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धर्मनिरपेक्षता को चुनौती
सत्रह अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव के लेख ‘मनुष्यता की पराजय का दंश न झेले देश’ में राजनीतिक दलों की धर्म, जाति, और क्षेत्रीयता के आधार पर वोट बैंक की राजनीति करने वालों की कड़ी आलोचना हुई है। उन्होंने बहराइच का उदाहरण देकर समाज में बढ़ती कटुता की समस्या को उजागर किया। सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के बावजूद, राजनीतिक दल चुनावों में धर्म और जाति को प्राथमिकता देते हैं। लेखक ने भारत की धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर अमल करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि मनुष्यता की पराजय का दंश न झेलना पड़े।
शामलाल कौशल, रोहतक
राष्ट्रीयता सर्वप्रिय
सत्रह अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में सम्पादकीय पृष्ठ पर विश्वनाथ सचदेव के लेख ‘मनुष्यता की पराजय का दंश न झेले देश’ पढ़कर महसूस हुआ कि विवेकशील नागरिकों का कर्तव्य है कि धर्म के नाम पर समाज में दीवारों को खड़ी करने वालों को सही राह पर चलने की प्रेरणा दें। जीवन में विश्वास और धर्म का अपना स्थान है। इन्हें राजनीतिक लाभ-हानि के तराजू पर नहीं तोला जाना चाहिए। देश की जनता सर्वधर्म समभाव के आदर्श में ही विश्वास करती है। हम सब भारतीयों के लिए राष्ट्रीयता सर्वप्रिय होनी चाहिए।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी
ट्रूडो के मंसूबे
कनाडा में अगले वर्ष चुनावों के बीच जस्टिन ट्रूडो की सरकार स्थानीय सिख समुदाय के वोटों के लिए अलगाववादी संगठनाें को समर्थन दे रही है। उन्होंने भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाते हुए अमेरिका को भी उकसाया है। अमेरिका को यह समझना चाहिए कि खालिस्तानी संगठनों ने भारत को गंभीर जख्म दिए हैं। भारत अब पहले जैसा उदासीन नहीं रहा; इसका राजनीतिक नेतृत्व सक्षम है। ऐसे में भारत को कनाडा से संबंधों को लेकर सोचना चाहिए और अमेरिका को भी सावधानी बरतनी चाहिए।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
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