आपकी राय
बुजुर्गों की गरिमा
अट्ठाईस जून के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का लेख ‘सरकारी जवाबदेही व समाज की संवेदनशीलता जरूरी’ बुजुर्गों द्वारा सही जाने वाली तकलीफों तथा उत्पीड़न का विश्लेषण करने वाला था। बेशक बुजुर्गों के उत्पीड़न तथा अवहेलना के खिलाफ कानूनी प्रावधान है लेकिन बुजुर्ग लोग घर की लाज बचाने के लिए न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाते। बुजुर्गों की देखभाल तथा सुरक्षा के लिए परिवार, समाज तथा सरकार की जवाबदेही बनती है। शारीरिक तौर पर ठीक बुजुर्गों को सरकार काम पर लगा कर उन्हें अपना मान-सम्मान बचाने का अवसर दे सकती है।
शामलाल कौशल, रोहतक
हिंसा चिंताजनक
पूर्वी राज्य मणिपुर के हालात पर देश के शीर्ष नेतृत्व को चिंता होनी चाहिए। एक माह से भी अधिक लंबे समय से चल रही जातीय हिंसा अब सांप्रदायिक हिंसा में तबदील हो चुकी है। वहां तैनात सुरक्षा बल एक संप्रदाय विशेष को संरक्षण दे रहे हैं जिससे केंद्र सरकार के प्रति वहां के अल्पसंख्यकों में आक्रोश नजर आ रहा है। मणिपुर अतीत में भी हिंसाग्रस्त राज्य रहा है। म्यांमार के सीमावर्ती इस आदिवासी बहुल राज्य में विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। इस ज्वलंत मुद्दे को शांत करने के लिए प्रधानमंत्री को स्वयं हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करना चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
घर की इज्जत
पच्चीस जून के दैनिक ट्रिब्यून के अध्ययन कक्ष में डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की ‘घर की इज्जत’ कहानी प्रेरणादायक, शिक्षाप्रद रही। कथानायिका रमा अच्छे संस्कारों में पली-बड़ी आदर्श व्यक्तित्व की नारी होने की मिसाल है। ननद शारदा को अपनी समझबूझ से सन्मार्ग पर लाकर घर की इज्जत को समाज में धूमिल होने से बचाती है। विदुषी बहू होने का फर्ज अदायगी अनुकरणीय है। रमा की मधुर वाकपटुता के कथा-कथ्य से ‘घर की इज्जत’ शीर्षक उचित व प्रभावशाली रहा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल