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सतत प्रयास से मंजिल पाने का लें संकल्प

04:05 AM Apr 03, 2025 IST

अकसर युवा अपना लक्ष्य तय करके उसे हासिल करने की ओर बड़े उत्साह के साथ कदम बढ़ाते हैं किंतु सही मार्गदर्शन के अभाव, विपरीत हालात और कुछ आरंभिक असफलताओं के चलते वे अपनी राह में भटककर मंजिल तक नहीं जा पाते हैं। ऐसे भटकाव पर संकल्प-शक्ति के साथ ही सतत प्रयासों से विजय प्राप्त की जा सकती है।

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योगेन्द्र माथुर
युवा मन नई उमंगों, नये उत्साह, नई कल्पनाओं और नये विचारों से परिपूर्ण होता है। यह अवस्था उसके सपने बुनने और उन्हें साकार करने के लिए मार्ग तय करने की होती है। यही वह समय होता है जिसमें उसके भविष्य का निर्धारण होता है। जाहिर है कि ऐसे समय में किसी भी प्रकार की चूक उसके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देती है।
बाधाओं के चलते लक्ष्य से भटकना
प्रायः यह देखने में आता है कि युवा अपना लक्ष्य तय करके उस तक पहुंचने की दिशा में बड़े जोश के साथ कदम बढ़ाते जरूर हैं किंतु कुछ उचित मार्गदर्शन के अभाव में, कुछ विपरीत परिस्थितियों में और कुछ आरंभिक असफलताओं के चलते अपने लक्ष्य-पथ से भटक कर उन अंधेरी गलियों में खो जाते हैं जहां उन्हें अपना सम्पूर्ण जीवन अंधकारमय नजर आने लगता है।
लक्ष्य का चयन, संकल्प व सतत प्रयास
ऐसे युवाओं को समझना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लक्ष्य का सही चयन पहली आवश्यकता होती है। लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति दृढ़ संकल्प दूसरी आवश्यकता होती है और लगन के साथ सतत प्रयास तीसरी व अंतिम आवश्यकता होती है। जरूरत केवल अपनी प्रतिभा और अपनी सृजनात्मक क्षमता का सही दिशा में सही तरीके से उपयोग करने की होती है।
मुश्किल राहों से मंजिलें पाने वाले व्यक्तित्व
विश्व में एक नहीं ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि अत्यंत विपन्न अवस्था व विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने लक्ष्य के प्रति बुलंद हौसले रखने वाले और सतत संघर्ष करने वाले व्यक्तियों ने नये इतिहास रचे हैं। हमारे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन और स्वामी विवेकानंद जैसी महान विभूतियों ने अपनी राह में आई हर तरह की कठिनाई का सामना कर उसे परास्त किया व इतिहास के नये अध्यायों का सूत्रपात किया है।
सच्ची लगन और मेहनत से हासिल लक्ष्य
अपनी आरंभिक असफलताओं से घबराकर अपनी मंजिल को दुरूह मान लेने वाले युवाओं को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि दुनिया मे ऐसा कोई काम नहीं है जो सच्ची लगन और मेहनत से किया जाए तो पूर्ण नहीं हो। किसी शायर ने कहा भी है-‘कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर जरा तबीयत से तो उछालो यारो।’ स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि ‘लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो, हर समय उसी का चिंतन करो, उसी का स्वप्न देखो और उसी के सहारे जीवित रहो।’
हरेक असफलता के बाद नयी कोशिश
संघर्ष की राह में हारे-थके हमारे मन को लेखक सर्वेश्वर की ये पंक्तियां उत्साह भरने में सक्षम हैं-‘मुझे उन राहों पर एक बार विजय गीत गाते हुए जाना है, जहां मैं कई बार हार चुका हूं।’ अतः विपरीत परिस्थितियों और आरंभिक असफलताओं से घबराकर अपना सारा जोश खो देने वाले युवाओं को चाहिए कि नेपोलियन बोनापार्ट का यह सूत्र वाक्य कि ‘दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है’ को याद रखकर अपनी हर एक असफलता के बाद दोगुने उत्साह व साहस से अपनी मंजिल पाने की कोशिश करें। कहा जा सकता है कि अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करते रहना हमारा धर्म और कर्म होना चाहिए। सतत प्रयास ही फलता का सीधा, सरल व सच्चा मार्ग है।

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