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त्योहारों का बाज़ारीकरण
इकतीस अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल का लेख ‘बाजार ही पंडित है, बाजार ही पर्व विधान’ वास्तव में बाजार के प्रभाव को समझाता है। त्योहारों के दौरान बाजार की व्यापारिक संस्थाएं उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कई रणनीतियों का उपयोग करती हैं, जैसे सेल और ऑफर्स। यह सच है कि आजकल त्योहारों का जश्न मनाने में गरिमा और सरलता का अभाव है, जबकि दिखावा अधिक बढ़ गया है। उपभोक्ताओं को उनकी जरूरतों के अनुसार खरीदारी करने की स्वतंत्रता नहीं है। बाजार ने त्योहारों का बाजारीकरण कर दिया है, जिससे हम अनावश्यक चीजें खरीदने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
धमकियों का खतरा
‘धमकियों की उड़ान’ संपादकीय में बम की झूठी धमकियों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई गई है। फर्जी मेल से यात्रियों में भय और अफरातफरी का माहौल उत्पन्न होता है, जो यात्रा योजनाओं और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। सवाल यह है कि सुरक्षा एजेंसियां फर्जी मेल के स्रोत का पता क्यों नहीं लगा पा रही हैं। केवल धमकी देने वालों को नो फ्लाई सूची में डालना पर्याप्त नहीं है। इन धमकियों को गंभीरता से लेना आवश्यक है। ये सुरक्षा और आर्थिक स्थिति दोनों के लिए खतरा हैं। वैसे सतर्क रहना जरूरी है, क्योंकि अनहोनी कभी भी हो सकती है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
शिकंजा कसे
चार नवंबर के लेख ‘नशे के खिलाफ जंग’ में पंजाब में नशे की लत को उजागर किया गया। इसमें कोई दोराय नहीं है कि पंजाब के युवा नशे की लत में बर्बादी की ओर अग्रसर हैं। नशे को खत्म करने के लिए इसमें संलिप्त नामी और ताकतवर लोगों को पकड़ उनका पर्दाफाश करना आवश्यक है। सरकार को बड़े पैमाने पर शिकंजा कसना चाहिए ताकि नशे की सप्लाई पर रोक लगाया जा सके और युवाओं के भविष्य को अंधकारमय होने से बचाया जा सका।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली