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तार्किक समाधान
जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे शहरों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पढ़ाई, रोजगार और इलाज के लिए हर आदमी शहरों की ओर रुख करता है। साल दर साल आबादी बढ़ने के कारण कस्बे शहर बन गए हैं, नगर महानगर बन गए हैं, लेकिन मूलभूत ढांचा जैसा का तैसा है। पानी से लेकर आवास, परिवहन, शिक्षा, चिकित्सा, कोर्ट-कचहरी और सभी सरकारी कामों के लिए जिला स्तर तक गए बिना काम नहीं होता। आज के समय में देश के सभी शहरों और महानगरों में क्षमता से कहीं ज्यादा लोग रह रहे हैं। इसके कारण वातावरण में गर्मी, पानी की किल्लत सहित कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसका समाधान करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना बनानी होगी, जिसमें संतति नियंत्रण के नियम भी लागू किए जाने चाहिए।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
मुफ्त की रेवड़ियां
चौदह नवंबर के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का लेख ‘देश की तरक्की में बाधक है मुफ्त की रेवड़ियां’ मुफ्त योजनाओं के दुष्परिणामों पर आधारित है। लेख में बताया गया है कि चुनावी लाभ के लिए मुफ्त सुविधाएं देने से सरकार को कर्ज़ लेने या नए टैक्स लगाने पड़ते हैं, जिससे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश कम हो जाता है। इसे राजनीतिक भ्रष्टाचार माना गया है। वेनेजुएला का उदाहरण देते हुए लेख ने सुझाव दिया कि सरकारें रोजगार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दें, ताकि आर्थिक विकास संभव हो सके।
शामलाल कौशल, रोहतक
गुरुपर्व की महिमा
गुरु नानक देव जी ने इंसानियत को सर्वोत्तम धर्म बताया और सभी को एकता और भाईचारे की शिक्षा दी। उनका प्रसिद्ध उद्धरण ‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया’ यह दर्शाता है कि परमात्मा ने सभी को समान बनाया है, और हमें हर धर्म, जाति और मानवता के प्रति प्यार और सद्भावना रखनी चाहिए। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करते हुए, हमें अपना मन साफ रखना चाहिए और किसी के प्रति नफरत नहीं करनी चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर