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बचपन पर तपिश
छब्बीस नवंबर के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘बचपन पर तपिश’ में जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों के भविष्य पर पड़ने वाले खतरों का उल्लेख किया गया है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से प्राकृतिक संसाधन जैसे जल, शुद्ध वायु और रोजगार भविष्य में मुश्किल स्थितियों में हो जाएंगे। यूनिसेफ के अनुसार, जलवायु संकट से बच्चों की सेहत, शिक्षा, पानी और जरूरी संसाधनों की कमी होगी। यह सवाल उठता है कि हम भविष्य के बच्चों के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं—ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, खाद्य संकट, बेरोजगारी और महंगाई। शासकों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे समय रहते इस संकट को रोकें और बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करें।
शामलाल कौशल, रोहतक
संभल हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण
उत्तर प्रदेश के संभल में 24 नवंबर को जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में छह लोगों की मौत और 22 पुलिसकर्मियों के घायल होने की घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। देश ने आज़ादी के 75 वर्षों में कई दंगों का सामना किया, जिनमें हजारों लोग जान गंवा चुके हैं, लेकिन हम इनसे कोई सबक नहीं ले पाए। भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को बनाए रखते हुए, संवेदनशील मुद्दों पर समन्वय और संवाद के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि दंगे, राजनीति और सामाजिक ताने-बाने का नुकसान रोका जा सके।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली
संसद में गतिरोध
संसद के शीतकालीन अधिवेशन में दोनों सदनों की कार्रवाई का महज़ 5-10 मिनट चलकर स्थगित होना, सरकार की निष्क्रियता और विपक्ष की बातों को अनदेखा करने का प्रतीक है। विपक्ष द्वारा अडाणी रिश्वत मामले और संभल हिंसा पर बहस की मांग की जा रही है। इसके कारण सदन में शोर-शराबा और असमर्थता दिख रही है, जिससे आम जनता के टैक्स का अपव्यय हो रहा है। सरकार को चाहिए कि विपक्ष की मांगों पर गंभीरता से विचार करे, ताकि संसद का कार्य ठीक से चले और महत्वपूर्ण बिलों पर चर्चा हो सके।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल