सामाजिक सरोकारों से जोड़ता बंधन
मोनिका शर्मा
राखी के पर्व का संबंध रक्षा करने के वचन से जुड़ा है। इसीलिए जो भी रक्षा करने वाला है, उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए भी रक्षासूत्र बांधने की रिवायत है। यही वजह है कि इस रेशमी धागे से कई सामाजिक सरोकार भी जुड़े हैं, जो सभी के मन में सद्भावना एवं कर्तव्य का भाव पोषित करते हैं। इसीलिए भाई-बहन के पावन रिश्ते को मजबूती देने वाला यह पर्व जीवन ही नहीं, समाज से जुड़े सरोकारों की भी याद दिलाने वाला माना जाता है। इस रूप में यह बंधन आपसी समरसता का प्रतीक है। हो भी क्यों नहीं? स्नेह के धागों में गुंथे सभी की खुशहाली चाहने के भाव एक-दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना जो करते हैं। ये चेतना के धागे कभी प्रकृति के संरक्षण की याद दिलाते हैं, तो कभी इन स्नेहमयी सूत्रों में सरहद पर डटे सैनिक भाइयों के आयुष्य की कामना समाई रहती है।
प्रकृति की रक्षा का आह्वान
राखी प्रकृति की रक्षा करने का आह्वान करने वाला त्योहार भी है। हमारे देश के कई हिस्सों में रक्षाबंधन के दिन पेड़ों को भी राखी बांधी जाती है। राखी के दिन एक स्नेह की डोर वृक्ष को बांधने का अर्थ है उस वृक्ष की रक्षा की जिम्मेदारी लेना। वैसे भी हमारे देश में तो वृक्षों को देवता मानकर पूजन करने का भी रिवाज है। प्रकृति हमारी जरूरतों को निःस्वार्थ भाव से पूरा करती है। इसके संरक्षण के लिए हमें खुद को समर्पित करना ही चाहिए। पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधना इस धरा को बचाने के लिए संकल्प लेने जैसा है। कितना सुंदर भाव है कि प्रकृति को सहेजने के लिए उसे रक्षा सूत्र में बांध लिया जाये और स्वयं उसके प्रति जिम्मेदारी के बंधन में बंध जायें।
सैनिक भाइयों का स्नेहिल आभार
सरहद पर देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए भी हर साल देशभर से राखियां भेजी जाती हैं। यह कितना सुखद है कि धर्म, जाति और वर्ग से परे भारतीय बहनें अपने भाइयों के लिए पावन प्रेम में गुंथे ये धागे भेजती हैं। ये राखियां उन भाइयों का स्नेहिल आभार जताने के लिए भेजी जाती हैं जो अपने घर-परिवार से दूर सीमा पर डटे रहते हैं। उनके कर्तव्यबोध के भाव को देशभर से बहनें सलामती की दुआ के साथ सलाम करती हैं। बंदूकों के साये में भाई-बहन के प्रेम भरे अटूट रिश्ते का बंधन मानवीय सोच की संवेदनशीलता की मिसाल है। विषम परिस्थितियों में अपनों से दूर हर त्योहार मनाने वाले सेना के जवानों को ये स्नेह के धागे नयी ऊर्जा देते हैं। इस पावन पर्व पर वे जान पाते हैं कि उनकी भी चिंता की जाती है। राष्ट्र रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवान रक्षाबंधन के पवित्र पर्व पर अपनी बहन के घर राखी बंधवाने भले ही न जा सकें, देश के हर कोने से उनके लिए कुशलता की कामना के भाव सहेजे राखियां भेजी जाती हैं। सरहद पर भेजे जाने वाले ये रक्षा सूत्र सैनिक भाइयों के लिए आभार, सम्मान और स्नेह की सौगात के समान हैं।
सामाजिक जुड़ाव का भाव
कहीं लोग अपनी मुंहबोली बहनों से राखी बंधवाते हैं तो कहीं सृष्टि के रचयिता ईश्वर को भी रक्षा सूत्र बांधे जाने का रिवाज है। यही वजह है कि राखी का त्योहार सामाजिक जुड़ाव का सूत्र है। यह श्रद्धा व विश्वास के धागों से समाज को एक डोर में बांधता है। यह भाव आपसी तालमेल को बढ़ावा देता है। क्योंकि यह केवल एक औपचारिकता भर नहीं है। राखी बांधने और बंधवाने वाले व्यक्ति एक-दूजे के लिए कुछ दायित्व स्वीकारते हैं। तभी तो हमारे यहां गुरु शिष्य में भी रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा है।
पहले के समय में जब शिक्षा पूरी करने के बाद शिष्य गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें रक्षा सूत्र बांधता था। शिष्य अर्जित ज्ञान को भविष्य में सार्थक और गरिमामयी ढंग से काम में ले, यह कामना लिए आचार्य भी अपने शिष्य को ये उम्मीदों के धागे बांधते थे। इस प्रकार दोनों एक-दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए परस्पर एक-दूसरे को इन धागों के जरिये अपने मन के बंधन से बांधते थे। आज भी कई घरों में पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बांधते हैं। यह समाज के लिए सकारात्मक भाव है क्योंकि राखी के धागे, बांधने और बंधवाने वाले को कर्तव्य व निष्ठा के स्नेह से जोड़ देते हैं। इसीलिए अगर गहराई से देखा जाये तो रक्षाबंधन का पर्व सही अर्थों में केवल भाई-बहन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के पारस्परिक संबंधों को दृढ़ता देने की पावन भावना लिए है। यह संस्कृति को सहेजते हुए समाज में एक भयमुक्त वातावरण बनाने वाला त्योहार है।