टर का मरीज के प्रति कर्तव्य है कि ‘वह अपने काम में उचित स्तर का कौशल और ज्ञान लाए और उचित स्तर की देखभाल’ करे। वास्तव में चिकित्सक को परिस्थिति के आलोक में उच्चतम स्तर का पालन करने या देखभाल और सक्षमता के निम्नतम स्तर तक जाने की आवश्यकता नहीं है। इसीलिए, चिकित्सक को यह सुनिश्चित नहीं करना पड़ता कि उसके पास आने वाला हर रोगी ठीक हो जाएगा। उसे केवल यह सुनिश्चित करना है कि उसने उचित स्तर की देखभाल की है और वह शैक्षणिक व चिकित्सीय स्तर पर उपचार करने में सक्षम है।
देखभाल का स्तर परिवर्तनशील
देखभाल का स्तर परिवर्तनशील है और परिस्थिति पर निर्भर करता है। यद्यपि एक सामान्य विशेषज्ञ और एक विशेषज्ञ से देखभाल के समान मानक की अपेक्षा की जाती है, लेकिन देखभाल की स्थिति अलग-अलग होगी। परन्तु दोनों से ही उचित देखभाल की अपेक्षा की जाती है, लेकिन एक विशेषज्ञ के संबंध में उचित देखभाल की मात्रा एक सामान्य विशेषज्ञ के लिए मानक देखभाल की मात्रा से अधिक ही होती है।
चिकित्सीय ज्ञान के मानक
अदालतों द्वारा यह माना गया है कि समय के साथ तर्कसंगतता में क्या परिवर्तन आता है। मानक, जैसा कि स्पष्ट रूप से आवश्यक है कि डॉक्टर के पास उचित ज्ञान हो। यानी चिकित्सक को उसके अपेक्षित मानक को पूरा करने के लिए अपने ज्ञान को लगातार अपडेट करना पड़ता है।
सहमति लेने का कर्तव्य
चिकित्सकों पर सर्जिकल ऑपरेशन और उपचार कार्य करने से पहले रोगी की सहमति लेने का कर्तव्य लगाया जाता है। कोई भी चिकित्सा कार्य जिसमें रोगी के साथ संपर्क की आवश्यकता होती है, उसमें रोगी की सहमति जरूर होनी चाहिए। न्यायिक घोषणाओं के अनुसार, यह सहमति लेने का यह कर्तव्य ऐसी सभी जानकारी का खुलासा करना है जो रोगी के लिए निर्णय लेने के लिए प्रासंगिक या आवश्यक होगी। यह भी कि सहमति प्राप्त करते समय एक चिकित्सक का देखभाल का मानक स्पष्ट होना चाहिए।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।