टैरिफ की चुनौती
पूरी दुनिया को टैरिफ युद्ध की चेतावनी देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ने अब इसे हकीकत बना दिया है। तमाम विकासशील व विकसित देशों के साथ भारत भी इसकी जद में आया है। मौके की नजाकत को समझते हुए भारत ने हालात से समझौता करने का निर्णय किया है। कमोबेश, इसके तहत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा टैरिफ के मुकाबले लगाए गए टैरिफ को स्वीकार कर लिया गया है। वहीं दूसरी ओर यूरोपीय संघ, चीन और कनाडा ने अपने-अपने देशों के आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिये जवाबी कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। भारत के लिये अच्छी बात यह है कि हमारे मुख्य प्रतिस्पर्धी-चीन, वियतनाम,बांग्लादेश और थाईलैंड पर हम से कहीं अधिक शुल्क लगाया गया है। नई दिल्ली को यह भी उम्मीद है कि वाशिंगटन के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर काम चल रहा है, जिसके जरिये घरेलू उद्योग को टैरिफ वृद्धि के दुष्प्रभावों से निपटने में मदद मिल सकती है। वैसे देखा जाए तो भारत के लिये प्रतिकूल परिस्थितियों में भी एक अवसर मौजूद हैं। इस दौरान भारत को व्यापार करने में आसानी बढ़ाने तथा लाभांश प्राप्त करने के लिये अपने बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। इससे आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को भी बल मिलेगा। ध्यान रहे कि ऐसा ही अवसर भारत के सामने तब भी आया था जब कोविड-19 महामारी के चलते चीन के उत्पादन की रफ्तार धीमी हो गई थी। चीन ने ऐसा कदम लंबे समय से चली आ रही जीरो टॉलरेंस की कोविड नीति के चलते उठाया था। जिसके चलते अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को विकल्प तलाशने के लिये प्रेरित किया था। लेकिन भारत इसके बावजूद हालात का ज्यादा लाभ नहीं उठा पाया था। विडंबना ये रही कि वियतनाम और थाईलैंड वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में उत्पन्न व्यवधानों का अधिकतम लाभ उठाने में भारत से आगे निकल गए। अतीत से सबक लेकर भारत को नई स्थितियों का लाभ उठाने के लिये बेहतर ढंग से तैयार रहना चाहिए।
वैसे इन हालात में बहुत कुछ भारत की तुलना में ट्रंप के टैरिफ से अधिक प्रभावित देशों की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा। इन स्थितियों में एक चिंताजनक संभावना यह भी है कि चीन और वियतनाम जैसे देश पहले से ही अमेरिका के लिये निर्धारित अपने निर्यात को भारत में भेजने की कोशिश कर सकते हैं। जिसमें कम लागत वाले सामानों के जरिये भारतीय बाजारों को प्रभावित करने की कोशिश की जा सकती है। भारतीय बाजार तो पहले ही चीन के सस्ते उत्पादों से पटे पड़े हैं। जिससे दोनों देशों में व्यापार असंतुलन की स्थिति बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023-24 के वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच व्यापार में हमारा घाटा 85 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचा है। वैसे चिंता की बात यह भी है कि भारत ने बीजिंग के साथ व्यापार घाटे को कम करने की दिशा में कुछ खास कदम नहीं उठाये हैं। हालांकि, भारत ने कुछ चीनी उत्पादों पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी जरूर लगाई है। इसका मकसद स्वदेशी उत्पादों को पड़ोसी देश के सस्ते आयात से संरक्षण देना ही था। ऐसे में ट्रंप के टैरिफ से होने वाले नुकसान को कम करने की योजना को लागू करते वक्त इस बात को सुनिश्चित करने के प्रयासों के साथ चलना होगा कि कहीं चीन भारत को प्रतिस्पर्धा के बाजार में शिकस्त न दे दे। आज जब भारत दुनिया का सबसे अधिक युवाओं वाला देश है तो हमें अपनी श्रमशक्ति के बेहतर उपयोग की दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम कौशल विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करें। कुशल कामगारों से हम वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हो सकते हैं। साथ ही विदेश निवेश बढ़ाने के साथ ही घरेलू निवेश को गति देने की दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। अमेरिका समेत अन्य देशों में जो मंदी की आहट महसूस की जा रही है, उससे हम तभी अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षा दे सकेंगे। निस्संदेह, आने वाले दिनों में यह टैरिफ युद्ध दुनिया में और अधिक विस्तार ले सकता है। भारत को अपने निर्यात को अन्य देशों में बढ़ाने की दिशा में भी सोचना होगा।