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बाज़ार ही पर्व विधान
इकतीस अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल का लेख ‘बाज़ार ही पंडित है...’ दीपावली पर्व के वास्तविक भाव और बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करने वाला रहा। दीपावली का त्योहार सदियों से उत्साह, उल्लास और पवित्रता का प्रतीक रहा है। लेकिन वर्तमान समय में उपभोक्तावाद की होड़ से इस त्योहार की पवित्रता को आंच आई है। लोगों को भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से भ्रमित किया जा रहा है, जिससे पारंपरिक रीति-रिवाज और सांस्कृतिक मूल्य प्रभावित हुए हैं। लेखक ने लेख में एक सार्थक संदेश दिया है कि हमें बाजार के प्रभाव से बचते हुए त्योहारों की असली भावना को समझने की आवश्यकता है। केवल बाहरी चमक-धमक से दूर रहकर हम त्योहार का असली आनंद पा सकते हैं।
डॉ. मधुसूदन शर्मा, रुड़की
साइबर अपराधों की चुनौती
देश में साइबर अपराधों पर नियंत्रण के लिए एक सक्षम और प्रशिक्षित साइबर विशेषज्ञ कार्यबल की कमी है। साइबर अपराधी शिक्षित हैं और विभिन्न तरीकों से अधिकारियों को शिकार बना रहे हैं। हाल में वीआईपी और विमान सेवाओं को धमकी देने के घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सुरक्षा को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। इस स्थिति में, अत्याधुनिक तकनीक से लैस युवा साइबर टीमों का गठन आवश्यक है, जिसमें पर्याप्त संख्या में अधिकारी भी शामिल हों।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
किसानी संस्कृति का पर्व
दिवाली पर इकतीस अक्तूबर के संपादकीय में बिल्कुल सही कहा गया है कि ऋतुचक्र में बदलाव और किसानी संस्कृति का यह पर्व दीपोत्सव है। आदिकाल से दिवाली वर्षा ऋतु की समाप्ति और फसल उपज के आगमन का त्योहार है। वर्षा ऋतु के बाद किसान परिवार अपने कच्चे घरों को फिर से संवारने में जुट जाते हैं। धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, दालें आदि फसलें घर लाते हैं। मौसमी बदलाव से मिली नई ऊर्जा से किसान दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं।
वीरेन्द्र सिंह लाठर, नयी दिल्ली