पाठकों की राय
बिहार के संकट
बिहार में राजनीति और राजनेताओं के व्यवहार हमेशा चर्चा का विषय बनते रहते हैं। हाल ही में, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रगान के दौरान मुख्य सचिव के साथ हंसते-बोलते देखा गया, जिस पर राजद ने आलोचना की और इसे राष्ट्रगान का अपमान बताया। इसके अलावा, राबड़ी देवी ने नीतीश कुमार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए इस्तीफे की मांग की है। इस समय बिहार में कानून व्यवस्था बिगड़ी हुई है, अपराधी बेलगाम हैं और पुलिस पर हमले हो रहे हैं। मुख्यमंत्री का स्वास्थ्य भी एक रहस्य बना हुआ है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
जीवनदायी वृक्ष
प्रकृति द्वारा प्रदत्त सभी वस्तुएं या तो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दी गई है। मानव के साथ प्रकृति का सहचर सम्बन्ध है। जहां पर भी हम प्रकृति के नियमों को तोड़ने की चेष्टा करते है प्रकृति हमें दण्डित करती है। प्रकृति के साथ हम सबसे बड़ा खिलवाड़ वृक्षों की कटायी द्वारा करते हैं। सभी प्रकार के साहित्य में वृक्षों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है। उन्हे पूजनीय व वंदनीय उनकी उपयोगिता के कारण कहा जाता है। पीपल, नीम, गुग्गल जैसे वृक्ष न केवल वातावरण को शुद्ध रखते हैं अपितु कृमियों का नाश करते हैं। ऐसे वृक्षों का रोपण और संरक्षण अत्यधिक करना चाहिए।
प्रो. अनूप कुमार गक्खड़, हरिद्वार
जन-सहयोग जरूरी
बाईस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में दीपक कुमार शर्मा का लेख जल संरक्षण में जन-भागीदारी के महत्व को उजागर करता है। औद्योगिकरण, कृषि और बढ़ती जनसंख्या के कारण जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव है। भूजल स्तर में गिरावट, जल प्रदूषण और अनियमित मानसून संकट को और गहरा कर रहे हैं। जल जीवन मिशन जैसी पहल जल गुणवत्ता की निगरानी और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा दे रही है। हालांकि, जल संरक्षण के लिए सरकार की योजनाओं के साथ-साथ जन-सहयोग भी अनिवार्य है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी