जलवायु आपातकाल
वैश्विक जलवायु में आसन्न खतरों की भयावहता इंगित करती इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट आंखें खोलने वाली है, जो बताती है कि यदि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को रोकने के लिये गंभीर पहल अभी नहीं की गई तो मानवता को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। चिंता जतायी जा रही है कि भारत में चालीस करोड़ ऐसे लोगों की जीविका और जीवन संकट में पड़ सकता है, जिनका रोजगार पर्यावरण से जुड़े संसाधनों पर निर्भर करता है। जलवायु परिवर्तन से धरती पर आसन्न खतरों को इंगित करती संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट उन आशंकाओं पर मोहर लगाती है जो आने वाले दशकों को लेकर चिंतित करती थी। निस्संदेह इस संकट के मूल में मानवीय हस्तक्षेप की बड़ी भूमिका है। दरअसल, यह संकट सिर्फ पर्यावरण का मसला ही नहीं है, यह करोड़ों लोगों के रोजगार से भी जुड़ा है, जिसके चलते जलवायु परिवर्तन प्रभावों पर नियंत्रण के लिये अलग मंत्रालय बनाने व सख्त नीतियों को लागू करने की जरूरत है। दरअसल, भारतीय भूभाग का आधा हिस्सा शुष्क जलवायु में आने के कारण गर्म हवाओं की जद में आ सकता है। रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि का जो आकलन पांचवें दशक के बाद किया गया था, उसका खतरा 2030 तक सामने आने की स्थिति बन गई है। जिसके 1.5 डिग्री से अधिक होने की आशंका है। निस्संदेह, तापमान वृद्धि के मूल में कार्बन डाइऑक्साइड व मीथेन जैसी गैसों की बड़ी भूमिका है, जो जीवाश्म ईंधनों के जलाये जाने से उत्पन्न होती है। इस मायने में तापमान वृद्धि में प्राकृतिक कारणों की भूमिका कम ही है। ऐसे में वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के अंतर्गत औद्योगिक काल के पूर्व की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री तक तापमान वृद्धि नियंत्रित करने का लक्ष्य पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। रिपोर्ट पूर्व में निर्धारित लक्ष्य के विपरीत दुनिया का तापमान 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस का अनुमान पार करने का संकेत देती है।
दरअसल, दुनिया के 234 पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक तापमान बढ़ने से जहां दुनिया में ग्लेशियर पिघलेंगे, वहीं समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा। सदियों से जमी बर्फ का क्षेत्र संकुचित होगा। इसके साथ ही भयावह लू, बाढ़, सूखा व चक्रवर्ती तूफानों की आवृत्ति में इजाफा होगा। तूफान ज्यादा घातक व तेज बारिश करने वाले होंगे। तीन हजार पेज की रिपोर्ट बताती है कि वातावरण में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों को कम करना तथा इसके घातक प्रभावों पर नियंत्रण भी आसान नहीं होगा। आईपीसीसी के स्वतंत्र वैज्ञानिक चेता रहे हैं कि मौसम के मिजाज में जो तल्खी यूरोप व अमेरिका आदि के देशों में नजर आ रही है, वह दुनिया में बढ़ते तापमान का ही नतीजा है। इससे जीवन के साथ ही जीविका पर भी बड़ा संकट पैदा होगा। भारत में साढ़े सात हजार किलोमीटर समुद्र तट के किनारे रहने वाली आबादी के सामने मछली पालन व पर्यटन जैसे रोजगारों पर खतरे के बादल मंडराएंगे। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन संकट का मुकाबला सिर्फ पर्यावरण व वन मंत्रालय के जरिये ही नहीं किया जा सकता, इसके लिये अलग मंत्रालय की स्थापना करके संकट से निपटने के लिये सख्त कदम उठाये जाने चाहिए। साथ ही दुनिया में उपलब्ध आधुनिक तकनीकों का हस्तांतरण और वित्तीय संसाधनों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। वैश्विक सौर सहयोग की तर्ज पर ही अंतर्राष्ट्रीय सहयोग लिया जाना चाहिए। तभी हम जलवायु परिवर्तन के रौद्र को किसी हद तक कम कर पाने में सफल हो पायेंगे। अन्यथा देश के मैदानी क्षेत्रों में आग बरसाती गर्मी का सामना लोगों को करना पड़ सकता है। साथ ही बारिश के औसत के साथ ही इसकी तीव्रता में भी वृद्धि होगी, जो बाढ़ की वजह बनेगी। यह बारिश तटीय इलाकों में अधिक देखी जायेगी। रिपोर्ट में प्रदूषण को भी तापमान वृद्धि के कारक के रूप में देखा गया है। आशंका है कि सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में एक मीटर की वृद्धि से देश की प्रमुख बंदरगाहों पर बड़ी तबाही की आशंका पैदा हो जायेगी।