आपकी राय
जनता-शासन की कड़ी
मीडिया को जनतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। लेकिन धीरे-धीरे इसकी शक्ति का अतिक्रमण किया जा रहा है। इसका ताजा प्रमाण हाल ही में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में देखने को मिला। यहां एक खबर छापने को लेकर एक पत्रकार के साथ न केवल मारपीट की गई बल्कि दुर्व्यवहार भी किया गया। राजनीतिक रसूख का नशा कुछ लोगों पर इस कदर हावी है कि वो पत्रकारों को अपने हाथ की कठपुतली बनाना चाहते हैं। मीडिया जनता और शासन के बीच एक मजबूत कड़ी के रूप में कार्य करता है। यदि वह अपने कर्तव्यों से विमुख होकर शासन सत्ता से सवाल नहीं करेगा, उनके गुण दोषों से लोगों को अवगत नहीं कराएगा तो आने वाले दिनों में लोकतांत्रिक व्यवस्था को गहरा आघात सहना पड़ेगा।
शिवेन्द्र यादव, कुशीनगर, उ.प्र.
मणिपुर के रिसते जख्म
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी नस्लीय हिंसा ने 250 से अधिक जानें लीं और 60,000 से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं। महिलाओं के खिलाफ भयानक अपराध हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बावजूद, संवाद की कमी से स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। म्यांमार से अवैध हथियारों और घुसपैठ ने स्थिति को और जटिल किया है। वहीं जिरीबाग में शव मिलने के बाद हिंसा भड़क उठी, जिसके चलते कर्फ्यू और इंटरनेट बंद करना पड़ा। केंद्र व राज्य सरकार को मिलकर इस स्थिति को नियंत्रित करना चाहिए, और मुख्यमंत्री बदलने में संकोच नहीं करना चाहिए।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
अन्न की कीमत
हमारे देश में विवाह और सामाजिक-धार्मिक समारोहों में अक्सर अन्न की बर्बादी होती है, जबकि इसकी असली कीमत उन श्रमिकों से पूछो, जो कठिन परिस्थितियों में मेहनत करके इसे कमाते हैं। यह किसान, मजदूर, आदि परदेशी लोग हैं, जो अपने परिवार से दूर रहकर इस अन्न को कमाते हैं। रोटी हमेशा हक की कमाई से खानी चाहिए, कभी भी बेईमानी से नहीं। रोटी चाहे रूखी-सूखी हो, लेकिन किसी का हक मारकर इसे नहीं खाना चाहिए। रोटी की सच्ची कीमत को समझना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर