पाठकों के पत्र
मानदेय पर सवाल
छब्बीस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में 'माननीयों का मानदेय' संपादकीय एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाता है। वर्तमान आर्थिक स्थिति में तर्कसंगत फैसलों की आवश्यकता है ताकि अतिरिक्त वित्तीय बोझ से बचा जा सके। बेरोजगारी, महंगाई और सरकारी विभागों में रिक्तियां बढ़ रही हैं। सांसदों और विधायकों के पर्याप्त वेतन में 24 प्रतिशत की वृद्धि बिना किसी मांग या हड़ताल के समझ से परे है। सरकार को पहले जनता की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि जनप्रतिनिधियों के वेतन की समस्या इतनी गंभीर और जरूरी नहीं है। सरकारी सुविधाओं के बावजूद उन्हें कौन-सी महंगाई का सामना करना पड़ रहा है?
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
विश्वास प्रभावित
पच्चीस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘नगदी और न्याय’ दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले जले हुए नोटों के मामले पर प्रकाश डालता है। यह घटना लुटियंस क्षेत्र में सामने आई, जिससे न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल उठे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए न्यायाधीश से सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए और तीन सदस्यीय समिति जांच के लिए नियुक्त की। इस घटना से न्याय व्यवस्था में विश्वास प्रभावित हो सकता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
नशे का नश्तर
अठाईस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर ‘नशे की गिरफ्त में जवानी...’ पढ़कर चिंता बढ़ी। नशे की चपेट में आए युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। पड़ोसी राज्य पंजाब की तरह पंचकूला में युवा नशे के आदी बन रहे हैं, जबकि नूंह और भिवानी में भी नशे के मामले कम नहीं हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया है। हरियाणा सरकार को पंजाब और दिल्ली से आने वाले प्रत्येक वाहन की तलाशी लेकर स्मगलिंग पर रोक लगानी चाहिए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। भटके युवाओं को नशा मुक्ति केंद्र भेजने चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल