पाठकों के पत्र
नकली नोटों का संकट
चौदह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘नकली नोट की चोट' ने एक नई चिंता को जन्म दिया है। नकली पांच सौ के नोटों में 37 प्रतिशत की वृद्धि से यह स्पष्ट है कि नकली करेंसी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। जबकि सरकार डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दे रही है, भ्रष्टाचार, कर चोरी और डिजिटल शिक्षा की कमी बाधक बन रही हैं। रियल एस्टेट में काले धन का उपयोग अभी भी जारी है। आर्थिक अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई और नकदी आधारित अर्थव्यवस्था को हतोत्साहित करना जरूरी है। साथ ही जागरूकता, निगरानी, पारदर्शिता, तकनीकी उन्नति, सख्त कानून, बैंकिंग सुधार, नीति क्रियान्वयन, एजेंसियों का समन्वय, साइबर सुरक्षा और सूचना प्रसार भी जरूरी हैं।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
चिंता का विषय
हिमाचल प्रदेश सरकार का हालिया फैसला, जिसमें केवल उन्हीं बच्चों को एमबीबीएस और बीडीएस में प्रवेश मिलेगा जिन्होंने 10वीं, 11वीं या 12वीं कक्षा हिमाचल में पास की हो, राज्य के बाहर काम करने वालों के लिए चिंता का विषय बन गया है। इन लोगों के पास हिमाचल के स्थायी निवासी होने का प्रमाणपत्र है, लेकिन वे दूसरे राज्यों में रहकर नौकरी या कारोबार कर रहे हैं। ऐसे फैसले इन परिवारों के बच्चों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा
भारत में मताधिकार लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन जब इसमें घुसपैठियों की भागीदारी हो, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। बिहार सहित कई राज्यों में विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में पाए गए हैं। इससे चुनाव प्रणाली और राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। चुनाव आयोग को गृह मंत्रालय के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेजों की जांच कर ऐसे लोगों को सूची से हटाना चाहिए ताकि लोकतंत्र सुरक्षित रह सके। इन घुसपैठियों को अपने देश वापस भेज देना चाहिए। इसके लिए सख्त निगरानी, पहचान सत्यापन, तकनीकी सहयोग, कानूनी कार्रवाई और जनजागरूकता जरूरी है।
विभूति बुपक्या, खाचरौद, म.प्र.