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अमर्यादित भाषा
चुनावों के समय सियासत में भाषा का संयम अक्सर टूट जाता है, और यह केवल भारत तक सीमित नहीं रहता। हाल ही में अमेरिका में ट्रंप और कमला हैरिस के बीच वैचारिक द्वंद्व ने इस मिथक को तोड़ा है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक अभद्रता किसी भी देश में पनप सकती है। राजनीति का यह दूषित पहलू चुनावी माहौल को गंदा करता है। नेताओं को समझना चाहिए कि चुनाव जनता के दिलों में जगह बनाकर जीते जाते हैं, असंयमित भाषा या चुटकुलेबाजी से नहीं।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
प्रदूषण संकट
छह नवंबर को दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर पुष्परंजन का लेख ‘लाहौर के प्रदूषण का ठीकरा पंजाब के सिर’ पढ़ा। लेखक की पर्यावरण पर चिंता वाजिब है। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयास अभी तक नाकाफी हैं। आतिशबाजी पर प्रतिबंध, पराली के निस्तारण के लिए प्लांट्स और ईंट-भट्ठों की नियमित जांच से प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है। पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री का आरोप शर्मनाक है। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में दमघोंटू वातावरण के लिए सरकार को गंभीर कदम उठाने होंगे।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
फिटनेस और निष्क्रियता
आजकल युवकों द्वारा वाहनों का अत्यधिक उपयोग शारीरिक सक्रियता को कम कर रहा है, जबकि नियमित शारीरिक गतिशीलता जरूरी है। संपादकीय ‘आत्मघाती निष्क्रियता’ में बताया गया कि इसी कारण भारत फिटनेस रैंकिंग में 112वें स्थान पर है। हम मशीनों पर निर्भर होकर स्वास्थ्य समस्याओं को निमंत्रण दे रहे हैं। प्राणायाम, ध्यान, योग और पर्याप्त नींद से हम बीमारियों से बच सकते हैं और स्वास्थ्य बेहतर रख सकते हैं। जिससे चिकित्सा की आवश्यकता कम होगी।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन